For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( महाप्रभु चैतन्य के जीवन चरित्र को पढ़ते – पढ़ते जब उनका निर्वाण पक्ष पढ़ रही थी तभी उनकी माँ और पत्नी के वियोग से मेरी आँखें भर आयीं और मन में कुछ भाव प्रस्फुटित हुए उन्हीं को शब्दबंध करने का एक छोटा – सा प्रयास है ये

कविता | )                                                                                                                                                      

हे वैरागी ! सुन हिय की पाती ,                                                                                      

अश्रु के सन्नाटों में सिमटी जाती है दासी |

   उस दिन जब पाणिग्रहण हुआ था मेरा ,

   मन की अभिक्षिप्त अभिलाषाओं ने ली थी अँगड़ाई ,

   सौभाग्य आभूषणों से सुसज्जित ,

  जीवन की बगिया में घिर आयी थी तरुणाई |

कितना मधुरिम प्रेमाश्रयी था जीवन मेरा ,

प्रेम रस से उत्प्लावित , छूने को गगन घनेरा |

   सुख से आमोदित सूर्य ने ,

   विस्फारित किया था अनुपम प्रकाश |

   तभी विरही आमवस्या से ,

   जीवन बन गया था अभिशाप |

सुनकर निर्वाण का तुम्हारा संकल्प ,

उन्मादित हृदय हुआ था विकल |

   ज्ञात था हृदयारविंद को ,

   भोर के प्रहरी के साथ ही ,

   त्याग मुझे तुम हो जाओगे मुक्त |

तुम्हें बाँधे रहने की अभिलाषा से ,

   पकड़ चरण पड़ी रही रात्रि पर्यन्त |

पर भावी होती बड़ी प्रबल ,

होनहार जुटा लेता साधन सकल |

   अभिशापित है रात्रि का वह अंतिम प्रहर ,

   जब गाढ़ निद्रा ने अपना अधिकार जमाया था ,

   और तुमने इस पल को सुअवसर समझ ,

   गृहस्थ जीवन से किया किनारा था |

हाय ! मुझ अबला को तुम किसके सहारे छोड़ गए ,

माँ के प्रति अपने कर्त्तव्यों को भी क्या तुम भूल गए ?

   इन उपालम्भों को रह मौन तुमने स्वीकारा था ,

   और मुझ अबला को विषण्णता का गरल , क्या खूब पिलाया था |

त्याग – वैराग्य की कसौटी पर खरा उतर ,

तुमने मोह - माया की मुक्ति का संदेश दिया |

और मुझ परित्यक्ता ने इस निर्मम जग की

हेयता से भरपूर दोषारोपण के शूल सहे |

   जगती के ललचाए नेत्रों ने जब – जब ,

   घृणित दृष्टिपात किया |

   आर्तनाद गूँजा मन में ,

   असहय पीड़ा का भान हुआ |

हाय ! प्रियवर न तुमने सोचा ,

क्या बीतेगी उस परित्यक्ता पर ,

जिसको ब्याह लाए थे तुम ,

दूर करने अपनी रिक्तता को |

   हे वैरागी वर्षोंवर्ष यूँ ही बीत गए ,

   आए न सुध लेने को तुम ,

   क्या उस कोमल कांता की सुश्रुषा भूल गए |

हे वैरागी ! देवों के तुम दूत बन ,

प्रेम भक्ति रस पाते हो ,

और मैं परिदग्धा इन क्षणिकाओं में ,

अश्रुग्रन्थि पर रोके आँसू ,

एकाकीपन का गरल पिए जाती हूँ |

   अब जीवन के अंतिम क्षण में ,

   पुकार रही तुम्हें चूनर धानी |

   दे - दो बस एक अंतिम दर्शन ,

   व्याकुल है तुम्हारे चरणों की दासी  |                                (  मौलिक व अप्रकाशित रचना )

   

 

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2014 at 11:45am

आ० अंजू जी ..ईस रचना के माध्यम से आपने एक बिरहनी की व्यथा का शानदार चित्रण किया है , इस भावनाप्रधान रचन के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by ANJU MISHRA on April 8, 2014 at 6:24pm

प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार प्राची जी .....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 3, 2014 at 9:32am

बहुत संवेदनशीलता से परित्यक्ता की भाव-दशा को साँझा किया है आपने आ० अंजू मिश्रा जी 

आपको बहुत बहुत बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 3:19am

आदरणीया आपकी कोई पहली रचना मेरे सामने से गुजर रही है. आपकी संवेदना ने प्रभावित किया है. आपकी अन्यान्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी.

शुभ-शुभ

Comment by annapurna bajpai on March 25, 2014 at 10:23pm

बहुत सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको इस रचना कर्म के लिए । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:18pm

अंजू जी ..एक बिरहनी की व्यथा का शानदार चित्रण किया है आपने इस राचन के माध्यम से ..शब्दों से बनाया गया बेहतरीन भाव चित्र ..इस श्रजन पर हार्दिक बधाई सादर

Comment by ANJU MISHRA on March 25, 2014 at 5:17pm

लक्ष्मण जी प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद ! इस ब्लॉग से जुड़ने का मकसद अनुभवी व काव्य कला में प्रवीण कवियों से मार्गदर्शन लेना है |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 25, 2014 at 12:30pm
वेदना और हर्षानुभूति मिश्रित क्षणों पर अभिव्यक्त शब्दों पर आधारित और आध्यात्मिकता का पुट
लिए रचना को पढ़कर जो भाव प्रकट हुए –
१. होनहार भावी प्रबल विलख कहत कविराय
२. सखी वे मुझसे कहकर गए, मै फिर क्यो पगबाधा बनती
३. मै अब दर्शन की आभिलाशी, समझू हूँ चरणों की दासी
सुन्दर भाव प्रस्तुति प्रयास पर हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service