For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1122 1122 22
1
गर्म अफ़वाहों का बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे
बिक रहा झूठ का अख़बार ख़ुदा ख़ैर करे
2
चार सिक्कों की ख़नक जेब में क्या होने लगी
हो गए हम भी तलबगार ख़ुदा ख़ैर करे
3
शांत लहरों में भी कश़्ती को सहारा न मिला
डूबी मँझधार में पतवार ख़ुदा ख़ैर करे
4
इश़्क था या कि अज़ीयत ओ फ़ज़ीहत का सफर
है अलम दिल का पुर आज़ार ख़ुदा ख़ैर करे

बाँध रक्खा है किनारों ने संमदर ऐसे
रुक गई लहरों की रफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे

5
हो न मायूस बुरा दौर चला जाएगा
वक़्त रहता नहीं इकसार ख़ुदा ख़ैर करे
6
दोनों उलझें हैं रिवायत की लगी गाँठों में
कोई हो इनमें समझदार ख़ुदा ख़ैर करे

कोरोना पर
7
पैर फैलाए वबा घर में घुसी आती है
अपने होने लगे बीमार ख़ुदा ख़ैर करे

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 406

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on April 4, 2020 at 1:19pm

आदरणीय समर कबीर सर

बहुत सुंदर इस्लाह दी।आपकी बहुत आभारी हूँ।साथ ही बार बार तंग करने के लिए मुआफ़ी भी चाहती हूँ।

Comment by Samar kabeer on April 3, 2020 at 3:20pm

//इनमें कोई न समझदार ख़ुदा खैर करे' क्या यह कर सकते हैं//

इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-

'और हैं दोनों ही मक्कार ख़ुदा ख़ैर करे'

Comment by Rachna Bhatia on April 3, 2020 at 12:57pm

आदरणीय समर कबीर सर ग़ज़ल तक आने तथा अपना क़ीमती वक़्त देने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ। सर, आपकी इस्लाह से ग़ज़ल "ग़ज़ल"बन गई। बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय,आपके लिए कोई शब्द नया नहीं है यक़ीनन मैंने सही शब्द का चुनाव नहीं किया ।

मैं यहाँ " एक जैसा"वक़्त कहना चाहती थी अर्थात बुरा वक़्त बदल जाएगा । सादर।

आदरणीय,

दोनों उलझें हैं रवायत की लगी गाँठों में

कोई हो इनमें समझदार ख़ुदा ख़ैर करे

में सानी 

'इनमें कोई न समझदार ख़ुदा खैर करे' क्या यह कर सकते हैं।

सादर आभार

 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 8:09pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

'शांत लहरों में भी कश़्ती को सहारा न मिला
डूबी मँझधार में पतवार ख़ुदा ख़ैर करे'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,ऊला यूँ कर सकती हैं:-

' किस तरह सामना तूफ़ाँ से करेंगे यारो'

और सानी में 'डूबी' की जगह "टूटी" कर लें ।

'इश़्क था या कि अज़ीयत ओ फ़ज़ीहत का सफर
है अलम दिल का पुर आज़ार ख़ुदा ख़ैर करे'इस शैर का भाव स्पष्ट 

नहीं,और सानी में 'पर' शब्द के कारण मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,शैर यूँ कर सकती हैं:-

'आशिक़ी के भी सफ़र में है अज़ीयत लेकिन

है अलग दिल का ये आज़ार ख़ुदा ख़ैर करे'

'वक़्त रहता नहीं इकसार ख़ुदा ख़ैर करे'

इस मिसरे में 'इकसार' शब्द मेरे लिए नया है,अर्थ बताने का कष्ट करें ।

'दोनों उलझें हैं रिवायत की लगी गाँठों में'

इस मिसरे में 'रिवायत' को "रवायत" कर लें ।

'कोई हो इनमें समझदार ख़ुदा ख़ैर करे'

इस मिसरे में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ  ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service