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Veerendra Jain's Blog – October 2010 Archive (5)

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..

कहते हैं इंसान स्वयं को

पर इंसानियत को समझ ना पाएँ I



जिस माँ ने पाल-पोसकर

इनको इतना बड़ा बनाया

बाँधकर उनको जंज़ीरों में

जाने कितने बरस बिताएँ I

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..



तेईस बेंचों की कक्षा इनको

भीड़ भरा इक कमरा लगती

पर डिस्को जाकर

हज़ारों की भीड़ में

अपना जश्न खूब मनाएँ I

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..



कॉलेज में नेता के आगे

बाल मज़दूरी पर

वाद विवाद कराएँ

और… Continue

Added by Veerendra Jain on October 30, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

दस्तक....

आज सुबह

जब घड़ी की सुइयाँ

हो तैयार

निकल पड़ीं विपरीत दिशाओं को

तभी

हुई दरवाज़े पर दस्तक

बंद आँखों से ही

नींद ने हिलाया मुझे

और ना चाहते हुए भी

आधी सोई आधी जागी आँखों से

दरवाज़ा खोला मैने

फटे होंठों से मुस्कुराते हुए

खड़ी थी ठिठुरती ठंडI



चाय की प्याली की गरमाहट

महसूस करते हुए

दोनों हथेलियों पर

खिड़की से बाहर झाँका मैने

तो आज सूरज ने भी

नहीं लगाई थी

दफ़्तर में हाज़िरी

बादलों की रज़ाई… Continue

Added by Veerendra Jain on October 24, 2010 at 1:09am — 6 Comments

सफ़र....

ढलती हुई शाम ने

अपना सिंदूरी रंग

सारे आकाश में फैला दिया है,

और सूरज आहिस्ता -आहिस्ता

एक-एक सीढ़ी उतरता हुआ

झील के दर्पण में

खुद को निहारता

हो रहा हो जैसे तैयार

जाने को किसी दूर देश

एक लंबे सफ़र पर I



काली नागिन सी,

बल खाती सड़कों पर

अधलेते पेड़ों के सायों के बीच

मैं,

अकेला,

तन्हा,

चला जा रहा हूँ

करता एक सफ़र,

इस उम्मीद पर

कि अगले किसी मोड़ पर

राहों पर अपनी धड़कनें बिछाए

तुम करती होगी… Continue

Added by Veerendra Jain on October 20, 2010 at 1:08am — 9 Comments

मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया....

यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,

मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II



ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,

जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II



तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,

पिए बिन ही मेरी साँसों को तेरा सुरूर हो गया II



ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,

कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II



चला गया जो तू जल्दी जल्द उठने की ख्वाहिश मे,

तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो… Continue

Added by Veerendra Jain on October 14, 2010 at 11:43pm — 2 Comments

इंतज़ार ...

मैं करता हूँ तेरा इंतज़ार प्यार में ,
प्यार करता है तेरा इंतज़ार मुझमे ..

शाम से ही रोशन ये चाँद ,
पलकें झपकते ये सितारे तमाम ,
ख्वाबों की बार बार आती जाती मुस्कान ,
हैं सभी बेचैन तेरे इंतज़ार में..

हवाएं ,
लहरें
और मैं
इंतज़ार का ही हैं नाम , प्यार में..

ख़ामोशी करती है प्यार
और प्यार करता है ख़ामोशी,
मैं करता हूँ दोनों
प्यार और खामोश इंतज़ार ...

Added by Veerendra Jain on October 11, 2010 at 1:20pm — 2 Comments

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