२१२ २१२ २१२ २१२
दो घड़ी जब ठहरना नहीं आपको
तय ही है प्यार करना नहीं आपको
चाँद अम्बर पे भी चाँद छत पे भी है
कुछ भी हो है बहकना नहीं आपको
रात दिन हुस्न क्यूँ यूं संवरता फिरे
आँखों से कुछ समझना नहीं आपको
बात गुल बुलबुलों तोता मैना कि क्या
है कभी जब चहकना नहीं आपको
सूखती जूड़े में नित नयी गुल कली
खूब समझे बदलना नहीं आपको
कितना भी यूं घटाओं सा उमड़ो मगर
अब्र जैसे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2015 at 6:30pm — 8 Comments
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