For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कल्पना रामानी's Blog – December 2013 Archive (5)

नूतन साल आया (गज़ल) - कल्पना रामानी

212221222122

 

पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।

जाग रे इंसान, नूतन साल आया।

 

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,

थम गए तूफान, नूतन साल आया।

 

गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,

छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।

 

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,

बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

 

मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,

हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।

 

पूछता है रब कि  तेरी, क्या रज़ा…

Continue

Added by कल्पना रामानी on December 30, 2013 at 10:00pm — 31 Comments

शुभारंभ है नए साल का//नवगीत//कल्पना रामानी

फिर से नई कोपलें फूटीं,

खिला  गाँव का बूढ़ा  बरगद।

शुभारंभ है नए साल का,

सोच, सोच है मन में गदगद।

 

आज सामने, घर की मलिका

को उसने मुस्काते देखा।

बंद खिड़कियाँ खुलीं अचानक,

चुग्गा पाकर पाखी चहका।

 

खिसियाकर चुपचाप हो गया,

कोहरा जाने कहाँ नदारद।

  

खबर सुनी है,फिर अपनों के

उस  देहरी पर कदम पड़ेंगे।

नन्हीं सी मुस्कानों के भी,

कोने कोने बोल घुलेंगे।

 

स्वागत करने डटे…

Continue

Added by कल्पना रामानी on December 22, 2013 at 10:00am — 31 Comments

क्यों चले आए शहर (नवगीत) - कल्पना रामानी

क्यों चले आए शहर, बोलो 

श्रमिक क्यों गाँव छोड़ा?

 

पालने की नेह डोरी,  

को भुलाकर आ गए।

रेशमी ऋतुओं की लोरी,

को रुलाकर आ गए।

 

छान-छप्पर छोड़ आए,

गेह का दिल तोड़ आए,

सोच लो क्या पा लिया है,

और  क्या सामान जोड़ा?

 

छोडकर पगडंडियाँ

पाषाण पथ अपना लिया।

गंध माटी भूलकर,

साँसों भरी दूषित हवा।

 

प्रीत सपनों से लगाकर,

पीठ अपनों को दिखाकर,

नूर जिन नयनों के थे,…

Continue

Added by कल्पना रामानी on December 16, 2013 at 11:00pm — 38 Comments

भोर का तारा छिपा जाने किधर है //गज़ल //कल्पना रामानी

212221222122

आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है।

रक्त में डूबी हुई, होती खबर है।

 

फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,

रात पूनम पर अमावस की मुहर है।

 

ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,

भोर का तारा छिपा जाने किधर है।  

 

डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते,

मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है।

 

खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,

साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।

 

हसरतों के फूल चुनता मन का…

Continue

Added by कल्पना रामानी on December 7, 2013 at 10:56am — 20 Comments

भू पे उतरी चंद्रिका

श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।

तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।

 

चाँद ने जब बुर्ज से,…

Continue

Added by कल्पना रामानी on December 2, 2013 at 8:00pm — 33 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service