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रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है
यार बता , तुझे कौन सा गम है

ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .

तेरी पलक का अश्क मैं अपने
लब पे उठा लूं , ये शबनम है.

लगता है मुझको तुझमे खुदा है ,
हंस कर बोले लोग वहम है

जिस्म तेरा या रूह हो तेरी
मेरे लिए यह दैरो- हरम है

कहना ग़ज़ल यूं मैं क्या जानू
यह तो खुदा का रहमो- करम है

आनंद तनहा

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 12:00pm
रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है
यार बता , तुझे कौन सा गम है

ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .

वाह क्या बात है आनंद साहब....आपकी इन लिनेस पर किस तरह की टिपण्णी दूं समझ में ही नहीं आ रहा है....ये पंक्तियाँ बहुत ही बेहतरीन है....इसलिए बस इतना ही कहूँगा की शानदार रचना है,,,,...ऐसे ही लिखते रहे आनंद साहब...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 22, 2010 at 7:31pm
आनंद जी बेहतरीन ख्याल| मेरी पसंद के आशार|

ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .

जिस्म तेरा या रूह हो तेरी
मेरे लिए यह दैरो- हरम है
Comment by anand pandey tanha on October 21, 2010 at 5:09pm
ब्रिजेश भाई,गणेश जी ,शेष धर जी
आपकी, तारीफ़ के लिए आभार -

आप इस बज़्म में आये मेरी चाहत के लिए
शुक्रिया दोस्त बहुत नज़रें - इनायत के लिए .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 21, 2010 at 9:50am
कहना ग़ज़ल यूं मैं क्या जानू
यह तो खुदा का रहमो- करम है,
वाह वाह वाह , खुदा का रहमो करम है .... बहुत ही संजीदा ग़ज़ल पढ़ी है भाई आनंद जी, ब्रिजेश भईया की बात एकदम सही है , उम्द्दा ख्यालात है , बधाई स्वीकार कीजिये ,
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 20, 2010 at 9:40pm
आनंद भाई, यह नई ग़ज़ल तो कमाल है...क्या गज़ब के आसार हैं और ख्याल तो लाजवाब है ..आपकी सुन्दर गजलों के लिए बधाई ...
ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .
अब डॉक्टर मैं हूँ और इलाज आपके पास हैं...है न मज़ेदार बात

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