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निदान

                                    गांव के बाहर मन्दिर में जोर-जोर से शंख और घड़ियाल बज रहे थे। एक सप्ताह से वहां पूजन चल रहा था। अब आरती हो रही थी। पण्डित जी ने आश्वस्त किया था कि नदी के कगार टूटने से गांव पर जो बाढ़ का खतरा मंडरा रहा था वह इस पूजन से टल जाएगा।

                                    गांव वालों के पास भी कोई रास्ता नहीं था पण्डितजी की बात मानने के सिवा। जिस बात की गारण्टी सरकार नहीं दे सकती उसकी गारण्टी यदि पण्डित दे रहा हो तो बात मानने में क्या बुराई। कगार की मरम्मत करने की मेहनत से तो यह जिम्मेदारी भगवान पर छोड़ना अच्छा। उसी ने समस्या दी है तो निदान भी वही करेगा।

                                                                                                      - बृजेश नीरज

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Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 7:08pm

आपका आशीर्वाद पाकर अनुगृहीत हुआ।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 23, 2013 at 6:12pm

सरकारी संवेदनहीनता पर सामाजिक अकर्मण्यता... . खूब इशारा किया है आपने, बृजेशभाईजी. यह इशारा झन्नाटेदार है जो इस तरह के तेवर की कथाओं का सम्यक अस्त्र है.

आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी.

सादर अभिनन्दन.

Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 4:52pm

आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 23, 2013 at 8:21am

अंधविश्वास के चरम को दर्शाती सुन्दर लघुकथा. बधाई भाई बृजेश कुमार सिंह जी. सादर.

Comment by बृजेश नीरज on February 22, 2013 at 6:18pm

वन्दनाजी, आपका आभार!

Comment by Vindu Babu on February 21, 2013 at 11:49pm
बिल्कुल सही श्रीमान!
यही यथार्थ है,लोग कर्म पथ से दूर भागते हैं और ईश्वर के विश्वास के साथ खिलवाड़ करते हैं.
सादर शुभकामनाएं...
Comment by वेदिका on February 21, 2013 at 10:47pm

और मै  अपनी क्या कहूँ ... मैंने भी आजतक केवल कुछ एक दर्जन के ही लगभग लेख लिखे है । :)))

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on February 21, 2013 at 10:36pm

वेदिका जी! आपका आभार! आप लोगों की टिप्पणियां इसलिए मेरे लिए और भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह लघुकथा लिखने का मेरा पहला प्रयास था।
सादर!

Comment by वेदिका on February 21, 2013 at 10:04pm

बहुत करारा जोरदार लेख  आदरणीय बृजेश कुमार जी !

यही लोग इस उक्ति को चरितार्थ करते है की " जो भाग्य में लिखा है व्ही होगा, कर्म भाग्य को नही बदल सकते "।

भाग्य पर छोड़ क्र इंसान कर्म करने की मेहनत  से बच  जाता  है।

शुभकामनायें 

सादर  

Comment by बृजेश नीरज on February 21, 2013 at 10:27am

लक्ष्मण जी, सही कहा आपने।

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