मुखरता से हो रहा बदलाव..... और बदल रही तस्वीर...!
विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने और अधिकारों का उपयोग कर सर्वांगीण विकास करने के लिए संघर्ष नही करना पड़ा।समय के साथ सकारात्मक बदलाव भी हुये।पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज कराके अपनी आजादी की नई ईबारत लिखती हौसले बुलंद महिलाओं ने देश-विदेश में अपनी सफलता, उपलब्धियों का परचम फहराया। अपने संघर्ष, मेहनत,जज्बा,जुनून से हर सीमाओं को लांघकर कामयाबी हासिल कर नई ऊंचाईयां छूकर प्रेरणा…
Added by babitagupta on March 8, 2021 at 12:30pm — 3 Comments
मैं मानता हूँ कि यदि विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य विधाओं की छोटी रचनायें कहानियां आदि/अतुकांत कविताएं/ क्षणिकाएं/कटाक्षिकायें आदि सम्मिलित की जायें; योग्य हिंदी शिक्षकों द्वारा बढ़िया समझाई जायें, तो विद्यार्थी उन्हें अधिक पसंद करेंगे।
अभी विद्यालयों में हिंदी पाठ भलीभांति कहाँ समझाये जा रहे हैं? मुख्य कठिन विषयों…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on May 26, 2019 at 9:30am — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2019 at 11:31pm — 3 Comments
चारो तरफ से पानी..पानी..पानी की आवाज सुनाई दे रही है | जिधर देखो उधर पानी के लिए लम्बी कतारें व पानी के लिए जूझते लोग, पानी ढोते टैंकर से ले कर ट्रेन तक दिखाई दे रहे हैं | हैण्डपम्प, कुँए सूख गए हैं और तालाब अब रहे नहीं, उस पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं | पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है | देश का रीढ़ किसान आस भरी नजरों से आसमान की ओर देख रहा है | प्यास से घरती का कलेजा फट रहा है | विकाश के नाम पर वन प्रदेश खत्म होते जा रहे हैं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है क्यों की हम…
ContinueAdded by Meena Pathak on June 9, 2016 at 5:47pm — 4 Comments
अपने ही घर में दासी हिंदी
हिंदी धीरे- धीरे समृद्ध हुई और फली फूली है। संस्कृत के सरल शब्दों, क्षेत्रीय बोलियाँ / भाषाओं को लेकर आगे बढ़ी, पवित्र गंगा की तरह लगातार कठिनाईयों को पार करते हुए । उर्दू , अरबी, फारसी आदि भी छोटी नदियों की तरह इसमें शामिल होती गईं जिससे हिंदी और मधुर हो गई। आज हिंदी के पास विश्व की किसी भी भाषा से अधिक शब्द हैं। लेकिन आजादी के बाद से सरकार की नीति से हिंदी निरंतर उपेक्षित होती गई। हिंदी के शब्द कोष में…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 3, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
क्या आपको याद है ... आपने आखरी बार कब डुगडुगी की आवाज सुनी थी ?कब अपनी गली या घर के रास्ते में एक छोटी सी सांवली लड़की को दो मामूली से बांस के फट्टियों के बीच एक पतली सी रस्सी पर चलते देखा और फिर हैरतअंगेज गुलाटी मारते, बिना किसी सुरक्षा इन्तमाजात के | सोचिये , दिमाग पर जोर डालिए !!!
चलिए आज मैं याद दिलाती हूँ | याद है बचपन में जब स्कुल से आकर आप अपना बस्ता फेंक ,माँ के हिदायत पर हाथ मुँह धोकर ,कपडें बदल कर अपने दोस्तों के साथ झटपट खेलने जाने के मुड में होते थे तब…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 28, 2014 at 6:34pm — 15 Comments
आज पंद्रह अगस्त है, देश की स्वतंत्रता की याद दिलाने वाला एक राष्ट्रीय पर्व । एक ऐसा दिवस, जब स्कूल-कालेजों में मिठाई बंटती है, जिसका इंतजार बच्चों को रहता है – बच्चे जो अपने प्रधानाध्यापकों की उपदेशात्मक बातों के अर्थ और महत्त्व को शायद ही समझ पाते हों । एक ऐसा दिवस, जब सरकारी कार्यालयों-संस्थानों में शीर्षस्थ अधिकारी द्वारा अधीनस्थ मुलाजिमों को देश के प्रति उनके कर्तव्यों की याद दिलाई जाती है, गोया कि वे इतने नादान और नासमझ हों कि याद न दिलाने पर उचित आचरण और…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 14, 2014 at 1:30pm — 7 Comments
आज सामाजिकता और नैतिकता का किस कदर पतन हो गया है कि देख कर दुःख होता है | आज कल आप कान लगा कर सुनिए कुछ कराहें सुनाई देंगी जो बेटों की माओं की हैं | मुंह में कपड़ा ठूंस कर कराह रहीं हैं, छुप कर आँसू बहा रहीं हैं क्यों की उन्हें डर है कि किसी ने उन्हें रोते या कराहते देख लिया तो उसका गलत अर्थ निकालेंगे और वो उपहास के पात्र बन जायेंगे | आज बेटे बाले डरे सहमे से हैं और ये वो मध्यमवर्गीय माता पिता हैं जिन्होंने अपने बेटों को बड़े संघर्ष से पढाया लिखाया है | एक नही कई ऐसे परिवार मै देख रही हूँ जहाँ…
ContinueAdded by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:00pm — 18 Comments
स्त्री को आजादी वैदिक काल से ही मिली हुई है फर्क सिर्फ इतना है कि आज उस आजादी में कुछ निजी स्वार्थ समा गया है | वर्षों पहले से स्त्री को हर तरह की आजादी मिली हुई है अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने की आजादी.अपने मन मुताबिक़ पति चुनने की आजादी,अपने मर्जी से शिक्षा क्षेत्र चुनने की आजादी यहाँ तक कि वो रण क्षेत्र में भी अपनी मर्जी से जाती थी | उन्हें कोई रोक-टोक नही थी इसके बावजूद वो अपनी पारिवारिक जिम्मदारियां भी बखूबी निभाती थीं और अपने पति के पीछे उनकी प्रेरणा बन के खड़ी रहती थी तो आज ऐसा क्यों नही…
ContinueAdded by Meena Pathak on December 23, 2013 at 2:00pm — 20 Comments
अब तक तो सभी घरों मे रंग रोगन होकर नए तरीके से सभी के घर भी सज चुके है । जिन घरों मे रंग रोगन नहीं हुआ है वहाँ साफ सफाई होकर सज सज्जा के साथ घरों को लक्ष्मी जी के आगमन हेतु तैयार कर लिया गया है । इस दिवाली लक्ष्मी जी सभी के घरों को खुशियों से भर दें । सभी के मनों मे प्रेम, सौहार्द्य एवं सच्चाई का उजाला भर दें ।कहा जाता है कि दीपावली कि रात्री मे विष्णु प्रिया श्री लक्ष्मी सदगृहस्थों के घर मे प्रवेश कर यह देखती है कि हमारे निवास योग्य घर कौन…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 2, 2013 at 9:30pm — 16 Comments
{सभी आदरणीय सजृनकर्ताओं को प्रणाम, एक माह तक भारतीय रेल सिगनल इंजीनियरी और दूरसंचार संस्थान , सिकन्दराबाद - आंध्र प्रदेश में नवीन तकनीकी ज्ञान अर्जन करने के कारण ओ बी ओ परिवार से दुर रहना पड़ा, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ । पुनः प्रथम रचना के रूप में यह आलेख प्रस्तुत है}
हमारे जीवनयापन की आवश्यकताओं के बाद सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है हमारी अभिव्यक्ति अर्थात हमारी बोलने की जरूरत, जिसके बिना इंसान का जीवन कष्टमय हो जाता है । यदि किसी को कठोर सजा देनी होती है तो उसे…
ContinueAdded by D P Mathur on September 30, 2013 at 8:30pm — 8 Comments
1 / आजादी के बाद ही हमें हिंदी को राष्ट्रभाषा, सरकारी कामकाज व न्यायालय की भाषा अनिवार्य रुप से घोषित कर देनी थी, पर अंग्रेज एवं भारत के अंग्रेजी पूजकों के बीच हुए समझौते ने और उसके बाद सत्ता पर बैठे अंग्रेजी समर्थकों ने भारत की आजादी को गुलामी का एक नया रुप दे दिया। “ तन से आजाद पर मन से गुलाम भारत का " और उसी दिन से शुरू हो गई भारत को धीरे - धीरे इंडिया बनाने की साजिश।
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2 / आजादी के बाद सत्ता के चेहरे तो बदल गये पर चरित्र नहीं बदले। अंग्रेजों ने उन्हें पूरी तरह…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 14, 2013 at 7:00pm — 16 Comments
इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…
ContinueAdded by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments
खबर पढ़ी दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार पीडिता को मरणोपरांत "स्त्री -शक्ति सम्मान " से सम्मानित किया गया .मंत्रालय की मुहर लग गई। "उसे बहादुर बालिका" की उपाधि से सम्मानित किया गया।
मुझे जहाँ तक ज्ञात है सम्मान किसी उपलब्धि पर दिया जाता है। इस केस में क्या उपलब्धि रही समझ नहीं आया। क्या उस घटना के बाद सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत हो गई कि भविष्य में ऐसी कोई घटना दोहराई न जा सके? नहीं। फिर उसका गैंगरेप हुआ क्या यह उपलब्धि रही।? या तमाम सरकारी चिकित्सकीय सुविधाओं को मुहैया कराने…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on March 8, 2013 at 9:00pm — 10 Comments
सृष्टि की महत्त्वपूर्ण रचना है नारी । यदि नारी नहीं होती तो आज हम इस सम्पूर्ण सृष्टि की कल्पना करने में भी असमर्थ होते । इस सृष्टि के विकास में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान है । वह मानव जीवन की संचालिका और मूलाधार है । मानव-जीवन उसके अनेक रूपों और उत्तरदायित्वों से भरा पड़ा है । वह माँ है, बहिन है, पत्नी है, प्रेयसी है, पुत्री है और कहीं-कहीं प्रेरणास्त्रोत भी है । यदि नारी अपने प्रेम और सौन्दर्य से मानव-जीवन को…
ContinueAdded by Savitri Rathore on March 8, 2013 at 5:30pm — 8 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on January 14, 2013 at 12:00pm — 10 Comments
काल खंड को मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग किया जाता है उसे काल निर्णय, काल निर्देशिका या कलेंडर कहते हैं|
दुनिया का सबसे पुराना कलेंडर भारतीय है | इसे स्रष्टि संवत कहते हैं,इसी दिन को स्रष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है| यह संवत १९७२९४९११३ यानी एक अरब, सत्तानवे करोड़ ,उनतीस लाख, उनचास हज़ार,एक सौ तेरह वर्ष (मार्च २०१२ तक, विक्रम संवत २०६९ के प्रारंभ तक ) पुराना है|
हमारे ऋषि-…
Added by dr a kirtivardhan on January 11, 2012 at 4:30pm — 3 Comments
हिंदी रंगमंच की शुरुआत दो तरह से हुई, एक पारंपरिक तरीके से और दूसरा अंग्रेजो की नक़ल से पारंपरिक तरीके से उगे रंगमंच को लोकमंच का नाम मिला और दुसरे को आजकल की भाषा में रंगमंच बोलते है |
अंग्रेजो को गर्मी में भी भारत में रखने के लिए अंग्रेजी रंगमंच को भारत बुलाया जाता था इसी के जवाब में भारतीयता से लोटपोट पारसी थियेटर का जनम हुआ जो धीरे धीरे अपना स्वरुप बदलता हुआ आज का रंगमंच बना | ज्यादा इतिहास में जाये तो आधुनिक रंगमंच का जनक इब्राहीम अलका जी को माना जा सकता है | जवाहर लाल जी इनसे…
ContinueAdded by sitaram singh on December 6, 2011 at 12:00pm — 2 Comments
दुधवा के गैंडों को मिलेगी नयी पहचान
Added by D.P.Mishra on November 25, 2011 at 6:30pm — 1 Comment
अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में
संजीव वर्मा 'सलिल'
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राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:
किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:00am — No Comments
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