For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तड़प उनकी भी चाहत की इधर जैसी उधर भी क्या ?(७७ )

(1222 1222 1222 1222 )
तड़प उनकी भी चाहत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
लगी आतिश मुहब्बत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
मिलन के बिन तड़पते हैं वो क्या वैसे कि जैसे हम
जो बेचैनी है सोहबत  की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
हुआ है अनमना सा दिल हुई कुछ शाम भी बोझिल
तम्मना आज ख़िलवत की इधर जैसी उधर भी क्या ? 
**
बग़ैर इक दूसरे के जी सकें और मर न पाएँगे
ज़रूरत ऐसी निस्बत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
मुहब्बत के लिए यलग़ार करना हो ज़माने पर 
तो हिम्मत है बग़ावत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
जुनून-ओ-जोश से लबरेज़ है क्या क़ल्ब उनका भी 
लगन दिल में जो मेहनत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
निभाई हैं सभी रस्में हमेशा प्यार की हमने
मगर इस्मत रिवायत की इधर जैसी उधर भी क्या ? 
**
दिया है अब उन्हें दर्जा  ख़ुदा का इश्क़ में हमने
रज़ा उनकी ज़ियारत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
मिसाल-ए-इश्क़ हो जाये 'तुरंत ' अपनी मुहब्बत भी
तमन्ना ऐसी उल्फ़त की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 451

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 31, 2020 at 2:31pm
मेरे ख़याल से रदीफ़ "इधर जैसी उधर भी है" करना उचित होगा ।
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 31, 2020 at 1:18pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब , क्या रदीफ़ ="इधर जो है उधर भी क्या ? "अथवा "इधर जैसी उधर है क्या ?"उचित रहेगा 

Comment by Samar kabeer on March 31, 2020 at 12:50pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन रदीफ़ ने सारा खेल बिगड़ दिया,इस पर विचार करें,और रदीफ़ बदलने का प्रयास करें ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 29, 2020 at 10:26pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'  साहेब , आदाब , आपकी हौसला आफ़जाई और त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने के बहुत बहुत आभार | शाइर नया हो या सीनियर ग़लतियाँ सभी को नज़र आ सकती है | "है " के प्रयोग के मुआमले में अक़्सर मैं कंफ्यूज रहता हूँ कि क्या ये ज़रूरी है भी या नहीं | रदीफ़ पूरे मिसरे को स्पष्ट करने के लिए यही आवश्यक लगा मुझे ,कई बार तकनीक से ज़ियादा भाव महत्वपूर्ण होते हैं | सी है लगाने से मेरे ख़याल में उतना स्पष्ट नहीं हो रहा  जितना जैसी लगाने में है | फिर भी कोशिश करूंगा ,पूरी ग़ज़ल एक बार संशोधित करने की | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 29, 2020 at 10:14pm

जनाब अमीरुद्दीन खा़न "अमीर साहेब , आदाब, आपकी हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ , आपकी इस्लाह सर आँखों पर | उर्दू लिखना पढ़ना आता नहीं है इसलिए उर्दू के शब्दों के सहीह रूप क्या है इसका अंदाज़ा हो नहीं पाता है | इसलिए निभाई और निबाही का झंझट रहता है , बगैर इक में तो वस्ल से हालाँकि तक्तीअ सहीह लग रही है| 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 29, 2020 at 6:47pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहिब, आदाब। आपने बड़ी मुश्किल रदीफ़ निभाई इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल में। दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल फरमाएँ।

हुज़ूर, मतले को पढ़ कर और कई अश'आर के मिस्रा-ए-सानी पढ़ कर मुझे 'है' की कमी महसूस हुई। कुछ सोचने के बाद एक रास्ता सूझा। अगर आपको उचित लगे तो रदीफ़ यूँ कर सकते हैं:
1222 1222
इधर सी है उधर भी क्या

रदीफ़ बदलने से आपको कुछ अश'आर में फेर-बदल करना पड़ेगा, जिनमें सानी में पहले से ही "है" मौजूद है, लेकिन बाक़ी अश'आर ज़ियादा स्पष्ट और प्रभावकारी हो जाएँगे, मुझे ऐसा लगता है।

/मिलन के बिन तड़पते हैं वो क्या वैसे कि जैसे हम/
इस मिसरे में 'कि' के स्थान पर 'ही' ज़ियादा उचित रहेगा

/बग़ैर इक दूसरे के जी सकें और मर न पाएँगे/
बग़ैर इक दूसरे के जी सकें हम और न मर पाएँ

आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान 'अमीर' साहिब से भी ग़ज़ल को बड़े ग़ौर से पढ़ कर टंकण त्रुटियों को इंगित किया है, जैसे दर्जा, सोहबत, और निभाई हैं। लेकिन "बग़ैर इक दूसरे के..." तो मुझे सही वज़न में प्रतीत हो रहा है अलिफ़-वस्ल की वज्ह से।

आदरणीय, मैं एक नौ-मश्क़ शाइर ही हूँ, और ये मेरी राय मात्र है, बाक़ी सौ फ़ीसदी मो'तबर इस्लाह तो उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की ही होगी। अगर आप को मेरे सुझाव लाभकारी लगें तो बेहद ख़ुशी होगी, अन्यथा इन्हें नज़र-अंदाज़ कर दीजियेगा। सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 29, 2020 at 1:55pm

जनाब 'तुरन्त ' बीकानेरी साहब आदाब। बहुत ही ख़ूबसूरत मज़्मून और तख़य्युलात बहुत ख़ूबसूरती से पेश किए गये हैं। कुछेक मामूली टाइपिंग चूक हो गयी हैं देखियेगा. जो बेचैनी है 'शोहबत' को सोहबत कर लें, तो 'निभाई'  'है' सभी रस्में को, निबाही हैं, दिया है अब उन्हें 'दर्ज़ा' को दर् जा मुनासिब होगा। मिसरा - बग़ैर इक दूसरे के, की तक्तीअ पर नज़रे सानी कर लें। ग़ज़ल के सभी अशआ़र बेहतरीन हैं। तहे दिल से मुबारकबाद कु़बूल फरमाइये। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service