Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 31, 2010 at 10:00pm — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 29, 2010 at 9:00am — 1 Comment
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 28, 2010 at 10:00pm — 1 Comment
चातक मन प्यासा फिरे, दोनों आँखें मूँद .
 पियूँ-पियूँ रटता रहे, पिए न एको बूँद ...
 प्यास कैसे बुझ पाय ?
 मन की मन में रह जाय...
 रूठा आज गुलाब है, मधुकर है बेचैन
 भूली सारी गायकी,कटे न काटे रैन
 कहाँ बोलो अब जाय..
 प्रीति को कैसे पाय?
 स्वाति टपके सीप में, मोती सी बन जाय
 रेत,पंक में जा गिरे , तो दलदल ही कहलाय
 संग का असर न जाय
 कोई कैसे समझाय ?
 मंहगाई सुरसा भई, अतिथि हुए हनुमान...
 सुरसा-मुख घटना नहीं,तुम्ही घटो मेहमान...
 कोई अब क्या…
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 10:30pm — 5 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 7:00am — 12 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 24, 2010 at 3:30pm — 4 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 23, 2010 at 8:30am — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 21, 2010 at 9:30pm — 6 Comments
कोहरे से और बर्फ से, मिला हवा ने हाथ!
 अबकी जाड़े में दिया, फिर सूरज को मात !! १
 
 काँप रहा है भीति से, लोक तंत्र का बाघ!
 संबंधों में शीत है, और फिजां में आग !!२
 
 रिश्ते नातों में लगा, शीतलता का दाग !
 काँप रही है देखिये, कैसे थर-थर आग !!३
 
 फिर पतझड़ की याद में, वृक्ष हो गए म्लान!
 छेड़ रहे हैं रात भर, दर्द भरी एक तान !!४
 
 धूप भली लगती कहाँ, याद आ रही रात !
 ऊष्ण वस्त्र तो हैं नहीं होना है हिमपात !!५
 
 पहरा देती है हवा,…
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 15, 2010 at 11:00pm — 4 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 12, 2010 at 11:00pm — 1 Comment
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 6, 2010 at 9:11am — 1 Comment
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