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बासुदेव अग्रवाल 'नमन''s Blog – October 2016 Archive (4)

क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली

"क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली"



हे अबोध ! क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली?

तमपूर्ण निशा में क्या कहीं मिली उजियाली?



मैंने तो उजियालों में उजियाले होते देखे,

विद्युत से जगमग महलों में दिये जलते देखे,

फुलझड़ियों के बीच छूटते कई अनार देखे,

खुले बाज़ारों में जगमग करती देखी दिवाली।

हे नन्हे ! क्या तुझे दिखी अँधियारों में खुशियाली?



कहकहों ठहाकों बीच गरजते हुए पटाखे सुने,

मैंने मधुर आरती बीच सुरीले मंगलगीत सुने,

ना ना बीच और और के आग्रह… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 30, 2016 at 11:55am — 3 Comments

वागीश्वरी सवैया और कलाधर छंद

वागीश्वरी सवैया (122×7 + 12)



दया का महामन्त्र धारो मनों में,दया से सभी को लुभाते चलो।

न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से,सभी को गले से लगाते चलो।

दयाभूषणों से सभी प्राणियों के,मनों को सदा ही सजाते चलो।

दुखाओ मनों को न थोड़ा किसी का,दया की सुधा को बहाते चलो।



कलाधर छंद (गुरु लघु की 15 आवृति के बाद गुरु)



मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग, पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।

ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य, ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो…

Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 25, 2016 at 6:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल (अगर तुम सा मिले दुश्मन तो हसरत और हो जाती)

नहीं जो चाहते रिश्ते अदावत और हो जाती,

अमन की बात ना करते सियासत और हो जाती,



दिखाकर बुज़दिली पर तुम चुभोते पीठ में खंजर,

अगर तुम बाज़ आ जाते मोहब्बत और हो जाती।



घिनौनी हरकतें करना तुम्हारी तो सदा आदत,

बदल जाती अगर आदत तो फितरत और हो जाती।



जो दहशतगर्द हैं पाले यहाँ दहशत वो फैलाते,

इन्हें बस में जो तुम रखते शराफत और हो जाती।



नहीं कश्मीर तेरा था नहीं होगा कभी आगे,

न जाते पास 'हाकिम' के शिकायत और हो जाती।



नहीं औकात तेरी… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 8, 2016 at 1:04pm — 5 Comments

तड़प

(श्रृंगार छंद की रचना। 16 मात्रा आदि 32 अंत 23(21) )



सजन ना प्यास अधूरी छोड़।

हमारा नाजुक दिल ना तोड़।

बहुत हम तड़पे करके याद।

एक दुखिया करती फरियाद।।



सदा तारे गिन काटी रात।

बादलों से करती थी बात।

रही मैं रोज चाँद को ताक।

कलेजा होता रहता खाक।।



मिलन रुत आई बरसों बाद।

करो मत इसको यूँ बरबाद।

गले से लगने की है चाह।

निकलती साँसों से अब आह।।



बाँह में लो निचोड़ तुम आज।

छेड़ दो रग रग के सब साज।

होंठ अब रहे… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2016 at 7:17pm — 10 Comments

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