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कुमार गौरव अजीतेन्दु's Blog – September 2012 Archive (14)

मन एक सागर

मन एक सागर

जहाँ ;

भावनाओं की जलपरियाँ

करती हैं अठखेलियाँ

विचारों के राजकुमारों के साथ ;

घात लगाये छुपे रहते

क्रोध के मगरमच्छ ;

लालच की व्हेल भयंकर मुँह फाड़े आतुर

निगल जाने को सबकुछ ;

घूमते रहते ऑक्टोपस दिवास्वप्नों के ;

आते हैं तूफान दुविधाओं के ;

विशालता ही वरदान है

और अभिशाप भी ;

अद्भुत विचित्रता को स्वयं में समेटे

एक अनोखा सम्पूर्ण संसार है

जो सीमाओं में रहकर भी

सीमाओं से मुक्त है ;

मन एक सागर

जहाँ ;

अतीत डूब…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 29, 2012 at 12:41pm — 12 Comments

बंद - लघुकथा

महेश कोचिंग जाने के लिये तैयार हो रहा था कि तभी उसके पिता श्यामल बाबू ने उसे आवाज दी| "जी पिताजी" महेश ने उनके पास जा के पूछा| "हाँ महेश, सुनो मेरा तुम्हारी माँ के साथ झगडा हो गया है, वो कल उसने पकौड़े थोड़े फीके बनाये थे न, इसी बात पर| इसलिए आज सारा दिन तुम घर में बंद रहोगे और बाहर नहीं निकलोगे और यदि तुमने बाहर निकलने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारे कमरे को पूरा तोड़-फोड़ दूंगा|" श्यामल बाबू इतना कह के चुप हो गये|

महेश ने हैरानी से अपने पिता को देखते हुए कहा - "पिताजी, यदि…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 26, 2012 at 8:00pm — 6 Comments

ईमान

"गलती हमारा या हमारे आदमियों का नहीं है रमाकांत बाबू"| बाहुबली ठेकेदार तिवारी जी, डीएसपी रमाकांत प्रसाद को लगभग डाँटते हुए बोले| "हम उसको पहिलहीं चेता दिए थे कि ई रेलवे का ठेका जाएगा तो ठेकेदार दीनदयाल राय के पास जाएगा नहीं तो नहीं जाएगा, लेकिन उ साला अपनेआप को बहुत बड़का बाहुबली समझ रहा था| अब खैर छोडिये, जो हो गया सो हो गया| जो ले दे के मामला सलटता है, सलटाइए|"

"आप समझ नहीं रहे हैं सर| बात खाली हमारे तक नहीं है कि आपका कहा तुरंत भर में कर दें| हमारे ऊपर भी कोई है, उप्पर से ई मीडिया…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 26, 2012 at 11:32am — 2 Comments

भाई - लघुकथा

निकिता की शादी हो रही थी| सभी बेहद खुश थे| सारा इंतजाम राजसी था| होता भी क्यों न? निकिता और उसका होनेवाला पति, दोनों ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ऊँचे ओहदों पर थे और अच्छे घरों से आते थे| वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान भाई के द्वारा की जानेवाली रस्मों की बारी आई| अब भाई की रस्में करे कौन? निकिता का इकलौता भाई, जो इंजीनियरिंग का छात्र था, परीक्षाएँ पड़ जाने के कारण अपनी दीदी की शादी में आ ही नहीं पाया था| लेकिन इससे कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि राज्य के नामी उद्योगपति आर.के सिंहानिया का बेटा और…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 22, 2012 at 6:44pm — 18 Comments

दो रंग - लघुकथा

आज मॉर्निंग वॉक से लौटते समय सोचा कि जरा सीताराम बाबू से भेंट करता चलूँ| उनके घर पहुँचा तो देखा वो बैठे चाय पी रहे थे| मुझे देखते ही चहक उठे - "अरे राधिका बाबू, आइये आइये...बैठिये.....सच कहूँ तो मुझे अकेले चाय पीने में बिलकुल मजा नहीं आता, मैं किसी को ढूंढ ही रहा था......हा....हा...हा.....|" कहते हुए उन्होंने पत्नी को आवाज लगाई - "अजी सुनती हो, राधिका बाबू आए हैं........एक चाय उनके लिये भी ले आना|"

फिर हमदोनों चाय पीते हुए इधर-उधर की बातें करने लगे| तभी उन्होंने टेबल पर रखा अखबार…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 19, 2012 at 10:40pm — 16 Comments

निरा बेवकूफ

सचिवालय के बड़ा बाबू सिन्हा साहब के घर पुलिस आई हुई थी | उनके लड़के को गिरफ्तार करने के लिये | लड़का बी.ए पार्ट वन का छात्र था और उसपर अपनी सहपाठिन के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में झूठी गवाही देकर अदालत को गुमराह करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने तथा भोले-भाले निर्दोष युवकों पर बेबुनियाद इल्जाम लगा के उन्हें फंसाने की साजिश करने का आरोप साबित हो चुका था |

घर के बाहर मोहल्लेवालों की अच्छी-खासी भीड़ जमा थी | पड़ोस के शर्मा जी भी अपने कुछ जान-पहचानवालों के साथ खड़े ये तमाशा…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 17, 2012 at 9:11pm — 4 Comments

चार कह मुकरियाँ

(१) फूटे बम चल जाए गोली,

नहीं निकलती मुँह से बोली |

बाहर आता खाने राशन,

क्या भई चूहा? नहिं रे "शासन" ||

(२) ताने घूँघट औ शरमाए,

तड़पा के मुखड़ा दिखलाए |

रोज दिखाए जलवा ताजा,

क्या मेरी भाभी? नहिं तेरा "राजा" ||

(३) चलते पूरी सरगर्मी से,

सुनते ताने बेशर्मी से |

बातों से पूरे बैरिस्टर,

क्या कोई लुक्खा? नहिं रे "मिनिस्टर" ||

(४) बातों से लगता है झक्खी,

नहीं भिनकने आती मक्खी |

डांटे मैडम बँधती घिग्गी,

क्या कोई पागल? नहिं रे…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 14, 2012 at 8:18am — 6 Comments

समाज सुधारक

भ्रष्टता के इस युग में

हर कोई समाज सुधारक है,

देखता है, विचारता है

समाज में व्याप्त घृणित बुराइयों को,

करता है प्रतिकार पुरजोर तरीके से

हर एक बुराई का,

लड़ता है सच के लिए,

बावजूद, क्यों अंत नहीं होता

किसी भी बुराई का,

बल्कि बढ़ती जा रही

बुराइयाँ, दिन-प्रतिदिन,

वजह मात्र एक,

हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,

नहीं दिखती किसी को भी

कमियाँ अपनी,

करते नजरअंदाज

अपने अवगुणों को,

कैसे सुधरेगा समाज

जब…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 13, 2012 at 10:30pm — 10 Comments

हिंदी को बचाइए : घनाक्षरी

एक राष्ट्र एक टोली, एक भाव एक बोली,

हिंदी से ही हो सकेगी, आप जान जाइए |

भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,

शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |

पूर्वजों ने भी कहा है, हिंदी ने बड़ा सहा है,

हिंदी को बढ़ावा दे के, विद्वता दिखाइए |…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 13, 2012 at 10:51am — 14 Comments

मेघ...संग ले चल मुझे भी

मेघ...संग ले चल मुझे भी

स्वच्छंदता के रथ पर बिठा के

उड़ा के दूर

उन्मुक्त, अनंत गगन में

अपनी प्रज्ञात ऊँचाइयों पर

सभी बंधनों से परे

निराकार, निर्विकार रूप में

व्यापक बना के अपने

नयनाभिराम नीलिमा से सुसज्जित

नीरवता की विपुल राशि

हिमावृत सदृश भवनों वाले

अप्रतिम बहुरंगी छटाओं से युक्त

मंत्रमुग्ध करते दृश्यों से शोभित

अथाह सौन्दर्य के मध्य विराजमान

अलभ्य संपदा से संपन्न

किसी स्वप्नलोक का भान कराते…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 9, 2012 at 9:27am — 4 Comments

शिक्षक दिवस पर विशेष.......

गुरुओं से संसार है, गुरुवर शब्द विराट |

गुरु को पा के बन गया, चन्द्रगुप्त सम्राट ||



विद्या दो हे विद्यादाता | करूँ नमन नित शीश झुकाता ||

आन पड़ा हूँ शरण तिहारे | घने हुए मन के अँधियारे ||

दुखित ह्रदय नहीं दिखे उजाला | रोके रथ अज्ञान विशाला ||

कुछ न सूझे भरम है भारी | लागे मोहि मत गई मारी ||

दीन-हीन आया हूँ द्वारे | उर में आस की ज्योति धारे ||

ज्ञान मिलेगा यहाँ अपारा | निर्झरणी सम शीतल धारा ||

धार कलम की तेज बनाओ | कृपा…
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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 9:00pm — 20 Comments

हाइगा (एक प्रयास)

प्रस्तुत चित्र मेरे द्वारा बनाया गया है.........

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 8:07am — 10 Comments

मिठास रिश्तों की

अरे ! कहाँ गई !

अभी तो यहीं थी !

लगता है कहीं गिर ही गई

इस आपाधापी में,

हो सकता है कुचल दी गई होगी

किन्हीं कदमों के तले,

या फिर उड़ा ले गया उसे

झोंका कोई हवा का ;

चाहे चुरा ले गया होगा चोर कोई,

लेकिन चुराएगा कौन !

चीज तो काफी पुरानी थी

फटी-चिटी, धूल-धूसरित,

बहुत संभव है फेंक दिया होगा

किसी ने बेकार समझ के

और ले गया होगा कोई

आउटडेटेड आदमी अपने

स्वभाव के झोपड़े में लगाने के लिए ;

कहीं कहानी लिखनेवाले

तो उठा नहीं ले गये…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 2, 2012 at 7:23pm — 16 Comments

भारतीय सेना को समर्पित एक घनाक्षरी.........

भारती के झंडे तले, आए दिवा रात ढले,
देश के जवान चले, माँ की रखवाली में |

बाजुओं में शस्त्र धरें, मौत से कभी न डरें,
साथ-साथ ले के चलें, शीश मानो थाली में |

नाहरों की टोली बने, खून से ही होली मने,
शादियों में तोप चले, गोलियाँ दिवाली में |

भाग जाना दूर बैरी, वर्ना नहीं खैर तेरी,
काट-काट फेंक देंगे, एक-आध ताली में ||

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 1, 2012 at 9:17am — 10 Comments

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"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
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