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Harash Mahajan's Blog – August 2015 Archive (5)

चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले

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...

चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,

वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |



ज़ब्रो ज़फ़ा गरीबों पर जिस-जिस ने की अगर,  

हर जुर्म खुद खुदा को वो लिखवाते ही मिले |



बदनाम वो शहर में पर, काबे का था मरीज़,

हर चोट भी ख़ुशी से सब बतियाते ही मिले |



वो यार था अजीजों सा, दुश्मन भी था मगर,

हर राज-ए-दिल उसे पर हम बतलाते ही मिले |



इस दौर में जिधर भी देखो गम ही गम हुए,

ऐ ‘हर्ष’ ज़िन्दगी में वो भी आधे ही…

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Added by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 10:09pm — 8 Comments

मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख

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मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,

कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख ।



उसके ज़ुल्मों से तंग आकर मर्यादा न भूलो तुम,

कर्मों का सब लेखा है ये अपना मन न भारी रख ।



जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,

ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।



कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,

पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।



मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,

गिर न… Continue

Added by Harash Mahajan on August 21, 2015 at 5:28pm — 13 Comments

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ

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दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,

इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |



दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,

अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |



नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,

दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |



अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,

ऐसे चमन  जमी दर ज़मीं  काफिला करूँ |



तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,

अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला…

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Added by Harash Mahajan on August 6, 2015 at 6:03pm — 13 Comments

बन गया मैं यूँ खुदा सूली पे चढ़ जाने के बाद

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बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,

पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |



बनके पत्थर देखता हूँ,  इंतिहा बुत परस्ती की,

फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |

 

मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,

लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |



बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,

हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |



इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में…

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Added by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 1:30pm — 9 Comments

किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए

2122 2122 2122 212



किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,

दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |



कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,

महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |



बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,

किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |



प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,

नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |



लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,…

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Added by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 1:00pm — 13 Comments

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