For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ram Ashery's Blog (34)

हवा

हवा का बहता झोका

तन मन को है छूता

मानवता को दर्शाता

मित्र शत्रु को हर्षाता

कोई भेद नहीं करता

बारिस में वर्षा लाता

भूमि की प्यास बुझाता

दुनिया में प्यार बांटता

प्यार में धोखा खाता

हवा बवंडर बन जाता

अपनी दिशा भटकता

समाज में तबाही लाता 

जड़ से दरख्त उखाड़ता

जग से अस्तित्व मिटाता

उसे अंबर तक ले जाता

निर्दोषों को देता सजा

वृक्षो की डाली तोड़ता

छीनता पक्षी का…

Continue

Added by Ram Ashery on April 1, 2016 at 4:00pm — 3 Comments

होली, का त्योहार

रंगो का त्योहार है होली आओ मिलकर खेले

भेद भाव सब दूर भगाकर आओ होली खेले ॥

जो अपने भूले भटके हैं

धर्म दीवारों से बिछड़े हैं

और दूर देश में अटके हैं

कड़वी पर यह सच्चाई है

एक प्यार भरा संदेशा है

यह आज सुनहरा मौका है

रंगो का त्योहार है होली आओ मिलकर खेले

भेद भाव सब दूर भगाकर आओ होली खेले ॥

दुख सुख का यह जीवन है

यहाँ मिलकर सबको रहना है

हमें जीवन बाधा से लड़ना है

दुश्मन से देश को बचाना है

हमें मिलकर आगे…

Continue

Added by Ram Ashery on March 18, 2016 at 8:00am — 1 Comment

शिल्पी और धूप

सदा सच से दूर भागते

धूप ताप सब सह जाते

भगवान की मूर्ति बनाते

पूजा के हैं नियम बनाते

धर्म के पीछे ढोग रचाते

धूप दीप और नैवेद चढ़ाते

हवन के नाम अन्न जलाते

पत्थर पर हैं दूध पिलाते

भूखे बालक दूध न पाते

शिल्पी इनको जरा न भाते

उसे मूर्ति को छूने नहीं देते

मूर्ति को भगवान बताते  

मंत्रो का उच्चारण करते

सुबह शाम आरती करते

शंख मजीरा ढ़ोल बजाते

सदा सुख की आशा करते  

नारायण की कथा…

Continue

Added by Ram Ashery on March 11, 2016 at 9:00am — 5 Comments

कोयल

बसंत की शोभा बनती  

कोयल मीठी बोलती

डाली डाली पर उड़ती

अमृत रस है घोलती

राही से कुछ कहती

नव उमंग से भरती

तन की पीड़ा हरती

मन में खुशियाँ भरती

कड़वाहट को दूर करती

सबका दिल है जीतती

प्यारी सबको लगती

कौवे पर नजर रखती

सदा मेहनत से बचती

घोसले का इंतेजार करती

मौका देख खुद अंडे देती

कौवे के अंडे बाहर करती

उसके संग साजिस करती

बच्चों को नहीं पालती

कोयल कौवे संग…

Continue

Added by Ram Ashery on February 13, 2016 at 4:30pm — No Comments

ज़िंदगी और मौत के बीच फासला कितना,

ज़िंदगी और मौत के बीच फासला कितना,

पता नहीं किसी को कब आ जाए फरिस्ता ।

मौत के सौदागर उगाते हैं घृणा की फसल

समाज में खड़ी करते हैं नफरत की दीवार ।

बुझाते सभी के सामने जलता हुआ चिराग

सोचो सच और झूठ में अंतर है कितना ॥

एक बंदा भरी में कुछ आंशू बहा के कहता

विश्वास करो मुझपर हूँ भरी सभा में कहता ।

आज हमारे समाज से मिट रही साहिस्णुंता

आज घोल रहे विष देश में कुछ हमारे नेता ॥

मैं तुम्हारे दुख की घड़ी में बेहद गम जुदा हूँ

कोई…

Continue

Added by Ram Ashery on January 29, 2016 at 10:00pm — 3 Comments

सागर की लहरें

सागर की उठती गिरती लहरें, पथ पर चलना सिखा रही ।  

ढूंढती पल पल किनारा, मंज़िल से पहले कभी रुके नहीं  ।  

सारी व्यथा अपने मन की आपस में एक दूसरे से कहती ।

सागर की गहरी शांति के विरुद्ध रौद्र रूप भरकर बहती ।

ख़तरों से आगाह कराती मंज़िल से पहले कभी रुके नहीं   ।

हर काल परिस्थिति में हमको जीवन लक्ष्य बता देती ।

घायल, व्यथित खतरों से खेल, किनारों से दांस्ता कहती ।

संदेशा मानव को देकर कुछ खट्टे मीठे अनुभव कहती ।

आदि से लेकर अंत तक का लेखा…

Continue

Added by Ram Ashery on January 29, 2016 at 3:00pm — 6 Comments

देखो कानून की परिभाषा कैसे बदल जाती है,

देखो कानून की परिभाषा कैसे बदल जाती है,

नेताओं को बेल और गरीब को जेल हो जाती है ।

यहाँ धनवानों का  सारा ऋण माफ हो जाता है,

किसान की ज़िंदगी ऋण में ही साफ हो जाती है ।

किसी बात पर यूं ही कभी इतबार मत करना,

घट जाए कोई घटना तो तकरार मत करना ।

विश्वास और धोखा एक ही सिक्के दो पहलू है,

एक जीने का मकसद और दूसरा छीन लेता है ।

चंदा और रोशनी एक दूजे के संग में घूम रहे ,

पर दिन में  एक दूसरे के विरुद्ध जंग लड़ रहे ।

गरीब का आरक्षण कुछ…

Continue

Added by Ram Ashery on January 22, 2016 at 10:30pm — 1 Comment

दास्तां अपने धरा की

अजीब दास्तां दोस्तों अपने धरा की,

प्रति पल चलती पर दिखती है स्थिर।

बदलते मौसम बताते गति धरा की

पर बिगड़ने बनने से हम हैं बेखबर ।

ये ऊंचे ऊंचे पर्वत मस्तक धरा की

इनकी उपयोगिता से हम हैं बेखबर ।

मानव जीवन है श्रेष्ठ धरोहर धरा की

उत्थान की पराकाष्ठा से हम बेखबर ।

आज बिगाड़ रहा संतुलन धरा की

हर दिन हो रहे विनाश से बेखबर ।

ये बहती हुई नदियां शोभा धरा की

इनमें बढ़ते प्रदूषण से हम बेखबर ।

प्राण दायिनी वायु है शान धरा की

इसमें घुल रहे जहर से… Continue

Added by Ram Ashery on January 16, 2016 at 5:00pm — 3 Comments

वतन की शान

शिक्षा की जब ज्योति जले, विकसित होवे लोग।  

समाज को जब पंख मिले, खुशियाँ भोगें लोग ॥ 

भूख गरीबी जीत के, निर्भर हुआ अब देश ।

बोए बीज अब प्रेम के, प्रगति कर चला देश ॥  

गलत इरादे दुश्मन के, बढ़ा रहे अब क्लेश । 

हम रखवाले वतन के, जग को दे दो संदेश ॥  

परचम ऊंचा हो तभी, फैले चारों ओर । 

आन मान सम्मान सभी, करें साथ गठजोर ॥ 

करुणा सबके मन जगे, कोई दुखी न होय ।

हृदय से सब गले मिले, नफरत दूरी होय ॥

आतंकवाद के कष्ट को, जल्दी करेगे…

Continue

Added by Ram Ashery on January 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments

दीपोत्सव

हम खुशियों के दीप जलाकर मना रहे हैं दीपोत्सव

सच्चे विकास का संकल्प लेकर आगे बढ़ते प्रतिदिन

रूढ़िवादिता को त्यागकर हम करते नवयुग का वंदन

प्रेम का पावन पौध उगाकर करते एकता का संवर्धन

अज्ञानता की घनी रात का ज्ञानदीप से करते स्वागत

मतभेदों को आज हटाकर हम करते सबका अभिनंदन

भूल सारी बैर भावना करते देश हित में आत्म समर्पण   

दुख से ग्रसित सभी जनों की पीड़ा का करते हम मर्दन

फूल और कांटे ज्यों सब मिलकर शोभित करते उपवन

भँवरे मिलकर…

Continue

Added by Ram Ashery on November 14, 2015 at 9:58am — 1 Comment

हिन्दी का विकास

क्यारी देखी फूल बिन ,माली हुआ उदास ।

कह दी मन की बात सब, जा पेड़ों के पास ॥

हिन्दी को समृद्धि करन हित, मन में जागी आस ।

गाँव गली हर शहर तक ,करना अथक प्रयास ॥

कदम बढ़ाओ सड़क पर ,मन में रख कर विश्वाश ।

मिली सफलता एक दिन ,सबकी पूरी आश ॥

सूरज चमके अम्बर में , करे तिमिर का नाश ।

अज्ञानता का भय मिटे, फैले जगत प्रकाश ॥

चंदा दमकी आसमान  ,गई जगत में छाय ।

हिन्दी पहुंची जन जन में, तब बाधा मिट जाय ॥

हिन्दी हमारी ताज अब, सबको रख कर पास…

Continue

Added by Ram Ashery on July 17, 2015 at 6:54pm — 3 Comments

जीवन का रहस्य

समय छिपा जा सूर्य चक्र में ,जहां दुनिया  सारी डोले

धरती से लेकर आसमान में ,नित नये रहस्य को खोले !

कली के अंदर छिपे फूल  में, अपना नाना रूप छिपाये

घूम- घूम कर मधुकर उपवन में, सुंदर राग सुनाये !

फूल के अंदर छिपे सुगंध में , अमृत के कण घोले…

Continue

Added by Ram Ashery on June 21, 2015 at 10:00am — 1 Comment

योग साधना

 

योग भगाये तन के सब रोग,

मन में सच्चा विस्वास जगाए।   

जो नित करे जीवन में योग,

भव बाधा जीवन से मिट जाएँ ॥  

मन मस्तिष्क का सुंदर संयोग

चुस्त और तंदुरुस्त शरीर बनाए…

Continue

Added by Ram Ashery on June 21, 2015 at 9:47am — 2 Comments

अपेक्षा का दीप

अपेक्षा का दीप

मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में

बुझे दीप न तेज हवा से सुरक्षा बाढ़ लगाया।

लक्ष्य को छूने का दृढ़ संकल्प लिया मन में

त्याग और बलिदान से प्रेरित मंत्र अपनाया ।

छल,कपट,ईर्ष्या कभी टिके नहीं अंतस्थल में

नैतिक मूल्यों के संस्कार का आवृत्त बनाया ।

मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में

दया धर्म सद्भाव बढ़े आज सभी के जीवन में

अपेक्षा की आस लिए मैंने एक दीप जलाया।

स्नेह का तेल भरा ज्योति ज्ञान की जीवन में

मन में धीरज…

Continue

Added by Ram Ashery on May 9, 2015 at 9:56am — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service