For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

राष्ट्र के कर्णधार उठो , मानवता के पहरेदार उठो .

तुमको वतन पुकार रहा , तेरे पौरुष को ललकार रहा.

भारत माँ का उद्धार करो.

भ्रष्टाचार - संहार करो .

नृप ! बैठ तख़्त क्या सोच रहा ? अवमूल्यन में क्या खोज रहा ?

सत्ता की कुछ मर्यादा है , जनतंत्र से कुछ तेरा वादा है.

दृग मूंद लिए सब सपना है.

आँखे खोलो सब अपना है.

यह जग माया का है बाज़ार , जहाँ रिश्तों के कितने प्रकार .

कोई मातु - पिता कोई भाई है , कोई बेटी और जमाई है.

कोई प्यारा सुत बन आया है.

कोई बहन और कोई जाया है.

इस माया को ही कहते जग , यह है मानव - जीवन का सर्ग.

माया से अलग - बिलग होकर , पर जीवित नहीं रह सकता नर.

सृष्टि का मूल्य चुकाना है .

रिश्ते का फ़र्ज़ निभाना है .

पर मात्र स्वार्थ के बंधन में , रिश्तों -नातों के संगम में.

अपने -गैरों के चिंतन में , सुख के विचार को रख मन में.

जो भ्रष्ट आचरण करता है.

वह मनुज स्वयं से लड़ता है.

वह है उस कुते के समान , जो करता निज लहू का ही पान.

हड्डी में दांत गड़ाता है , बदले में रक्त जो पाता है.

वह तप्त रक्त भी है उसका.

वह तृप्त भोज भी है उसका.

सुख पाने की अभिलाषा मैं, उत्तम भविष्य की आशा में.

जो वर्त्तमान को खो देता, बुद्धि - विवेक को खो देता.

वह सबसे बड़ा भिखारी है.

दुर्दिन का ही अधिकारी है.

नभ छूती हुयी अटारी हो, रत्नों से भरी पिटारी हो.

धन-दौलत हो बेशुमार, भरा- पूरा भी हो परिवार.

फिर भी तन्हा ही जाना है.

सब कुछ यहाँ रह जाना है.

मरने पर सब मुँह मोड़ेंगे, निर्जन में संग सब छोड़ेंगे.

न बहन और माता होगी, न पुत्र और कान्ता होगी.

अकेले ही जाना होगा.

कर्मों पर पछताना होगा.

भ्रष्ट आचरण को अपनाना, सहम-सहम कर जीना है.

हो मनुज मनुज से छल करना, निज हाथों से विष पीना है.

जो कुछ भी है सृष्टि का है, मात्र कर्म ही तेरा है.

प्रिय, तुम्हारे कर कमलों में, मानसरोवर मेरा है.

गीतकार- सतीश मापतपुरी

Views: 330

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on August 17, 2011 at 11:41am

टिपण्णी और सराहना के लिए धन्यवाद गुरूजी.

Comment by Rash Bihari Ravi on August 16, 2011 at 4:58pm

भ्रष्ट आचरण को अपनाना, सहम-सहम कर जीना है.

हो मनुज मनुज से छल करना, निज हाथों से विष पीना है.

जो कुछ भी है सृष्टि का है, मात्र कर्म ही तेरा है.

प्रिय, तुम्हारे कर कमलों में, मानसरोवर मेरा है.

vah kya khub likha hain aapne

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
1 minute ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
4 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
19 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
22 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
23 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
24 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
26 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
42 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
43 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
43 minutes ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
43 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय भाई लक्ष्मण जी  हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
45 minutes ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service