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Sanjay Rajendraprasad Yadav's Blog – April 2011 Archive (4)

ये कैसा प्यार ?????

तुमने चाहा मेरा वजूद ही मर जाए  
किन्तु तुम्हारे प्यार में मै बुत था,

मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ. 
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,

तुम शौके बहार बन आए जीवन में 
मैंने भी सब कुछ नाम किया तुम्हारे
प्रीत प्याले को हाथ में देकर
तुम अमृत की जगह विष दे डाले.......  

तुम एक प्रेयसी बन के आए थे
तुम्हारी खुशबू से महक उठा मै 
नए जोश उमंग से घड़ियाँ प्रेम की बीतीं. 
ऐसा जख्म दिया साथी, ये जिंदगी है मुझसे रूठी........

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 20, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

प्रिय ,अभी

प्रिय ,अभी

वक्त कैसे बीत रहा हैं अब आप को क्या बताऊँ हर तरफ तुम्हारी ही यादें है .हर तरफ हर जगह तुम्ही दिख रहे हो .. तुम्हारी ओ मुस्कुराहट.. तुम्हारी आहट बन कर सताती है.......तुम्हें देखने की जो ललक  तब थी.. ओ…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 10, 2011 at 2:30pm — No Comments

क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए

"ओ भी क्या दिन थे..............
नानी की गोद में,
नाना के कंधे पे,
बेतहास मस्तियों में झूम रहे थे,
ना पढाई की सोच,
ना लाईफ के फंडे थे
ना कल की चिंता थी
ना भविष्य के सपने थे,
आज है कल की फिकर,
अधूरे है सपने,
मुड़कर जो देखा,
दूर बहुत है अपने,
मंजिल को ढूंढते ,
आज हम कहाँ खो गए,
क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए.....................,

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 7, 2011 at 2:00pm — 4 Comments

"मेरी एक याद....पत्र "

 

" जब बात चुक जाए और वक्त रेत की तरह हांथो से  फिसल जाए , तो दिल से शिर्फ़ हाय ही निकलती है ! और पश्च्याताप के शिवा कुछ भी हाँथ नहीं लगता, फिर जिंदगी उस पश्च्याताप की आग में जलने लगती है , आप जब मेरे जीवन में आये तो यह येसी भावना से आये तो टूटी-फूटी झोपड़ी में.रुखा-सुखा खा के जीवन ब्यतीत करने के इरादे से आये थे ! लेकिन जहां मेरी जगह होनी चाहिए थी वहां आप ऊँचे-ऊँचे महलों के ख्वाब पाले थे.यह समझने में मुझे बहुत वक्त लग गया,जब बात हमें समझ में आती तब-तक बहुत देर हो चुकी थी,और आप अपने लिए…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 6, 2011 at 4:24pm — No Comments

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