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रामबली गुप्ता's Blog – April 2016 Archive (6)

कविता-प्रियतम की याद में

प्रियवर! अब तुम आन मिलो ।

सच में अब तुम आन मिलो ।।



तुम बिन भटकूँ मै बन पगली ।

हुई जिन्दगी जल बिन मछली ।।

रात चाँदनी आये जब-जब ।

मन की अगन बढ़ाये तब-तब ।।

दिन का दूजा नाम उदासी ।

हुई तिहाई तन से दासी ।।

नैना हर पल बाट तके हैं ।

विरह वेदना सह न सके हैं ।।

पर यादों में आते जब तुम ।

मन को बड़ा रिझाते तब तुम ।।

किन्तु चेतना लौटे ज्योंही ।

बिलख हृदय रो बैठे त्योंही ।।

नैन धैर्य खो देते हैं तब ।

अश्रु कपोल धो देते हैं तब… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 21, 2016 at 10:37am — 2 Comments

अतुकांत-तुम तो न जानते थे न महात्मन्!

हे महात्मन्!

हे वयोवृद्ध!

तेरी मृतात्मा सुने!

राम-गौतम की इस भूमि पर

अब वटवृक्ष छोड़,

उसकी टहनियों को

पूजा जायेगा।

तूने जो किये थे,

निः स्वार्थ कृत्य,

कर विस्मृत उन्हें,

बस तेरी कमियों को ही

उकेरा जायेगा।

इस सत्य-भूमि पर,

सत्यता को झुठलाकर

इतिहास को ही

तोड़ा मरोड़ा जायेगा,

तेरी रीतियों-नीतियों की

प्रबुद्ध आवाज को

अब अहिंसात्मक असहिष्णुता

बोला जायेगा।

जिन घटितों का तुझसे

दूर तक रिश्ता… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2016 at 2:15pm — 2 Comments

गीत-आज प्रिये कुछ कहना चाहूँ।

आज प्रिये! कुछ कहना चाहूँ, हिय में तेरे रहना चाहूँ।

तेरे तन-मन में खोया मैं खोया ही अब रहना चाहूँ।।

आज प्रिये! कुछ.........



निज नृग-से न्यारे नयनों में अंजन-सा मुझे रचा लो तुम।

उलझा लो कुंचित-केशों में या गजरा मुझे बना लो तुम।।

अधरों की लाली बन प्यारी मैं अधर-सुधा पा लेना चाहूँ।

आज प्रिये! कुछ............



कानों का कुंडल बन जाऊँ या उर का हार बना लो तुम।

बन जाऊँ छम-छम पायल मैं या कंगन मुझे बना लो तुम।

नथ की नथिया बन सजनी मैं चूम होठ को लेना… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 10:01am — 1 Comment

रचना-शृंगारिक

लच-लचक-लचक लचकाय चली,

कटि-धनु से शर बरसाय चली।

कजरारे चंचल नयनों से,

हिय पर दामिनि तड़पाय चली।।1।।



फर-फहर फहर फहराय चली,

लट-केश-घटा बिखराय चली।

अलि मनबढ़ सुध-बुध खो बैठे,

अधरों से मधु छलकाय चली।।2।।



सुर-सुरभि-सुरभि सुरभाय चली,

चहुँ ओर दिशा महकाय चली।

चम्पा-जूही सब लज्जित हैं,

तन चंदन-गंध बसाय चली।।3।।



लह-लहर-लहर लहराय चली,

तन से आँचल सरकाय चली।

नव-यौवन-धन तन-कंचन से,

रति मन में अति भड़काय… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 11:00am — 12 Comments

गीत-हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।

हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।

नया सुर अधर पर सजाता चला है।

हृदय का भ्रमर.............



उजड़ जो गयी एक बगिया हुआ क्या,

बगीचे नए भी यहीं पर मिलेंगे।

नई नित्य कलियाँ सजाएंगी उपवन,

नए पुष्प अमृत-कलश ले खिलेंगे।

यही सोंचकर गीत गाता चला है।

हृदय का भ्रमर.............



तिमिर रात्रि का कब सदा ही रहेगा?

दिवा के उजाले भी चहुँ ओर होंगे।

नवोदित किरन तम का चीरेगी सीना,

प्रभा से प्रकाशित सकल वस्तु होंगे।

हृदय-तम में दीपक जलाता चला… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 4, 2016 at 10:30am — 14 Comments

गीत- भावना के वाह को अब रोक लो

भावना के वाह को अब रोक लो तुम।

कहो कुछ भी किन्तु पहले सोंच लो तुम।।

भावना के वाह...........



शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।

सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।

कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,

हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।

भावना के वाह.............



मान देकर हृदय सबका जीत तो लो।

शब्द-मधु बरसा उरों को सींच तो लो।

मान दोगे मान पावोगे सदा ही,

बोल मीठे बोल दो तो बोल लो तुम।

भावना के वाह...........



है बड़ा कोई यहाँ छोटा… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 5:32am — 10 Comments

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