For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामबली गुप्ता's Blog – August 2016 Archive (6)

बाढ़-रामबली गुप्ता

कुण्डलिया छंद



नर-नारी-पशु-खग-विटप, हुए सभी बेहाल।

यू पी और बिहार में, हुई बाढ़ विकराल।।

हुई बाढ़ विकराल, काल सम बढती नदियाँ।

डूबे हर घर-बाग-खेत सब डूबी गलियाँ।।

प्रलय रूप धर आज, प्रकृति ज्यों उतरी भू पर।

ये उसका प्रतिशोध, विचारोगे कब हे! नर?



छप्पय छंद



कहीं बाढ़ विकराल, कहीं नर जल को तरसें।

कहीं सूखते खेत, कहीं घन अतिशय बरसें।।

कैसा है यह रूप, प्रकृति का कहा न जाए।

दोषी नर ही स्वयं, तभी तो दुख अति पाए।

नर नित्य प्रकृति का… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 28, 2016 at 11:00pm — 7 Comments

कविता-बन के शुचि स्नेह-सरोज.... रामबली गुप्ता

मत्त सवैया छंद

बन के शुचि स्नेह-सरोज सदा,
सबके उर-सर में विकसित हो।

मद-लोभ व द्वेष न हो मन में,
सर्वोपरि मानव का हित हो।।

कुछ कर्म करो इस भाँति सखे!
निज राष्ट्र-धर्म सम्मानित हो।

नर होने पर हो गर्व सदा,
नरता न कभी अपमानित हो।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on August 19, 2016 at 10:00pm — 9 Comments

स्वाभिमानी पत्थर-रामबली गुप्ता

मानव उवाच(कुकुभ छंद)



सुनो कथा पत्थर की भैया,

पत्थर क्या-क्या सहते हैं?

कथा व्यथा है इनकी सच मे,

डरे-डरे-से रहते हैं।।

जिसका भी जी चाहे इनको,

दीवारों में चुनवा दे ।

और हथौड़े की चोटों से,

टुकड़ों मे भी तुड़वा दे।।



पत्थर उवाच(ताटंक छंद)



चोटों की परवाह नही है,

चोटों पर दिल वारा है।

मानवता के काम आ सकें,

ये सौभाग्य हमारा है।।

महल-अटारी-मंदिर-मस्जिद,

नगर-डगर गुरुद्वारा है।

जग में गिरि से लघु कंकड़… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 18, 2016 at 6:34am — 4 Comments

प्रार्थना(ग़ज़ल) -रामबली गुप्ता

वह्र= 221 1221 1221 122



हे! ईश! हे' जगदीश! दया मान व बल दो।

हो शीश पे' आशीष हमें ज्ञान-विमल दो।



कर दूर सभी द्वेष मलिन-भाव हृदय से।

प्रभु! काट तमस-बंध हृदय-ज्योति धवल दो।।



सुर-साज नया ताल नया राग नया रव।

प्रभु! छंद-नया गान-मृदुल कंठ-नवल दो।।



प्रभु! ध्यान रहो नित्य व अधरों पे' हमारे।

निज भक्ति-भरे भाव के' नव गीत-ग़ज़ल दो।।



हिय-बाग में' नित पुष्प खिलें रंग-बिरंगे।

प्रभु! उर के' सरोवर में' नया नेह-कमल… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 11, 2016 at 9:30am — 13 Comments

आखिर क्यों?(अतुकांत)-रामबली गुप्ता

वो समुद्रतट की

चांदनी रातें

सुहानी बातें

रजनी का रजनीकर के

स्नेहिल ज्योत्स्ना में

नहाना

भीगना।

प्रेम-सिक्त

पुलकित

यामिनी के

निःशब्दता में

चुम्बन

आलिंगन

रति-परिणय, आहा!

हृदय में

उमड़ते

लहराते

गहरे प्रेमधि का

विश्वास

और

गंभीर जलधि की

उपेक्षा

पर आज

वो दृश्य नही

प्रेमधि नही

सिर्फ अश्रुधि

वही रजनी

रजनीकर

निःशब्दता

किन्तु

सर्प की भाँति डंसता… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 4, 2016 at 12:37pm — 8 Comments

सवैये : रामबली गुप्ता

वागीश्वरी सवैया



वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो, जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं?

न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में,शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं!

जला प्रेम का दीप देखो दिलों में, मिलेगा तुम्हें वो सदा ही यहीं।

जहाँ नेह-निष्काम निष्ठा भरा हो, सखे! ईश का भी ठिकाना वहीं।।



दुर्मिल सवैया



दुख जीवन में अति देख कभी, मन को नर हे! न निराश करो।

रहता न सदा दुख जीवन में, तुम साहस से मन धीर धरो।।

रजनी उपरांत विहान नया, अँधियार घना मत देख डरो।

लघु-दीप जला…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 1, 2016 at 8:30pm — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service