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Dr.Prachi Singh's Blog – May 2017 Archive (2)

अरी जिंदगी ! ले जाएगी मुझको बता किधर .....गीत/ डॉ० प्राची सिंह

नटी बनी थिरका करती है जब-तब डगर-मगर

अरी ज़िंदगी ले जाएगी मुझको बता किधर...



क्यों ओढ़ी तूने सतरंगी सपनों की चूनर

सपने पूरे करने की जब राहें हैं दुष्कर

माना मीठी मुस्कानें पलकों तक लाते हैं

पर कर्कश ही होते हैं बिखरे सपनों के स्वर



तिनका-तिनका ढह जाता है

नीड़ हमेशा, फिर

बुनती है क्यों वहीं घरौंदा, चंचल जिधर लहर

अरी ज़िंदगी...



छलकी आँखों को पलकों के बीच दबाती है

सिसकी के तन पर उत्सव का लेप चढ़ाती है

शब्द कहेंगे झूठ मगर… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 31, 2017 at 11:17am — 5 Comments

दो कुण्डलिया छंद

वो मेरा अस्तित्व थे, मैं उनकी प्रतिछाप

खोए जब पदचिह्न तो, गूँज उठी यह थाप

गूँज उठी यह थाप, रहा संकल्प अधूरा

आखिर कैसे कौन करेगा उसको पूरा

इतना विस्तृत गहन रहा भावों का घेरा

जो उनका संकल्प, बना है अब वो मेरा

हाय! अबोला सब रहा, कह पाती सब काश

अब कह दूँ कैसे अकथ, तोड़ समय का पाश

तोड़ समय का पाश, धार को कैसे…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 25, 2017 at 8:00pm — 7 Comments

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