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Ajay sharma's Blog – November 2012 Archive (7)

इक पुरानी ग़ज़ल

इक पुरानी ग़ज़ल से आप सब के साथ मैं भी अपने पुराने दिनों की याद कर रहा हूँ, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 

कर्म के ही हल सदा रखती है कन्धों पे नियति 

पर कभी फसलें मेरी बोनें नहीं देती मुझे 
मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे 
पीर पैरों के खड़ा होने नहीं देती मुझे 
फिर वही आँगन की परिधि में बँट…
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Added by ajay sharma on November 26, 2012 at 12:00am — 3 Comments

meri bheegi palke(n)

तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /

जाने फिर बोल रहा कौन //
मिलते थे कहने को हम दोनों नित्य प्रति / 
लकिन संबंधों को शायद ही मिली गति /
तुम ही जब कर सकी कोई आरम्भ नहीं /
मेरे मन को लगा इति का अवलम्ब सही /
देहरी से औप्चारिक्तायों की बंधे रहे  , दोनों के आचरण दोनों के कुंठित मौन //
तुम भी हो चुप- चुप मैं भी हूँ  मौन , जाने फिर बोल रहा कौन //
परिचय के…
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Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments

मेरे कमरें के केलेंडर पर

मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया

तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"

झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया

छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया

मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया

Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

सिमट के रह गयी किताबों में

सिमट के रह गयी किताबों में ज़रुरत मेरे बच्चों की
लूट के ले गयीं ये तालिमें फुर्सत मेरे बच्चों की

खेल खिलौनें सैर सपाटें किताबों की बातें हैं
दुबक के रह गयी दीवारों में ज़न्नत मेरे बच्चों की

पकड़ के अँगुली जब वो मेरी मुझसे आगे आगे चलते
मुझको भली लगती है ऐसी हरकत मेरे बच्चों की

मेरी उम्र का बोझ उठाये नन्हे नन्हे कन्धों पर
कहने को मासूम दिखे है हिम्मत मेरे बच्चों की

Added by ajay sharma on November 14, 2012 at 10:30pm — 2 Comments

बौने अब आसमान हो ग

 

बौने अब आसमान हो गए ,



कौए हंस सामान हो गए



जिसको देख आइना डरता था पहले



अब वे देखो दर्पण के अरमान हो गए

--------------------



जिन्हें तनिक से हवा लगे तो ,…

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Added by ajay sharma on November 13, 2012 at 11:00pm — No Comments

आग का दरिया

आग का दरिया नंगो पैरों करना पार कहाँ  तक अच्छा 

तन्हाई में सिसकी भरकर रोना यार कहाँ तक अच्छा 
 
माना पुराने पन्नों पर ख्वाहिश ने नयी तारीखें लिख दी 
लेकिन पढना फिर फिर बासी वो अखबार कहाँ तक अच्छा 
 
कच्चे रंगों से मिटटी के घर आँगन रंग कर सोच रहा 
बरसाती मौसम में जिद का ये…
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Added by ajay sharma on November 7, 2012 at 7:00pm — 1 Comment

सबसे मिलना तो इक बहाना है

सबसे मिलना तो इक बहाना है

कौन अपना है अजमाना है 



मै कोई ख्वाब आँखों में सजाता ही नहीं

इल्म होता जो बिखर जाना है



बड़े जतन से रक्खा था सहेजा था जिसे 

सब्र का लुट रहा वही खज़ाना है



है मिरी हिम्मत पत्थर या संगेदिल तू

ये वक्त तुझको भी अजमाना है


ग़मों की दरिया को ग़र है ऐतबार मुझपे

तो फ़र्ज़ मुझको भी समंदर का निभाना है



झूंठ है की मै तेरा कुछ भी नहीं मगर

रिश्ता खुद से…
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Added by ajay sharma on November 3, 2012 at 11:00pm — 3 Comments

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