For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अदब के साथ जो कहता कहन है 
वो अपने आप में एक अंजुमन है

 

हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है

 

हुई है  दिल्लगी बेशक हमीं से 
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है

 

अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है  

 

नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है 

 

खिले हैं फूल मिट्टी है महकती 
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है 

 

कहाँ परहेज मीठे से हमें अब
वो कहता यार यह तो आदतन है 

 

ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है 

 

तुम्हारे हुस्न में फितरत गज़ब की
तभी चितवन में 'अम्बर' बांकपन है 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:32pm

ये फैशन हाय रे जीने न देगा 
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है

तुम्हारे हुस्न में फितरत गज़ब की 
तभी चितवन में 'अम्बर' बांकपन है

कुल मिलाकर कहूँगा मै अम्बरीश.

इस ग़ज़ल पे फ़िदा ये सदन है.

Comment by siyasachdev on October 4, 2011 at 10:19pm

खिले हैं फूल मिट्टी है महकती  
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है....behed umda sher ...behatreen ghzal wah  bahut khoobsurat peshkash


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2011 at 9:56am

//अदब के साथ जो कहता कहन है 
वो अपने आप में एक अंजुमन है//

सही कहा आपने अम्बरीश भाई, सहमत हूँ , तभी तो किसी ने कहा है कि.....इस अंजुमन में आपको, आना है बार बार, दीवारों दर को गौर से पहचान लीजिये....  खुबसूरत मतला,

 

//हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है//

उनका फितरत है धोखे देने की, हमें भी आदत है धोखे खाने की,

बहुत खूब भाई, पर अब तो सुधर जाईये :-)))))))))

 

//हुई है  दिल्लगी बेशक हमीं से 
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है//

आय हाय हाय, क्या सलीके से बड़ी बात कह कर निकल गए उस्ताद, बहुत खूब |

 

//अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है//

वाह, यह शेर भी खुबसूरत है |

 

//नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है//

वाह वाह, जबरदस्त ख्यालात , जबरदस्त शेर |

 

//खिले हैं फूल मिट्टी है महकती 
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है//

बहुत खूब अम्बरीश भाई, यही है मुहब्बत, खुबसूरत शेर |

 

//कहाँ परहेज मीठे से हमें अब
वो कहता यार यह तो आदतन है//

पता नहीं क्यों मेरे समझदानी में नहीं आया यह शेर,

 

ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है 

आय हाय हाय, बड़ी खूबसूरती से फैसन परस्ती के नंगापन को आपने दिखा दिया है, सही कहा ना सौरभ भईया :-)))

 

//तुम्हारे हुस्न में फितरत गज़ब की
तभी चितवन में 'अम्बर' बांकपन है//

तेरे बांकपन को सलाम मित्र, वाकई बहुत बाकपन है , बेहद खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद कुबूल करे |

Comment by वीनस केसरी on October 4, 2011 at 2:22am

वाह अम्बरीश जी

ग़ज़ल निर्दोष हो रही है

इस शेर कि ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि इसमें तकाबुले रदीफ का दोष आ रहा है, अर्थात मिसरा ए उला के अंत में भी रदीफ की तुकांतता आ जा रही है जिससे कि यह ऐब पैदा हो रहा है, इससे आसानी से बचा जा सकता है ...   

 

कहाँ परहेज मीठे से हमें है 
वो कहता यार यह तो आदतन है

 

कहाँ मीठे से है परहेज हमको ..

 


ये फैशन हाय रे जीने न देगा
कई कपड़ों में भी नंगा बदन है

यह शेर तो सटाक से आ कर लग रहा है,, खूब पसंद आया... हार्दिक बधाई 

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 3, 2011 at 6:32pm

वाह वा भाई ! बहुत खूब ! बहुत-बहुत शुक्रिया आपका....
हुनर तहजीब औ सादा कहन है
वो अपने आप में एक अंजुमन है

Comment by वीनस केसरी on October 3, 2011 at 1:56pm
bataure khas ''ambrish bhai''

hunar, tahzeeb au' sada kahan hai
Vo apne aap me ik anjuman hai
Comment by वीनस केसरी on October 3, 2011 at 1:51pm
sir,
bahr ka vazn 12 nahi balki 21 hota hai
Sadar
Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 3, 2011 at 1:20pm

इस्लाहियत के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया भाई वीनस जी!
नया मतला .......
बहर के साथ कहता जो कहन है 

Comment by वीनस केसरी on October 3, 2011 at 1:48am

भाई अम्बरीष जी,

आपने मतला में मन हर्फे रवी लिया और चार शेर तक बखूबी निभाया भी फिर पांचवे शेर से भटक क्यों गए ? 

वैसे मतले में सिनाद दोष आ रहा है हो सके तो मतला बदल ही दें और केवल को हर्फे रवी बना कर फिर से मतला लिखे तो बाकी के शेर भी निभ जायेंगे

सादर

ग़ज़ल  की तारीफ वाला कमेन्ट नीचे हैं :)))

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 3:06pm

स्वागत है आदरणीय भाई अरुण जी! ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
22 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service