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नाथ सोनांचली's Blog – June 2022 Archive (5)

गीत : कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है

कोशिश  है जीवन  पाने की

सबकी चाह  प्रथम आने की

कई  करोड़ों  लड़ते   लेकिन

कोई - कोई  विजयी  निकले

शेष  कहाँ जा खो जाते हैं, इसका  कुछ अनुमान नहीं है

कोई  चाहे कुछ भी  कह ले, जीवन पथ  आसान नहीं है

शाम  सुबह  या  जेठ  दुपहरी, भूख  मिटाते  जीवन  बीते

कल जैसा ही कल होगा क्या, इस असमंजस में हम जीते

रेत  सरीखे  अपने  सपने,  कब   ढह  जाए  नहीं  भरोसा

जीने  की  उम्मीद  लिए  सब, बूँद  जहर  का  चेतन  पीते

दो  रोटी  पाने  की …

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Added by नाथ सोनांचली on June 17, 2022 at 9:59pm — 2 Comments

मदिरा सवैया आधारित दो छन्द

1

माँ गुरु थी पहली अपनी जिसका तप पावन ज्ञान लिखूँ

छाँव मिली जिस आँचल में उसको सब वेद पुरान लिखूँ

गर्भ  पला जिसके  तन में  उसको अपना भगवान लिखूँ

मात  सनेह  समान  यहाँ कुछ  और नहीं  उपमान लिखूँ

2

साजन  जो परदेश  गए  करके   मकरन्द  विहीन कली

अश्रु गिरें दिन रात यहाँ  बरसे  जस  सावन  की  बदली

बात रही दिल में जितनी दिल ने दिल से दिल में कह ली

हाल  हुआ  दिल का अपने जस नीर बिना तड़पे मछली

नाथ…

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Added by नाथ सोनांचली on June 15, 2022 at 7:54am — 4 Comments

गीत (सोचना क्या, छोड़ना क्या, कुछ नहीं बस में हमारे)

तृप्ति भी मिलती नहीं औ द्वंद भी कुछ इस तरह है

सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे

साथ किसके क्या रहा है छोड़कर धरती गगन को

फूल  जो  भी  आज  हैं वे छोड़ देंगे कल चमन को

मौत  पर  होवें  दुखी  या  जन्म पर खुशियाँ मनाएँ

हार   से  हम  हार  जाएँ  या   लड़े  औ जीत जाएँ

ज़िन्दगी   के  राज़  गहरे   दूर   जितने   चाँद   तारे

सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे

हर  पतन  के  बाद  ही  होता जगत उत्थान  भी है

शांति  की  ही  गोद  में …

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Added by नाथ सोनांचली on June 13, 2022 at 11:10am — 6 Comments

मुक्तक (मदिरा सवैया आधारित)

बोझ पड़ा सिर पे घर का मन में घनघोर अशांति हुई

यौवन में तन वृद्ध हुआ अरु जर्जर मानस क्लांति हुई

बीत गए सुख चैन भरे दिन जो अब लौट नहीं सकते

बाल सफेद हुए सिर के मुख की सब गायब कांति हुई

जीवन के दिन  चार यहाँ  इसमें  उसमें  हम  त्रस्त हुए

अर्थ क्षुधा बुझती न कभी धन संचय में बस व्यस्त हुए

वक़्त नहीं मिलता जिसमें हम बैठ कहीं कुछ सोच सकें

बन्धु सखा हित वक़्त नहीं अब यूँ हम शुद्ध गृहस्थ हुए

नाथ सोनांचली

विधान -: भानस ×7…

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Added by नाथ सोनांचली on June 11, 2022 at 2:30pm — No Comments

पिता को समर्पित महाभुजंगप्रयात छन्द

1।।

कभी डाँट से तो कभी स्नेह दे के पिता ने किया  पूर्ण  कल्यान मेरा

पढ़ाया लिखाया सिखाया मुझे जो उसी से हुआ आज  उत्थान मेरा

नहीं  जो पिता साथ होते कभी तो, लगा यों कि  संसार  वीरान मेरा

पिता का नहीं नाम जो साथ होता न होता  कही आज सम्मान मेरा

2।।

पिता में  बसे  तीर्थ  सारे  हमारे  उन्हीं  में  सदा  ईश  का  भान  पाया

पिता के  बिना जो  पड़ी  मुश्किलें तो स्वयं को निरामूर्ख नादान पाया

निजी  ज़िन्दगी  में पिता जी  सरीखा रहा दोस्त जो वो न इंसान…

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Added by नाथ सोनांचली on June 10, 2022 at 2:30pm — 8 Comments

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