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पहला क़दम ज़रूरी है .....

देखो मंज़िल से क़दमों की बस इतनी सी दूरी है

माना मुश्किल होता है पर पहला क़दम ज़रूरी है



पग-पग पर हम सही ग़लत चुन

अपना जीवन गढ़ते हैं

छोटे-छोटे लक्ष्य भेद कर

उसमें ख़ुशियाँ मढ़ते हैं

झूठा है हर एक बहाना झूठी हर मजबूरी है



आधे मन से अगर बड़े तो

बस भटकन ही पाएँगे

नहीं छँटेगा कभी धुँधलका

राहों में खो जाएँगे

जीत हार की बात व्यर्थ है कोशिश अगर अधूरी है



लक्ष्य अगर तय कर लें तो फिर

सच्ची लगन लगानी होगी

जिसमें मन दिन… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on August 1, 2017 at 2:52pm — 3 Comments

भीगी सी रुत आई ....//डॉ० प्राची

भीगी सी रुत आई



भीगा सावन भीगी पलकें भीगी सी रुत आई

मन के पन्नों से यादों की मिटती नहीं लिखाई



पहली बारिश में तेरे संग बेसुध हो इतराना

बूँदों के मोती छिटकाना छिटका कर शरमाना

पक्के रस्ते छोड़छाड़ खुद जाना पगडण्डी से

तर हो कर बारिश में छप-छप पानी भी छपकाना



उन भीगी शामों में गर्म चाय की फिर गरमाई

मन के पन्नों से....



रात-रात भर जाग-जाग कर वो मेहंदी रचवाना

हर नन्हें-नन्हें बूटे में तेरा प्यार सजाना

मेहंदी रची हथेली पर… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on July 26, 2017 at 1:25am — 8 Comments

...जब हर ओर विसंगतियाँ हैं (गीत)

कहाँ भला ख़ुशियों को ढूँढें 

जब हर ओर विसंगतियाँ हैं...

क़समों-वादों के पत्तों पर सजे हुए हर ओर जुए हैं 

सतहों तक स्पर्श रुके बस, कोर किसी ने कहाँ छुए हैं 

कोशिश बिन रेशम से नाज़ुक बन्धन अब कैसे सँवरेंगे 

जीवन की आपाधापी में रिश्ते जब बेमोल हुए हैं

उफ़! विकल्प हैं अपनों के भी 

बाँचे कौन! कहाँ कमियाँ हैं ?

कहाँ भला ख़ुशियों को ढूँढें जब हर ओर विसंगतियाँ हैं...

मानवता का घूँघट ओढ़े दानव बैठे घात…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on June 14, 2017 at 9:15pm — No Comments

अरी जिंदगी ! ले जाएगी मुझको बता किधर .....गीत/ डॉ० प्राची सिंह

नटी बनी थिरका करती है जब-तब डगर-मगर

अरी ज़िंदगी ले जाएगी मुझको बता किधर...



क्यों ओढ़ी तूने सतरंगी सपनों की चूनर

सपने पूरे करने की जब राहें हैं दुष्कर

माना मीठी मुस्कानें पलकों तक लाते हैं

पर कर्कश ही होते हैं बिखरे सपनों के स्वर



तिनका-तिनका ढह जाता है

नीड़ हमेशा, फिर

बुनती है क्यों वहीं घरौंदा, चंचल जिधर लहर

अरी ज़िंदगी...



छलकी आँखों को पलकों के बीच दबाती है

सिसकी के तन पर उत्सव का लेप चढ़ाती है

शब्द कहेंगे झूठ मगर… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 31, 2017 at 11:17am — 5 Comments

दो कुण्डलिया छंद

वो मेरा अस्तित्व थे, मैं उनकी प्रतिछाप

खोए जब पदचिह्न तो, गूँज उठी यह थाप

गूँज उठी यह थाप, रहा संकल्प अधूरा

आखिर कैसे कौन करेगा उसको पूरा

इतना विस्तृत गहन रहा भावों का घेरा

जो उनका संकल्प, बना है अब वो मेरा

हाय! अबोला सब रहा, कह पाती सब काश

अब कह दूँ कैसे अकथ, तोड़ समय का पाश

तोड़ समय का पाश, धार को कैसे…

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Added by Dr.Prachi Singh on May 25, 2017 at 8:00pm — 7 Comments

मैं अलमस्त फकीर ..... गीत / डॉ० प्राची

टिपर-टिपर-टिप

टिपर-टिपर-टिप

पानी की इक बूँद झूम कर

मुस्काई फिर ये बोली...

मैं अलमस्त फकीर

टिपर-टिप

मैं अलमस्त फकीर...



चंचलता जब ओस ढली तो

पत्तों नें भी जोग लिया,

उनके हिस्से जितना मद था

सब का सब ही भोग लिया,



बाँध सकी पर बूँदों को कब

कोई भी ज़ंजीर...

टिपर-टिप

मैं अलमस्त फकीर...



रिमझिम-रिमझिम जब बरसी तो

जीवन के अंकुर फूटे,

अम्बर की सौंधी पाती ने

जोड़े सब रिश्ते टूटे,



बूँदें ही…

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Added by Dr.Prachi Singh on April 24, 2017 at 10:00pm — 8 Comments

कसमें चलो मासूम लें ....गीत /डॉ० प्राची

लिख दें इबारत इश्क की, 

आओ ज़रा सा झूम लें..

इक दूसरे को जी सकें, कब वक़्त ही इतना मिला 

बस दूरियाँ थामे रहीं नज़दीकियों का सिलसिला,

कुछ पल मिले हैं साथ के आओ इन्हें जी लें अभी 

हमको मिलें ये पल न जाने ज़िंदगी में फिर कभी,

ले उँगलियों में उँगलियाँ 

आओ ज़रा सा घूम लें ...

लिख दें...

जब प्यार के एहसास के पहलू कई हैं अनछुए 

क्यों पूछते हैं आप फिर गुमसुम भला हम क्यों हुए ?

सपने हमारे…

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Added by Dr.Prachi Singh on April 5, 2017 at 6:06pm — 4 Comments

मन में रोंपा है हमने तो केवल केसर ..... नवगीत //प्राची

सौंधा-सौंधा

चहका-चहका

मन में रोंपा है हमने तो

केवल केसर...



बन फुहार कुछ तुम भी बरसो

ख़ुद को आज तरल होने दो,

उहापोह अब छोड़ो सारी

ख़ुद को ज़रा सरल होने दो,



गुमसुम पल बस प्यार भरी इक

आहट से ही खिल जाएँगे,

प्रश्न सदा जो रहे निरुत्तर

उनके भी हल मिल जाएँगे,



कठिन कहाँ है

मन को छूना ?

छू लोगे तो, रंग न छूटेगा

जीवन भर...



सूखा भावों का दरिया तो

जीवन होगा मरुधर जैसा,

फिर बबूल औ' नगफनी… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 29, 2017 at 3:00pm — 3 Comments

किसे ये सब समझाऊँ .... स्त्री की ज़िंदगी का एक पहलू // डॉ० प्राची

रात सिसकती सुबह सुलगती, है जीवन का लेख

दर्द भरा सागर आँखों में, कौन सका है देख ?

कहाँ मैं अश्रु बहाऊँ ?

किसे मैं व्यथा सुनाऊँ ?



बेटी थी जिस घर की उसने छीन लिए अधिकार

हक़ माँगा तो रिश्तों में पहुँचेगी बड़ी दरार !

क्या बोलूँ ? किससे बोलूँ ? समझेगा मुझको कौन ?

अपने हक़ की बात करूँ या रह जाऊँ फिर मौन ?

कौन सा क़दम उठाऊँ ?

कभी ये समझ न पाऊँ !!!



कठपुतली सा नाच नचाती है मुझको ससुराल

घर की लक्ष्मी का दासी से भी बद्तर है हाल,

जितना… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 9:00am — 12 Comments

हिस्सेदारी आज हमारी बिल्कुल सेम टु सेम .....अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष /डॉ० प्राची

नया रंग, तस्वीर नयी है, आज नया है फ़्रेम

हिस्सेदारी आज हमारी बिल्कुल सेम टु सेम



बड़े-बड़े कामों को झटपट देती हूँ अंजाम

अपनी क़ाबिलियत से मैं छूती हूँ नये मुक़ाम,

सैटेलाइट लाउंचिंग हो या हो अंतरिक्ष अभियान

फ़ाइटर जैट पायलट हो या हो दंगल का मैदान,



जीवन के हर इक पहलू में आज कमाया नेम

हिस्सेदारी...



मैं सूरज से आँख मिला कर जब करती हूँ बात

हर डर को, हर बंधन को तब-तब देती हूँ मात,

जब आवाज़ उठा कर पाया ख़ुद अपना सम्मान

सच्ची… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 6, 2017 at 12:21pm — 9 Comments

प्रेम कहाँ पूरा होता है.... गीत / डॉ० प्राची

इक क़तरा भी रह न जाए, करना होगा ख़ुद को अर्पण,

प्रेम कहाँ पूरा होता है, अगर अधूरा रहे समर्पण।



लहर-लहर लहरें इतराकर

जी भर चंचलता तो जी लें,

हो वाचाल अगर अंतः तो

कैसे फिर होठों को सी लें,

तृप्त हुई लहरें खुद थम कर आखिर बन जाती हैं दर्पण।

प्रेम...



बारी-बारी इक दूजे में

आओ हो जाएँ हम-तुम गुम,

मुझको भी अभिव्यक्ति मिले और

ख़ुद को भी अभिव्यक्त करो तुम,

रात दिवस से, दिवस रात से, यही कहा करते हैं क्षण-क्षण।

प्रेम...…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2017 at 12:00pm — 7 Comments

बस लहर थामे रहे व्यवहार .....गीत/प्राची

जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल

मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...



ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ

खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ

अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...



हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए

आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए

गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...



आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी

आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी

प्यार का विश्वास…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 12, 2017 at 11:00am — 10 Comments

हैपी चौकलेट डे ....//डॉ० प्राची

Happy Chocolate Day

एक चौकलेटी गीत के साथ



बंद करो इस लुका-छिपी को

दिल का हर इक राज बताओ,

चौकलेट्स लिये तोहफ़े में

आओ पास अभी आ जाओ।



कुछ मुस्काकर कुछ इतराकर

परतें चलो सुनहरी खोलें,

इक दूजे का मीठापन रख

आज जुबाँ में मिसरी घोलें,



छोड़ो मन की भूल-भुलैया

आओ जल्दी हाथ मिलाओ। चौकलेट्स...



जो मैं बोलूँ वो तुम समझो

मैं भी समझूँ जो तुम बोलो,

पास बैठ कर, हँस कर रो कर

दिल की सारी गाँठें खोलो,



कितना… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 9, 2017 at 8:52am — 5 Comments

मन शायद अपना अस्तित्व टटोल रहा है // डॉ० प्राची

फिर बिसरी यादों के पन्ने खोल रहा है,

मन शायद अपना अस्तित्व टटोल रहा है।



गुमसुम गुपचुप ठिठकी सी खिड़की ने अपनी

छोड़ी सकुचाहट भर ली जी भर अँगड़ाई,

रेशम पर बिखरे फूलों ने सिलवट-सिलवट

आहिस्ता से रीत मोहब्बत की दोहराई,



सुध-बुध बिसराए मुस्कानें ओढ़े तन पर

करवट-करवट क्यों मदमाता डोल रहा है?

मन शायद...



रुकी-रुकी पलकों पर दी सपनों ने दस्तक

रुँधे कण्ठ ने आस गीत गाए फिर गुनगुन,

फिर बाँधे मन्नत के धागे मंदिर-मंदिर

कोमल एहसासों के… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 2, 2017 at 1:13pm — 10 Comments

परिवर्तन....(नवगीत) // डॉ० प्राची

नियति चक्र में 

परिवर्तन निश्चित अंकित है,

होना है, हो कर रहता है...

समय प्रबल है 

जोड़-तोड़ से कब बंधता है 

बहना है, प्रतिपल बहता है...

आँख मींचते 

आवरणों को क्यों पकड़ा है ?

छोड़ो इनको, हट जाने दो,

धुंध सींचते 

संबंधों के रिसते बादल

गर्जन करके छट जाने दो,

मकड़जाल में 

अपने मन के फँसे रहे तो

फिर क्या होगा? कुछ तो सोचो !

भीतर-बाहर

परिवर्तन तो करना होगा 

जमी सोच की परतें…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on January 22, 2017 at 8:00pm — 10 Comments

नई सुबह की आहट....//डॉ० प्राची सिंह

बुलबुल ने छोड़ा पंखों पर

अब बोझा ढोना,

नई सुबह की आहट अब

तुम भी पहचानो ना....



अंतर्मन में गूँजी जबसे

सपनों की सरगम,

अपने रिसते ज़ख्मों पर रख

हिम्मत का मरहम,



झूठे बंधन तोड़ निकलना

सीख चुकी है वो,

बाहों में भर लेगी अम्बर

चाहे जो भी हो,



रहने देगी नहीं अनछुआ

कोई भी कोना....

नई सुबह की आहट अब

तुम भी पहचानो ना....



क्यों बाँधे उसके पल्लू में

बस भीगे सावन,

भर लेना है हर मौसम से

अब उसको…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on January 5, 2017 at 2:00pm — 14 Comments

सपने फिर सजाऐं.......//डॉ० प्राची

साल इक जाए प्यास देकर,

साल इक आए आस लेकर,

संग हम इनके

खिलखिलाएं,

आओ चलो

सपने फिर सजाऐं...



कोई यादों की खिड़कियों से

आए औ' धड़कन मुस्कुरा दे,

बिन कहे कहने जब लगे वो

अपने दिल के सारे इरादे,



ऐसा इक मीठा सा तराना

अनसुना करने का बहाना,

छोड़ कर

धुन ये गुनगुनाएं,

आओ चलो

सपने फिर सजाऐं...



तोड़ कर बंधन रोज भागें

थाम कर उँगली कब चली हैं,

इनका अम्बर ही है ठिकाना

ख्वाहिशें कितनी मनचली हैं,…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on December 31, 2016 at 8:30pm — 12 Comments

पतझड़

दिल के रिश्तों की बगिया में जब भी पतझड़ आता है.

ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...



दिल को तो पतझड़ में भी

जाने क्यों सावन याद रहे,

दिल कोई तिनका है क्या

जो हालातों के साथ बहे?

सावन इसने अपनाया,ये पतझड़ भी अपनाता है...

ठूँठ बनी उम्मीदों में विश्वास छुपा मुस्काता है...



बागबान बन कर जिसने

रिश्तों की हर डाली सींचीं,

वो पागल क्या समझेगा

क्यों सावन ने बाँहें खींचीं?

इंतज़ार में सावन के वो फिर-फिर पलक बिछाता… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on December 20, 2016 at 8:30pm — 4 Comments

चाहना उसकी मगर गल जाए वो...ग़ज़ल//डॉ. प्राची

वक्त के साँचे में जो ढल जाए वो।
फिर कहीं ना आपको खल जाए वो।

है उसे सौगन्ध पिघलेगा नहीं
चाहना उसकी मगर गल जाए वो।

सिसकियाँ भरती रही वो लाश बन
वक्त से कहती रही टल जाए वो।

आँधियाँ बन खुद बुझाते हो जिसे
कह रहे हो दीप सा जल जाए वो।

ज़िद तुम्हारी है हवा को बाँधना
दोष मत देना अगर छल जाए वो।

मौलिक और अप्रकाशित
डॉ.प्राची सिंह

Added by Dr.Prachi Singh on November 10, 2016 at 6:30am — 3 Comments

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