लूटकर लोथड़े माँस के
पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त
डकारकर कतरा - कतरा मज्जा
जब जानवर मना रहे होंगे उत्सव
अपने आएंगे अपनेपन का जामा पहन
मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए
नहीं बची होगी कोई बूॅंद तब तक
निचोड़ने को अपने - पराए की
बचा होगा केवल सूखे ठूॅंठ सा
निर्जिव अस्थिपिंजर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 29, 2025 at 3:57pm — 3 Comments
पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।
युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।
घुसें समझ कर सौड़ , सौड़ काँटों का बिस्तर ।
लालच के वश होत , स्वर्ग सा जीवन बदतर ।
खाते सब 'कल्याण', भाग्य का नभ थल जलचर ।
जब देते भगवान , नहीं फिर लगता पलभर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 24, 2025 at 2:22pm — 3 Comments
धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।
जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।
जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।
सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।
मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।
परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात।
हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास।
छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।
बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे
झोल।
गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात।
दिनभर…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 14, 2025 at 8:30pm — 5 Comments
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