2122--1122--1122--112
 फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए
 जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए
 
 हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी
 नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए
 
 अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन
 होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए
 
 आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं
 मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए
 
 ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन
 आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए
 
 मुफ़लिसी ने मिरी…
Added by khursheed khairadi on July 30, 2017 at 11:00pm — 7 Comments
Added by khursheed khairadi on July 10, 2017 at 9:00pm — 15 Comments
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