For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- तृतीय खंड (1)

 तृतीय  खंड 

पाठक के लिए: 

हमारे काव्य नायक 'ज्ञानी' की पर्वचन  श्रृंखला  जारी है। ज्ञानी का लक्ष्य मानवीय अनुभूति से उपजे ज्ञान को जन मानस तक पहुँचाना। प्रस्तुत खंड में वह गंगा उत्पुति की कथा बयान कर रहा है। गंगा की उत्पुति विष्णु हृदय से मानी जाती है। वह विष्णु हृदय क्या है - ज्ञानी इस की विवेचना के लिए प्रयतन रत है।
प्रस्तुत कथा और इस का ऐसा पठन शायद किसी और ग्रन्थ में न उपलब्ध हो इस लिए पाठक को आगाह किया जाता है के वह इस में समानांतर धार्मिक कथा की खोज न करे। प्रस्तुत कथा केवल ज्ञानी की अपनी आत्मानुभूति है  .... (author) 

ज्ञानी का तीसरा प्रवचन (1)

विष्णु को सब कहें नारायण
लेकिन ये नारायण हैं क्या?
विष्णु करते जग का पालन
पर ये पालनकर्ता   हैं क्या?

जैसे संपूर्ण जगत् एक है
वैसे स्मस्त प्राणि एक
जैसे जलचर वनचर एक हैं
वैसे सब की वाणि एक
जैसे अंडज् जे़रज् एक हैं
वैसे सेतज् उदभुज् एक
जैसे पूरा विश्व एक है
वैसे विश्व आत्मा एक

वही आत्मा वही विश्व आत्मा
संचालित करती है
संपुर्ण विश्व 

उस के बिना मानव देह सूनी, सब जानते हैं
बिना उसके मानव धड़ है
केवल शव

उसी आत्मा का ज्ञान है विष्व ज्ञान,

संपूर्ण ज्ञान
वही आत्मा है समस्त ज्ञान का स्रोत
आत्मा के आस्तित्व का आभास ही  है आत्म ज्ञान
और आत्मा स्वयं ही  है ज्ञान का स्रोत

ऐसे आत्मा की अनुभूति
ऐसे विश्व आत्मा का ज्ञान
मिलता है मानव को चेतना के कारण
मानव चेतन्य भी तो है उसी के कारण

मानवीय चेतना ही तो विश्व चेतना है
मानवीय आत्मा ही तो विश्व आत्मा है


मानवीय चेतना से बना है चित
चित से उपजा है मन

मन है विचारों का वाहन 

विचार करते मन को शेष से अलग 


मन ने  किया मानव को  प्रकृति से दूर
मन मानता है मानव को अलग
‘मैं’ है अलग और शेष है जग

मन ने माना ‘मैं’ को इकाई
चेतना ने कहा नहीं
‘मैं’ है पूर्ण सच्चाई
मन ने माना ‘मैं’ है एक खण्ड
चेतना ने कहा नहीं
‘मैं’ है ‘ब्रहमण्ड’

(शेष बाकी)

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 5, 2013 at 10:34pm
 धन्यवाद  Laxman Prasad Ladiwala  जी।
शाश्त्रों मैं ज्ञान के इक पहलु का वर्णन है जिसे अप्रोक्षानुभुती कहते है। इंग्लिश में उसे direct परसेप्शन शायद कहा जायेगा  इस के अनुसार ऐसा अनुभुव जो प्रत्यक्ष लगे। जैसे कोई साइंसदान अपनी सोच प्रक्रिया का ब्यौरा देने लगे। कि वह इस नतीजे पर कैसे पहुंचा। मैं अपने भावों को ऐसे ही  व्यक्त कर रहा हूँ या करना चाहता हूँ। यहाँ मुझे लगेगा के मैं उलझन पैदा कर रहा हूँ या केवल कपोल कल्पना की बात कर रहा हूँ तो मैं स्वयं को रोक दूंगा।आने वाली कड़ियों में शायद  यह बात और स्पष्ट करने का प्रयत्न करू।
 
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 5, 2013 at 10:29pm
 धन्यवाद  Dr.Prachi Singh जी।
आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
शाश्त्रों मैं ज्ञान के इक पहलु का वर्णन है जिसे अप्रोक्षानुभुती कहते है। इंग्लिश में उसे direct परसेप्शन  कहा जायेगा । इस के अनुसार ऐसा अनुभुव जो प्रत्यक्ष लगे। जैसे कोई साइंसदान अपनी सोच प्रक्रिया का ब्यौरा देने लगे। कि वह इस नतीजे पर कैसे पहुंचा। मैं अपने भावों को ऐसे ही  व्यक्त कर रहा हूँ या करना चाहता हूँ। यहाँ मुझे लगेगा के मैं उलझन पैदा कर रहा हूँ तो मैं स्वयं को रोक दूंगा।आने वाली कड़ियों में शायद  यह बात और स्पष्ट करने का प्रयत्न करू।
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 5, 2013 at 9:57pm

धन्यवाद Ashok Kumar Raktale जी। आप ने सत्य कहा। हम चेतना और मन के द्वन्द में उलझे रहते हैं। आप का यहाँ पधारने का धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2013 at 7:23pm

विचारों का अंतर्द्वंद अच्छा है, आपके विचार परिकल्पना को नमन | मेरा मानना है की हम श्रृष्टि के कोई तो रचयिता होगा,

जिसने यह श्रृष्टि रची, उसे रचयिता कहे, ब्रह्म कहे,नियता कहे, रच्नाक्कार कहे या कोई नारायण, इससे क्या फार पड़ता है 

आपकी रचना के अगले भाग को पढ़कर और समझने की कौशिश करता हूँ डॉ ओम्कवर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2013 at 3:09pm

आदरणीय डॉ० साहब सबसे पहले तो क्षमा चाहती हूँ कि इस खंड काव्य पर आज ही नज़र पड़ी... पहले के सारे प्रखंड देख समझ लूँ..फिर इस पर वापस आती हूँ..

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 8:38am

आदरणीय डाक्टर साहब सादर सुन्दर परिकल्पना की प्रस्तुत, मन और चेतना का द्वन्द वाह! अवश्य ही आगे के भाग को पढ़ने को मन आतुर है और पिछले भाग को भी मैं पढ़ना चाहूँगा.

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 4, 2013 at 8:25pm

कुछ ऐसा ही बयान इस कथा में है S K CHOUDHARY  ji ।  लेकिन यहाँ ज्ञानी का अपना ढंग है बयाँ करने का। मेरी कोशिश है मैं पर्तीकों व बिंबों के बीच छुपे अर्थ को सामने लाऊँ। आप का पुनः धन्यवाद।

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 4, 2013 at 8:12pm

प्रिय केवल प्रसाद जी 

उचित कहा आपने। विष्णु अर्थात् विसरा हुआ अणु जिसे हम जन्म के साथ ही भूल जाते हैं, वही है ‘विष्णु‘
हमारा अपनी देह से ऐसा तादतम्य हो जाता है कि हम आत्मा को भूल जाते है। विसरा देता हैं। उक्त व्याख्या के लिए धन्यवाद। इस रचना में अभी और भी रहस्योद्घाटन होंगे। प्रयत्न रत हूँ कि कुछ अरुचिकर न बने। आप से सहयोग की आपेक्षा है।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:58pm

आदरणीय श्री डा0 स्वर्ण जे0 ओंकार जी, विष्णु अर्थात् विसरा हुआ अणु जिसे हम जन्म के साथ ही भूल जाते हैं, वही है ‘विष्णु‘ बहुत ही क्लिष्ट बात को आपने यूं कहा..‘वही आत्मा वही विश्व आत्मा
संचालित करती है
संपुर्ण विश्व
उस के बिना मानव देह सूनीए सब जानते हैं
बिना उसके मानव धड़ है
केवल शव!‘ बहुत ही सुन्दर बात..। बहुत बहुत बधाई।

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 4, 2013 at 7:43pm
धन्यवाद  S K CHOUDHARY  जी 

कृपया अपना सहयोग जरी रखें। हमें आप से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service