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ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना

लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
जाने अब कैसे कटेंगी सर्दियाँ तेरे बिना.
.
फैलता जाता है तन्हाई का सहरा ज़ह’न में
सूखती जाती हैं दिल की क्यारियाँ तेरे बिना.
.
साथ तेरे जो मुसीबत जब पड़ी, आसाँ लगी
हो गयीं दुश्वार सब आसानियाँ तेरे बिना.
.
तू कहीं तो है जो अक्सर याद करता है मुझे
क्यूँ सताती हैं वगर्ना हिचकियाँ तेरे बिना?
.
वक़्त लेकर जा चुका आँखों से ख़ुशियों के गुहर   
अब भरी हैं ख़ाक से ये सीपियाँ तेरे बिना. .
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. नाथ जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. विजय जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. अजय जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. समर सर. पता नहीं मैं इस ग़ज़ल पर आई टिप्पणियाँ पढ़ ही नहीं पाया 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. रचना जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. तेजवीर सिंह जी 

Comment by नाथ सोनांचली on July 12, 2019 at 3:41pm

आद0 नीलेश नूर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने। दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ

Comment by vijay nikore on July 10, 2019 at 4:29pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय निलेश जी।

Comment by Ajay Tiwari on July 6, 2019 at 9:35am

आदरणीय निलेश जी, शेर सारे बहुत खूब हैं. आख़िरी शेर ख़ास तौर पर अच्छा लगा. हार्दिक बधाई.

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