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Samar kabeer's Blog – April 2015 Archive (7)

ग़ज़ल :- कहीं थे बाज़ू कहीं बदन था

बह्र :- फ़ऊल फ़ैलुन फ़ऊल फ़ैलुन



कहीं थे बाज़ू कहीं बदन था

हिजाब आलूद पैरहन था



निगाह ख़ंजर बनी हुई थी

नज़र हटाई तो गुलबदन था



कहाँ तलक उससे बच के चलते

वो डाली डाली चमन चमन था



समझ के गुलशन की बात की थी

मुराद मेरी तिरा बदन था



सालीक़ा लाओगे वो कहाँ से

सुना है फ़रहाद कोहकन था



हर एक मंज़िल पे देखा जाकर

वही सितारा वही गगन था



भला सा लगता था उन दिनों में

तिरी अदा में जो बांकपन था



अभी "समर" की… Continue

Added by Samar kabeer on April 29, 2015 at 10:43am — 29 Comments

ग़ज़ल :-एक चहरे में दूसरा क्या है

बह्र :- फ़ाईलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन



आईनागर ज़रा बता क्या है

एक चहरे में दूसरा क्या है



आग गुलज़ार कैसे बनती है

देखना है तो सोचता क्या है



किस लिये हम से पूछता है नदीम

तू नहीं जानता,हुवा क्या है



क्या छुपा कर रखा है सीने में

और होटों से बोलता क्या है



दिल को छू जाए तो ये जादू है

वरना आवाज़ में धरा क्या है



आईने की तरह चमकती है

हम बताऐं तुम्हें वफ़ा क्या है



दोनों बर्बाद हो गए देखो

दुश्मनी के लिये… Continue

Added by Samar kabeer on April 20, 2015 at 10:30am — 28 Comments

नसरी नज़्म :- "शाईरी"

शाईरी

सिर्फ़ ग़ज़ल का नाम नहीं

इसके अनेक रूप हैं

कहीं साया कहीं धूप है

शाईरी

सुक़रात ने की,मीरा ने की

मज़दूर ने की,धनवान ने की

इसमें क़ाफ़िया लाज़िम नहीं

इसमे बह्र भी लाज़िम नहीं

आप जो ख़ूबसूरत बाते करते हैं

वो शाईरी है

शाईरी नज़ाकत का नाम है

इससे सबको काम है

शाईरी के लिये लाज़िम है अहसास

दर्द भरा दिल,जैसे बिस्मिल

सब शाईर के हैं

शाईर सबका होता है

जैसे भगवान सब का होता है

शाईरी सिर्फ़ ग़ज़ल का नाम… Continue

Added by Samar kabeer on April 17, 2015 at 11:58pm — 12 Comments

नसरी नज़्म :- "शहीद"

उस शहीद का तसव्वुर

ज़ह्न से नहीं निकलता

शर्म से सर झुका हुवा है

दर्द दिल में छुपा हुवा है

इस तसव्वुर ने मेरे रोज़-ओ- शब

मेरे अपने नहीं रहने दिये

मैं उसी का होकर रह गया हूँ

कहीं खो गया हूँ

उसका रुत्बा मुझे झंझोड़ता है

सूखे ज़ख़्मों को फिर उधेड़ता है

मेरे अंदर सदा लगाता है

मेरे अहसास को जगाता है

मुझ से कोई सवाल है उसका

इश्क़ भी ला ज़वाल है उसका

मुझसे इतना ही चाहता है वो

उसकी क़ुर्बानी को मैं आम करूँ

और जिहालत का क़त्ल-ए-आम… Continue

Added by Samar kabeer on April 15, 2015 at 11:28am — 13 Comments

ग़ज़ल :- जैसे.मिरे अंदर से ख़ुदा बोल रहा है

बह्र :- मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुन





सच बोल रहा हूँ तो ये महसूस हुवा है

जैसे मिरे अंदर से ख़ुदा बोल रहा है



समतों क तअय्युन है न मंज़िल का पता है

इंसान मशीनों की तरह भाग रहा है



ठहरे हुए पानी पे कोई नाव रुकी है

इक गीत फ़ज़ाओं में अभी गूंज रहा है



इस हद पे हैं तहज़ीब की मिटती हुई क़दरें

रिश्तों को ज़मीनों की तरह बाँट दिया है



जिस दिन से दरिन्दों की सिफ़त आई है इसमें

इंसान ख़ुद अपना ही लहू चाट रहा है



फैले हुए हाथों पे… Continue

Added by Samar kabeer on April 12, 2015 at 10:52am — 16 Comments

ग़ज़ल :- तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

ख़ुद अपना घर जलाकर हँस रहा है



बड़े लोगों की बातें भी बड़ी हैं

लगा,जैसे समन्दर हँस रहा है



सलीक़ा मन्द रो देते हैं जिस पर

तू ऐसी बात सुन कर हँस रहा है



बुराई का बुरा अंजाम होगा

फ़क़ीरों पर तुअंगर हँस रहा है



नहीं है ख़ुश कोई आबाद होकर

कोई बर्बाद होकर हँस रहा है



समझ लेना क़यामत आ गई है

अगर देखो,सुख़न्वर हँस रहा है



मिरी बर्बादियों पर ख़ुश है इतना

वो दिल पर हाथ रखकर हँस रहा… Continue

Added by Samar kabeer on April 7, 2015 at 12:00am — 30 Comments

ग़ज़ल :-सभी कहते हैं अच्छा बोलता है

बह्र:- फ़ऊलुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन



सभी कहते हैं अच्छा बोलता है

जो हम बोलेंगे तोता बोलता है



हमारा काम क्या उन महफ़िलों में

जहाँ दौलत का नश्शा बोलता है



कोई लोरी सुनाओ,गीत गाओ

अधूरा एक सपना बोलता है



ज़रा महकी हुई ज़ुल्फों की ठंडक

कई रातों का जागा बोलता है



मैं सच्चाई की बातें कर रहा हूँ

समझते हैं दिवाना बोलता है



तिरी शक्ति है अपरम पार मौला

तिरे आगे तो गूंगा बोलता है



छुपाए से नहीं छुपती… Continue

Added by Samar kabeer on April 3, 2015 at 10:32pm — 40 Comments

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