For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अलविदा दोस्तों "

मिल जाते हैं
लोग
बहुत से लोग
रहगुजर पे
कुछ बेगाने
अपने से
और कुछ अपने
बेगाने से

सवाल उठने लगते हैं
जहन में
बार- बार
कौन है यार ?????

तन्हाई क्या है
अकेलापन
या जुदाई का एहसास
यार से
किसी अपने से

ये अपना कैसे हो गया ???
और ये बेगाना कैसे ???
अच्छा है
बुरा है
अपना है
बेगाना तो बेगाना है

कुछ पैदाइशी अपने हैं
माँ, बाप, भाई, बहन,
रिश्तेदार
और कुछ अपने हुए
पर कैसे ?????
मन मिला तो मेला
लेकिन ये मन मिला कैसे ???
मेरे अपने गुरुजन
मेरे अपने दोस्त
मेरे अपने रिश्तेदार
इनसे मन मिला है मेरा
इनके बिना
अकेलापन है
तन्हाई है
दुःख है

मन ????
बड़ा जटिल है
समझ पाना इसे
क्या है ये मन ??
क्या यही सोच है ??
या सोच से चलता है मन ???

अपना कौन है ???
जिनके जाने का दर्द हो
जिनके आने से हर्ष हो
जिनके रूठने पर व्यथित हो मन
जिनके मानते ही झूम उठे मन
जिसे जरूरत न हो
आडम्बरों की
जो जानता हो
प्रेम के अव्यक्त स्वरूप को
जो मन में विद्यमान है
अथाह है
वही न
वही है अपना

जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????

अलविदा दोस्तों

संदीप पटेल "दीप"

Views: 1254

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 24, 2012 at 10:46am

आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम
आपने मेरी रचना पढ़ी और उसे सराहा भी उत्साह दोगुना हो गया
अपना ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये अनुज पर
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

आपने सच कहा बागी सर जी की बात एकदम सच है कभी अलविदा न कहना

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 24, 2012 at 9:23am

//जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????//

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई मित्र संदीप जी !

आदरणीय बागी जी ने सच ही कहा है............कभी अलविदा ना कहना .....| सस्नेह 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 24, 2012 at 9:05am

सच कहा आपने आदरणीय
शायद इसीलिए बस अलविदा से काम चला लेता है वो
कविता पढ़ी आपने अपना कीमिया समय दिया
इसके लिए आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 23, 2012 at 11:26pm

जब आता है तब होता है
स्वागत अपने का
सब कुछ समर्पित होता है
अपनों के लिए
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं
अपने छोड़ के
तब आने के वादे के साथ
बस इतना ही क्यूँ ????

अलविदा दोस्तों
नहीं भाई जाने पर जों होता है वह दिखता नहीं है वह शायद आगमन पर हुए स्वागत से भी अधिक कुछ है.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 1:22pm

आदरणीया रेखा जी सादर नमन
आपको मेरे ये चंद शब्द पसंद आये और मुझे आपकी सराहना मिली
आपके ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 12:50pm

जब आता है तब होता है 
स्वागत अपने का 
सब कुछ समर्पित होता है 
अपनों के लिए 
लेकिन वियोग भी इक सच है
जब जाते हैं 
अपने छोड़ के 
तब आने के वादे के साथ 
बस इतना ही क्यूँ ????,अति सुंदर अभिव्यक्ति संदीप जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 12:19pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर नमन
आपको मेरी कविता के भाव पसंद आये और आपकी सराहना मुझे मिली
ये स्नेह और आशीष यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 12:17pm

आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणामं
आपकी प्रतिक्रया स्वरुप आशीर्वाद पा कर मैं धन्य हो गया
मुझ पर ये स्नेह और आशीष सदैव बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 12:16pm

आदरणीय गणेश सर जी सादर नमन
आप सभी का इतना स्नेह और आशीष मिलना सौभाग्य की बात है
और अपनों से अलविदा कहने में भी बड़ा क्षोभ होता है
जिस स्थान में नेह और सम्मान दोनों ही मिल रहे हों
वहाँ से अलविदा कहने का सवाल ही नहीं उठता है
और यदि कभी ऐसा दिन आये तो बड़ा दुखद और कष्टकारी होगा
अपना ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 12:12pm

आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपने कविता के वास्तविक सौन्दर्य को अपनी अनमोल प्रतिक्रया देकर दूना कर दिया है
आपका ये स्नेह और आशीष यूँ ही  बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
18 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service