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कली तुझसे पूछूँ एक बात

कली तुझसे पूछूँ एक बात,

की जब होती है आधी रात,

कौन  भवंरा बनके चुपचाप,

तेरी  गलियों में आता है !!

 

कली  से काहे पूछे  बात,

की जब होती है आधी रात,

मैं महकती रहती हूँ चुपचाप,

बिचारा खिंच-खिंच आता है !!

 

कभी करता है मिलन की बात ,

सह काटों के आघात वो आधी रात,

नैन से नैन मिला कर चुपचाप,

वो  भवंरा खुद शरमा जाता है !!

 

सखी क्या कह दूँ दिल की बात ,

की अब तो ढलती जाए रात,

नैनों के चलते बाण चुपचाप,

ये मनवा बिंध -बिंध जाता है !!

 

सोचती हूँ कह दूं दिल की बात ,

की तुम  ले आओ बारात, आधी रात,

लिए तारों को संग चुपचाप,

सोचते  सवेरा  हो ही  जाता  है !!

 

वो भवंरा उड़-उड़ जाता है !!

वो भवंरा उड़-उड़ जाता है !!

.

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 12:01pm

आपका हार्दिक धन्यवाद सीमा तिवारी जी  !

Comment by seematiwari on December 20, 2014 at 8:40pm

bahut sundar kavita likhi hai aapne aadarniya hari prakash dubey ji...gazab ki kalpana Shakti....bahut bahut badhai!!

Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 5:59pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ह्रदय से आभार, ,आपकी प्रतिक्रिया- "आपकी हर कविता नए और अद्भुत रंग लेकर आती है" -मेरा प्रोत्साहन है, मेरा इनाम है ! सादर प्रणाम !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 5:03pm

सोमेश भाई आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया एवं आपके उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार !

Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 11:42am

कुछ अलग सी शैली लगी इस कविता में ,यही एक सफल लेखक की पहचान हैं यही नव-सृजन की उड़ान है ,बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2014 at 11:03am

हरि प्रकाश जी

आपकी हर कविता नए और अद्भुत रंग लेकर आती है i बेहतरीन i सादर i

कृपया ध्यान दे...

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