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Sushil Sarna's Blog (884)

३ क्षणिकाएँ : याद

३ क्षणिकाएँ : याद

आँच
सन्नाटे की
तड़पा गई
यादों का शहर

.......................

एक टुकड़ा
चमकता रहा
ख़्वाब का
मेरी खामोशियों में
तुम्हारी याद का

..........................

पिघलती रही
यादों की बारिश
बंद आँखों की
झिर्रियों से
दर्द बनकर
उल्फ़त का

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 4:50pm — 6 Comments

आज पर कुछ दोहे :

आज पर कुछ दोहे :

झूठ सरासर भूख से, तन बनता बाज़ार।

उजले बंगलों में चलें, कोठे कई हजार।।

नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार।

नज़र नज़र में बिक गया, एक तन कई बार।।

नज़रों में है प्यार का, झूठ भरा संसार।

प्यार ओट में वासना, का होता व्यापार।।

कलियों का तन नोचतीं, वहशी नज़रें आज।

रक्षक भक्षक बन गए, लज्जित हुआ समाज।।



हुई पुरातन सभ्यता, नव युग हुआ महान।

बेशर्मी पर आज का, गर्व करे इंसान।।

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on July 6, 2020 at 9:46pm — 4 Comments

ख़्वाबों के रेशमी धागों से .......

ख़्वाबों के रेशमी धागों से .......

कितना बेतरतीब सा लगता है

आसमान का वो हिस्सा

जो बुना था हमने

मोहब्बत के अहसासों से

ख़्वाबों के रेशमी धागों से

ढक गया है आज वो

कुछ अजीब से अजाबों से

शफ़क़ के रंग

बड़े दर्दीले नज़र आते हैं

बेशर्म अब्र भी

कुछ हठीले नज़र आते हैं

उल्फ़त की रहगुज़र पर शज़र

कुछ अफ़सुर्दा से नज़र आते हैं

हाँ मगर

गुजरी हुई रहगुज़र के किनारों पर

लम्हों के मकानों में

सुलगते अरमान

हरे नज़र आते…

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Added by Sushil Sarna on July 5, 2020 at 9:32pm — 2 Comments

दोहा मुक्तक :

झूठा तन का आवरण, झूठी इसकी शान।
झूठी दम्भी श्वास का, सत्य सिर्फ़ अवसान।
किसने देखा जीव का, कैसा नभ में धाम -
इस जग में तो जीव का, अंतिम घट शमशान। (1)…

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Added by Sushil Sarna on July 1, 2020 at 9:30pm — No Comments

550 वीं रचना मंच को सादर समर्पित : सावनी दोहे :

गौर वर्ण पर नाचती, सावन की बौछार।

श्वेत वसन से झाँकता, रूप अनूप अपार।। १



चम चम चमके दामिनी, मेघ मचाएं शोर।

देख पिया को सामने, मन में नाचे मोर।।२



छल छल छलके नैन से, यादों की बरसात।

सावन की हर बूँद दे, अंतस को आघात।।३



सावन में प्यारी लगे, साजन की मनुहार।

बौछारों में हो गई, इन्कारों की हार।। ४



कोरे मन पर लिख गईं, बौछारें इतिहास।

यौवन में आता सदा, सावन बनकर प्यास।।५



भावों की नावें चलीं, अंतस उपजा प्यार।

बौछारों…

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Added by Sushil Sarna on June 30, 2020 at 9:30pm — 4 Comments

आँखों के सावन में ......

आँखों के सावन में ......

ओ ! निर्दयी घन

जाने कितनी

अक्षत स्मृतियों को

अपनी बूँदों में समेटे

तुम फिर चले आये

मेरे हृदय के उपवन में

शूल बनकर

क्यों

मेरे घावों की देहरी को

अपनी बूँदों की आहटों से

मरहम लगाने का प्रयास करते हो

बहुत रिस्ते हैं

ये

जब -जब बरसात होती है

बहुत याद आते हैं

मेरे भीगे बदन से

बातें करते

उसके वो मौन स्पर्श

वो छत की मुंडेर से

उसकी आँखों का…

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Added by Sushil Sarna on June 27, 2020 at 8:42pm — 8 Comments

बारिश पर चंद दोहे :

मेघ -मेघ में धड़कनें , बूँद- बूँद में प्यार।
हरी चुनरिया से हुआ, धरती का शृंगार।।१
 
बरस रही है प्रीत की , मेघों से बरसात।
साजन से सजनी कहे,अपने मन की…
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Added by Sushil Sarna on June 26, 2020 at 8:30pm — 8 Comments

मगर, तुम न आए ....

मगर, तुम न आए ....

मैं ठहरी रही

एक मोड़ पर

अपने मौसम के इंतज़ार में

तड़पती आरज़ूओं के साथ

भीगती हुई बरसात में

मगर

तुम न आए

गिरती रही

मेरी ज़ुल्फ़ों पर रुकी हुई

बरसात की बूँदें

मेरे ही जलते बदन पर

थरथराती रही मेरे लबों पर

शबनमी सी इक बूँद

तुम्हारे स्पर्श के इंतज़ार में

मगर

तुम न आए

अब्र के पैरहन से

ढक गया आसमान

साँझ की सुर्खी से

रंग गया आसमान

आँखों में लेटी रही

ह्या

अपने…

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Added by Sushil Sarna on June 23, 2020 at 9:19pm — 2 Comments

पितृ दिवस पर चंद दोहे :

पितृ दिवस पर चंद दोहे :

छाया बन कर धूप में,आता जिसका हाथ।

कठिन समय में वो पिता,सदा निभाता साथ।।1

बरगद है तो छाँव है, वरना तपती धूप।

पिताहीन जीवन लगे, जैसे गहरा कूप ।।2

घोड़ा बन कर पुत्र का, खेलें उसके साथ।

मेरे पापा ईश से, बढ़कर मेरे नाथ।।3

प्राणों से प्यारी लगे, पापा को संतान।

जीवन के हर मर्म का, दे वो सच्चा ज्ञान।।4

पिता सारथी पुत्र के, बनते सदा सहाय।

हर मुश्किल का वो करें , तुरंत उचित…

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Added by Sushil Sarna on June 21, 2020 at 10:31pm — 3 Comments

ऊँचाई ....

ऊँचाई ....
 
कितना
बौना हो जाता है
इंसान
अपने ही में…
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Added by Sushil Sarna on June 20, 2020 at 9:00pm — 2 Comments

प्रेम पर कुछ क्षणिकाएँ :

प्रेम पर कुछ क्षणिकाएँ :

प्रेम

ह्रदय में इस तरह

ज्यूँ नीर में

नीर तरंग

................

प्रेम

अवचेतन मन की

पराकाष्ठा

......................

प्रेम

अर्पण

समर्पण

..................

प्रेम

अबोले भावों का

मूक प्रदर्शन

...................

प्रेम

एक पावन

प्रतिकर्ष

मिलन का

.........................

प्रेम

एक…

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Added by Sushil Sarna on June 18, 2020 at 9:21pm — 4 Comments

यथार्थ  दोहे :

यथार्थ  दोहे :

देह जली शमशान में, सारे रिश्ते तोड़।

राहें तकती रह गईं,अंत चला सब छोड़।।1

अंत मिला बेअंत में, हुई जीव की भोर।

भौतिक तृष्णा मिट गई,मिटे व्यर्थ के शोर।।2

व्यर्थ देह से नेह है, व्यर्थ देह अभिमान।

तोड़ देह प्राचीर को,उड़ जाएंगे प्रान।।3

थोड़ी- थोड़ी रैन है, थोड़ी-थोड़ी भोर।

थोड़ी सी है ज़िंदगी, थोड़ा सा है शोर ।।4

कितना टाला आ गई, देखो आखिर मौत।

ज़ालिम होती है बड़ी, साँसों की ये सौत…

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Added by Sushil Sarna on June 16, 2020 at 9:30pm — 4 Comments

थोड़ा सा आसमान ....

थोड़ा सा आसमान ....

चुरा लिया

सपनों की चादर से

थोड़ा सा

आसमान

पहना दिया

उम्र को

स्वप्निल परिधान

लक्ष्य रहे चिंतित

राह थी अनजान

प्रश्नों के जंगल में

उलझे समाधान



पलकों की जेबों में

अंबर को डाला

अधरों पर मेघों की

बरखा को पाला

व्याकुलता की अग्नि में

जलते अरमान

भोर से पहले हुआ अवसान

धरती पर अंबर की

नीली चुनरिया

पंछी के कलरव की

बजती पायलिया

व्योम क्यूँ…

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Added by Sushil Sarna on June 14, 2020 at 9:35pm — 6 Comments

दोहा गज़ल एक प्रयास :

दोहा गज़ल एक प्रयास :

साथी सारे स्वार्थ के, झूठे सारे नात,

अवसर एक न चूकते, देने को आघात।

नैनों से ओझल हुआ, आज लाज का नीर, 

संस्कारों की हो गई, भूली बिसरी बात। 

साँझे चूल्हों के नहीं, दिखते अब परिवार ,

बिखरे रिश्ते फ़र्श पर, जैसे पीले पात। 

बूढ़े बरगद की नहीं, अब आंगन में छाँव, 

बूढ़ी आँखों से सदा , होती है बरसात। 

कैसा कलयुग आ गया, अपने देते दंश,

जर्जर काया की हुई, आहट हीन…

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Added by Sushil Sarna on June 9, 2020 at 10:59pm — 6 Comments

उल्फ़त पर दोहे :

उल्फ़त पर दोहे :

सब लिखते हैं जीत को, मैं लिखता हूँ हार।

हार न हो तो जीत का, कैसे हो शृंगार।।१

अद्भुत है ये वेदना, अद्भुत है ये प्यार।

दृगजल जैसे प्रीत का, कोई मंत्रोच्चार।।२

क्यों मिलता है प्यार को, दर्द भरा अंजाम।

हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम।।३

हर लकीर ज़ख्मी हुई, रूठ गए सब ख़्वाब।

आँखों की दहलीज पर,करते रक़्स अज़ाब ।।४

दस्तक देते रात भर, पलकों पर कुछ ख़्वाब।

तारीकी में ज़िंदगी, लगती हसीं…

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Added by Sushil Sarna on June 4, 2020 at 10:37pm — 6 Comments

जीवन पर कुछ दोहे :

जीवन पर कुछ दोहे :

जीवन नदिया आस की, बहती जिसमें प्यास।

टूटे सपनों का सहे, जीव सदा संत्रास।१ ।

जीवन का हर मोड़ है, सपनों का भंडार।

अभिलाषा में जीत की, छिपी हुई है हार।२ ।

जीवन पथ निर्मम बड़ा, अनदेखा है ठौर।

करने तुझको हैं पथिक,सफ़र सैंकड़ों और।३।

जीवन उपवन में खिलें, सुख -दुख रूपी फूल।

अपना -अपना भाग्य है फूल मिलें या शूल।४ ।

मिथ्या जग में जीत है, मिथ्या जग में हार ।

जीवन का हर मोड़ है, सपनों…

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Added by Sushil Sarna on June 2, 2020 at 9:00pm — 8 Comments

अधूरे अफ़साने :

अधूरे अफ़साने :

जाने कितने उजाले ज़िंदा हैं

मर जाने के बाद भी

भरे थे तुम ने जो

मेरी आरज़ूओं के दामन में

मेरे ख़्वाबों की दहलीज़ पर

वो आज भी रक़्स करते हैं

मेरी पलकों के किनारों पर

तारीकी में डूबी हुई

वो अलसाई सी सहर

वो अब्र के बिस्तर पर

माहताब की

अंगड़ाइयों का कह्र

वो लम्स की गुफ़्तगू

महक रही है आज भी

दूर तलक

मेरे जिस्मो-जां की वादियों में

तुम थे

तो…

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Added by Sushil Sarna on June 1, 2020 at 8:00pm — 8 Comments

रंग काला :

रंग काला :

जाने कितने रंग सृष्टि के

अद्भुत लेकिन है रंग काला

काली अलकें काली पलकें

काले नयन लगें मधुशाला

काला भँवरा

हुआ मतवाला

काला टीका नज़र उतारे

काला धागा पाँव सँवारे

काली रैना चंदा ढूंढें

अपना शिवाला

काले में हैं सत्य के साये

हर उजास के पाप समाए

रैन कुटीर सृष्टि की शाला

रंग सपनों को

भाए काला

काले से तो भय व्यर्थ है

इसमें जीवन का अर्थ है

आदि अंत का ये…

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Added by Sushil Sarna on May 22, 2020 at 7:48pm — 6 Comments

मौन सरोवर ....

मौन सरोवर ....

जुदा न होना

मेरे होकर

कैसे कह दूँ तुम स्वप्न हो

मेरी श्वास का तुम दर्पण हो

बोलो प्रिय

कहाँ गए तुम

मेरी पलक में सपने बो कर

जीवनतल की अकथ कथा तुम

प्रेम पलों की मधुर ऋचा तुम

तुम बिन देखो

सूख न जाएँ

अभिलाषा के मौन सरोवर

अभी यहाँ थे अभी नहीं हो

मेरी क्षुधा की सुधा तुम्हीं हो

जीवन दुर्लभ

तुमको खोकर

तुम अंतस की अमर धरोहर

सुशील सरना

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on May 20, 2020 at 7:49pm — 6 Comments

कुछ क्षणिकाएँ :

कुछ क्षणिकाएँ :

सीख लिया शब्दों ने

जीना और मरना

बिना परिधान बदले

देह का

साथ रहकर

व्योम को

सूक्ष्म से अलंकृत करो

कि स्वप्न भी

कल्पना हैं

अचेतन मन की

कह दिया काँपती लौ ने

दिए से

आज मैं सो जाऊंगी

तुम्हारी गोद में

क्रूर पवन के वेग से आहत होकर

शायद मेरा उजाला

अंधेरों को

नहीं भाया

मिट गई

जीत की आकांक्षा

तिमिर में

इक दूजे से

हारते हुए

हम के…

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Added by Sushil Sarna on May 17, 2020 at 9:37pm — 6 Comments

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