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Dr.Prachi Singh's Blog – August 2012 Archive (9)

देह-बोध

काश
टूट जाए ये दीवार
और हो उन्मुक्त,
 उड़ चलूँ मैं,
भाव-पंख पसार
विस्तृत आकाश में दूर क्षितिज को नापने...
या 
बन मछली, करती
लहरों से अठखेलियाँ, 
बूँद बूँद से मोहब्बत,
छू लूँ सागर की तह
और ढूँढ लूँ सारे मोती....
या
मिल जाऊं मिट्टी में
और एकीकृत हो धरा से
शांत करूँ उसकी हलचल
ताकि न उजड़े फिर…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 27, 2012 at 9:30am — 10 Comments

कुम्हलाते मस्तिष्क (कुछ हाइकू )

 

१.
धूमिल ओज .
मासूम बचपन .
बस्तों का बोझ .
२.
कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
३.
जीवन बूँद .
उन्मुक्त बचपन .
घिरती धुंध .
४.
रटंत शिक्षा .
कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .
५.
ढूँढे किरण .
बाल्यांकुर खिलते .
नेह सिंचन…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments

नेताजी (कुण्डलिया-४)

 
नेताजी के मन बसा, चटकीला  शृंगार
नेतानी जी सुरसती, सौम्य  रूप  अवतार…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 17, 2012 at 7:14pm — 6 Comments

एक तस्वीर (कुछ हाइकू )

१.

एक तस्वीर.
पुष्प छिपे कंटक.
कसी जंजीर.
२.
नित्य विकास.
प्रकृति उपेक्षित.
नित्य विनाश.
३.
बाल श्रमिक.
कैद में बचपन.
निष्ठुर गिद्ध.
४.
जनता त्रस्त.
आन्दोलन की गूँज.
नेता अभ्यस्त.
५.
तमस तले.
वो बीपीएल गाँव.
चिराग जले.
६.
पैना…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 15, 2012 at 4:08pm — 13 Comments

नेताजी (कुण्डलिया -३)

नेताजी (कुण्डलिया -३)
 
नेता जी की ख्वाहिशें, बढ़े खूब व्यापार,
नेतानी की राह पर, सामाजिक उपकार |
सामाजिक उपकार, करें जब भी नेतानी,
धन लुटवाए कुढें, कि, चले नहीं मनमानी |
घोटालों के रिस्क, कमाई तिगडमबाजी,
समझे नहिं नादान, सोचते थे नेताजी ||

Added by Dr.Prachi Singh on August 12, 2012 at 6:30pm — 5 Comments

स्मृतियों की इक बगिया है....

 

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

नेह तृप्त कुसुमित सुरभित सी 

बेसुध करती मादकता में,

कँवल कली के मध्य बिंधा सा

एक हठीला सा भँवरा है…

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Added by Dr.Prachi Singh on August 11, 2012 at 11:00pm — 5 Comments

नेताजी (कुण्डलिया-2)

नेताजी (कुण्डलिया-2) 

 

बीवी टॉपर ही मिले, नेताजी की चाह,
खुद थे इंटर पास वो, पीजी से गय ब्याह,
पीजी से गय ब्याह, किया था फर्जीवाड़ा,
ज्ञानी साथी पाय विरोधी खूब पछाड़ा,
नेतानी जी सभ्य, चतुर और बुद्धिजीवी,
घर हु पढाए पाठ, मिली थी ऐसी बीवी.

Added by Dr.Prachi Singh on August 6, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

नेताजी (कुण्डलिया)

नेताजी (कुण्डलिया)
 

नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,

नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,

उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,

लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,

चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,

समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......

Added by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 1:30pm — 28 Comments

कुछ कह मुकरियाँ

1.

उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 

नयना दुख-दुख नीर बहाए,

है सौगात, नायाब करिश्मा,

ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l



2.

नज़र नज़र में ही बतियाए,

देख उसे मन खिल खिल जाए,

सुबह शाम उसको ही अर्पण,

ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l



3.

साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,

बातें करता मीठी…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 4, 2012 at 6:30pm — 33 Comments

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