For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's Blog – December 2021 Archive (5)

नज़्म (उसकी आँखें जो बोलती होतीं)

उसकी आँखें जो बोलती होतीं

कितने अफ़्साने कह रही होतीं

यूँ ख़ला में न ताकती होतीं

सिम्त मेरी भी देखती होतीं

काश आँखें मेरी इन आँखों से 

हर घड़ी बात कर रही होतीं

उसकी आँखें जो बोलती होतीं...

देखकर मुझको मुस्कराती वो 

अपनी आँखों में भी बसाती वो 

जब कभी मुझसे रूठ जाती वो 

मुझको आँखों से ही बताती वो 

मेरे आने की राह भी तकतीं 

नज़रें बस दरपे ही टिकी होतीं

उसकी आँखें जो बोलती…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 23, 2021 at 9:47pm — 4 Comments

ग़ज़ल (ये दर्द मिरे दिल के...)

221 - 1222 - 221 - 1222

ये दर्द मिरे दिल के कब दिल से उतरते हैं 

दिल में ही किया है घर सजते हैं सँवरते हैं 

आती हैं बहारें तो खिलते हैं उमीदों से 

गुल-बर्ग मगर फिर ये मोती से बिखरते हैं 

जब टूटे हुए दिल पर तुम ज़र्ब लगाते हो

पूछो न मेरे क्या क्या जज़्बात उभरते हैं 

पैवस्त ज़माने से थे जो मेरे सीने में 

अब दर्द वही फिर से रह-रह के उभरते हैं 

देखे हैं मुक़द्दर तो बिगड़े हुए बनते…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 21, 2021 at 10:13pm — 10 Comments

(ग़ज़ल) इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं

221 - 2122 - 221 - 2122

इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं 

हाकिम हैं कितने ही जो ईमान बेचते हैं 

अज़मत वक़ार-ओ-हशमत पहचान बेचते हैं 

क्या-क्या ये बे-हया बे-ईमान बेचते हैं  

मअ'सूम को सज़ा दें मुजरिम को बख़्श दें जो 

आदिल कहाँ के हैं वो इरफ़ान बेचते हैं 

घटती ही जा रही है तौक़ीर अदलिया की 

जबसे वहाँ के 'लाला' 'सामान' बेचते हैं 

उनके दिलों में कितनी अज़मत ख़ुदा की होगी 

पत्थर तराश कर…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 16, 2021 at 10:39am — 8 Comments

ग़ज़ल (जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के)

1121 -  2122 - 1121 -  2122 

जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के 

वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के 

जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक

सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके

तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी 

मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के

जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं 

चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के 

न मिटाओ…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 11:59am — 16 Comments

(ग़ज़ल )...कहाँ मेरी ज़रूरत है

1222 - 1222 - 1222 - 1222

फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है 

अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है 

मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे 

मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है 

मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको 

सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है 

लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर 

चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है

कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 6:54pm — 18 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service