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Somesh kumar's Blog – December 2014 Archive (12)

मन बहुत अकेला है

मन बहुत अकेला है - - - -

आँखे तुमने बंद करीं

सब संज्ञाए बदल गई

बाद तुम्हारें कितनी ठेलम-ठेला है !

मन बहुत अकेला है - - - -

रिश्ते नए क्रम में आए

प्रतिबद्धताएँ बदल गईं

मनोभाव से सबने मेरी खेला है !

मन बहुत अकेला है - - - -

बैठ अकेले में कैसे संताप करूँ

अब बीते का क्या आलाप करूँ

आगत-आज में हुआ झमेला है

मन बहुत अकेला है - - - -

तुमसे निजता का उपहार सम्भाले हूँ

खुले हाट में अपना भाव सम्भाले…

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Added by somesh kumar on December 30, 2014 at 10:20am — 6 Comments

तुम आए नहीं - - -

तुम आए नहीं

तुम आए नहीं-आएगें कहकर

और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर

इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर

चाहे हो जितना मज़बूर |

वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही

दिल धड़कता रहा ,सोच ठहरी रही

तुम आ गए लगा यूँ ही रह –रहकर

तुम आए नहीं –आएगें कहकर,

कॉल बजती रही नाद आया नही

प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही

मायुस होता रह मन सितम सह-सहकर

तुम आए नहीं-आएगें कहकर |

शाम जाती रही ,यकीं जाता रहा

क्यों किया यकीं ,अफ़सोस आता…

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Added by somesh kumar on December 29, 2014 at 12:28am — 7 Comments

सुन लो नयन अबोले मेरे

सुन लो नयन अबोले मेरे

सुन लो नयन अबोले मेरे

कितना कुछ कहने को आकुल

चिर-प्रतिक्षित हृदय-द्वार की

खड़काते हैं कब से सांकल !

सुनो खड़कती उर की पीड़ा

क्रन्दन करता रहा वियोगी

तुम संजीवन सुषेण तुम्हीं हो

में अमोध का मारा रोगी |

जहाँ-जहाँ पे पट में भिती

तहाँ-तहाँ से किरने खोजूँ

अवचेतन को चेतन करने

के उपाय निरंतर सोचूँ |

सोच रहा हूँ क्या मैं गाऊँ

तू भी भीतर से अकुलाए

पट हृदय के खोल…

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Added by somesh kumar on December 28, 2014 at 12:12am — 3 Comments

यूँ मुझे याद करके

यूँ  मुझको याद करके

हिय में ना धार उठाओ

शांत-शीतल मन ताल है

छेड़कर,ना भंवरे उठाओ |

स्मृतियाँ आषाढ़ी नदी सी

वेग-दासी हो रही हैं  

तुलना प्रस्तुत की पुरा से  

मन-उदासी हो रही है |

मुश्किलों से बाँधा है मन

और गाठें मत बढाओ |

यूँ  मुझको  याद करके

हिय में ना धार उठाओ

जब तक रहता अधूरा

प्रेम की ही पूर्णंता है

वासनारत देव हरदम

भक्त नए ढूंढता है |

मुक्त मधुप मकरंद पा

कब कलि की टोह…

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Added by somesh kumar on December 27, 2014 at 1:30am — 3 Comments

स्पर्श

स्पर्श

कभी-कभी तुम्हारे स्पर्श मात्र से

जो सिहरन होती है वो उस

चरम से बड़ी है जो शायद

तुम्हें पूर्ण पाने से मिले |

बीच सागर में ,तपती दोपहरी में

अकेले बेड़े पर भटकते…

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Added by somesh kumar on December 26, 2014 at 12:00am — 9 Comments

भंडारा (कहानी )

                        भंडारा

मास्टर जी ,आप भी चलिए ना भंडारे में - - - “ साथियों ने आग्रह किया|

‘” भाई तुम तो जानते ही हो ,मुझे लाईनों में लगना और याचकों की तरह मांगना पसंद नहीं है “ मा.भोलेराम ने सपाट सा जवाब दिया |

“ अरे!आप भी,भाईसाहब,भंडारे की लाईनों में लगने में कौन सी ईज्जत घट जाती है बल्कि ये तो आपकी भक्ति-भावना की परीक्षा होती है ,प्रसाद के लिए आप जितना ईंतज़ार कर सकते हैं उतना ही पुण्य बढ़ता है “`राजीव बोल पड़ा |

“भाई मैं ऐसी भक्ति-परीक्षा नहीं देना चाहता…

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Added by somesh kumar on December 25, 2014 at 10:57pm — 5 Comments

मर्द (कहानी )

“ मास्टर जी ,अपने दोस्त से पूछिए अगर मेरे लिए कोई जगह हो तो थोड़ी सिफारिश कर दे |” जब विजय मुझसे ये बात कहता है तो मेरे मन में उसके लिए नैसर्गिक साहनभूति फूटती है |मैं पहले से उसकी नौकरी को लेकर फिक्रमंद हूँ और पहले ही कई दोस्तों से उसके बारे में बात कर चुका हूँ |

कुछ लोग होते हैं जो चुम्बक की तरह अपनी तरफ खींचते हैं |विजय में मुझे वही चुम्बकत्व महसूस होता है | गोरा वर्ण ,5”6’ का कद सुघड़ अंडाकार चेहरा ,घुंघराले काले बालों के बीच में कहीं-कहीं सफ़ेद हो गए बाल ,आत्मीयता और उचित मिठास से…

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Added by somesh kumar on December 24, 2014 at 11:30am — 4 Comments

प्रभाव-क्षेत्र

प्रभाव-क्षेत्र

अलग होना ही पर्याप्त नहीं है

मुखर होना भी जरूरी है

प्रखर होना और भी जरूरी है

इसी से बनती है पहचान

लोग यूँ ही नहीं सौपते अपनी कमान |

तीर सिर्फ विरोध के…

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Added by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:00pm — 11 Comments

मत लिखना आने की बात

मत लिखना आने की बात

मत लिखना आने की बात

 आने से पहले

 जो ना आए, नियत वक्त पे

 झल्लाएगा मन

 उठेंगे सौ-सौ प्रश्न

 तुम्हारे बारे में

 लपटें उठ जाएंगी

 राख ढके अंगारे में

 अच्छा है बिन बतलाए आओ

 बिना कोई उम्मीद जगाए

 आ जाओ जो ऐसे एक दिन

 दिल होली, दिवाली, ईद मनाए |

  सोमेश कुमार(08/08/2014) (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by somesh kumar on December 20, 2014 at 11:54am — 19 Comments

उसके हज़ारों रूप लगें

उसके हज़ारों रूप लगे

किसी को सायाँ किसी को धूप लगे

वो एक ही है मगर उसके हज़ारों रूप लगे

मेघ बनते है ,उमड़ते है ,बरसते हैं

किसी को प्यास ,किसी को कैनवास

किसी का विश्वास ,किसी को मीत…

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Added by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:00pm — 7 Comments

डाटा (कहानी )

डाटा

 

मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |

पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -

वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|

उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर…

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Added by somesh kumar on December 8, 2014 at 11:19am — 10 Comments

सपना (एक संस्मरण ,एक मनोव्यथा )

आज से 2 साल पहले ज़िन्दगी की सबसे काली रात मेरी प्रतीक्षा कर रही थी |काला नाग अपना फन फैलाए ,घात लगाए बैठा था ,मेरा सब कुछ छीन लेने के लिए |नहीं जानता था की जीवन के सबसे सुंदर सपने का आज अंत हो जाएगा | 12 दिसम्बर 2009 को जब प्रणय-सूत्र में तुमसे बंधा था तो उसी रोज़ से एक सपने में खो गया था |तुम्हारे सपने में |–जैसा की तुम्हारा नाम था –‘सपना | जगती हुई आँखे में तुम और सोते हुए भी बस तुम्हारा ही सपना |अपने नाम के मुताबिक जीवन में कितनी रंगीनिया भर दी तुमने |कहने को तो मैं एक सपने में था…

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Added by somesh kumar on December 4, 2014 at 11:30am — 12 Comments

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