For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – September 2024 Archive (4)

दोहा सप्तक. . . . संबंध

दोहा सप्तक. . . . संबंध

पति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।

थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक ।।

अहम तोड़ता आजकल , आपस का माधुर्य ।

तार - तार सिन्दूर का, हो जाता सौन्दर्य ।।

खूब तमाशा हो रहा, अदालतों के द्वार ।

आपस के संबंध अब, खूब करें तकरार ।।

अपने-अपने दम्भ की, तोड़े जो प्राचीर ।

उस जोड़े की फिर सदा, सुखमय हो तकदीर ।।

पति-पत्नी के बीच में, बड़ी अहम की होड़ ।

जनम - जनम के साथ को, दिया बीच में छोड़। ।

जरा- जरा सी बात पर,…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 23, 2024 at 3:41pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . दरिंदगी

दोहा पंचक. . . . . दरिंदगी

चाहे जिसको नोचते, वहशी कामुक लोग ।

फैल वासना का रहा , अजब घृणित यह रोग ।।

बेबस अबला क्या करे, जब कामुक लूटें लाज ।

रोज -रोज  इस कृत्य से, घायल हुआ समाज ।।

अबला सबला हो गई, कहने की है बात ।

जाने कितने सह रही, घुट-घुट वो आघात ।।

नजरें नीची लाज की, वहशी करता मौज ।

खुलेआम ही हो रहा, घृणित तमाशा रोज ।।

छलनी सब सपने हुए, छलनी हुआ शरीर ।

कौन सुने संसार में, अबला  अंतस  पीर ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 20, 2024 at 3:58pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . . . विविध

चढ़ते सूरज को सदा, करते सभी सलाम।

साँझ ढले तो भानु की, बीते तनहा शाम।।

भोर यहाँ बेनाम है, साँझ यहाँ गुमनाम ।

जिस्मों के बाजार में, हमदर्दी नाकाम ।।

छीना झपटी हो रही, किस पर हो विश्वास ।

रहबर ही देने लगे,  अपनों को संत्रास ।।

तनहाई के दौर में, यादों का है शोर ।

जुड़ी हुई है ख्वाब से, उसी ख्वाब की डोर ।।

मुझसे  ऊँचा क्यों भला,  उसका हो प्रासाद ।

यही सोचकर रात -दिन, सदा बढ़े  अवसाद ।।

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 17, 2024 at 2:46pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।

सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।

 

रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।

धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।

 

मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।

नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।

 

आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।

रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।

 

रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।

स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 11, 2024 at 1:00pm — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service