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उडती चिड़िया काट लिए ‘पर’ कहाँ प्यार है ??

भारत देश हमारा प्यारा, न्यारा इसका संविधान है

शीतल  धवल दुग्ध धार है कहीं उबलता क्या विधान है

तरह तरह की भाषा बोली हैं हम जोली

दुश्मन-मित्र हैं अपने घर ही कहीं है गोली

आस्तीन के सांप बनाये रखना दूरी

तिलक देख है  फंस -फंस जाती भोली-

जनता ! त्राहि -त्राहि कर न्याय मांगती

मुंह में राम बगल में छूरी  कहाँ जानती

ये रस्सी या सांप बड़ा ही विभ्रम यारों

गीता - देवी एक ही पोथी ‘देव’ अलग हैं

लोअर- मिडिल -अपर में देखो बड़ा फरक है

कहाँ है दुर्गा चंडी राम कृष्ण जो रावण खोजें

बड़े बड़े हैं देव बंधे घर रावण मोहित होते सोते

उडती चिड़िया काट लिए ‘पर’ कहाँ प्यार है ??

तुम हो अपने ?? कितना ढीला जर्जर अपना संविधान है

आओ कसें कसौटी रच-रच सुदृढ़ इसे बनायें

नियम नीति अनुशासन डर भय सारे ला के

सचमुच प्यारा न्यारा अपना ‘संविधान’ हम पायें

नमन करें ‘माँ’ -‘भारति’ को हम शस्त्र हो अद्भुत

जन-गण मन पुलकित हो उभरें नित नूतन सद्गुण

अपनी संस्कृति प्रेम सत्य ईमान गगन हो

सागर सा दिल मिल मिल खिल खिल फूल बना हो

चंदन सा फिर जहां सुवासित शीतलता हो

हों भुजंग भी विन विष वाले समता ममता यहाँ वहां हो !!

 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर 5 "

26.1.2013 11 मध्याह्न

कुल्लू यच पी

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 15, 2013 at 12:00am

आदरणीय सौरभ जी आप का स्नेह प्रोत्साहन और सुझाव मिला मन अभिभूत हुआ 

आभार 
भ्रमर 5 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 9:53pm

सरेंद्र भ्रमरजी, आपने अपनी भावनाओं को शब्दबद्ध कर उन्हें बहने दिया है. भारतीय संविधान ही आज की स्मृति है. जिसके अनुसार देश का विधान चलता है. आपकी रचना इस तथ्य को भी इंगित करती है. इस तरह के विषय को शिल्प की कसौटी दी जाती तो और सुन्दर कथ्य होता.

सधन्यवाद

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