दोहा मुक्तक
मन को जब मन में मिली , मन चाही पहचान ।
मन  में   जागे   प्यार   के, अनजाने    तूफान ।
मन  की  मोहक  कल्पना, मन के  सुन्दर तीर -
मन ही मन मुस्का रहे, मन  के  सब  अरमान ।
                      * * * 
पागल  इच्छा  सो   गई,  स्वप्न  हुए  साकार ।
चातक  नैनों  को  मिला, तृष्णा  का  उपहार ।
शापित अभिलाषा हुई, मन को मिला न मीत -
क्षीण  बिम्ब  सब हो  गए, धधक  पड़े शृंगार ।
सुशील सरना / 22-4-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 22, 2023 at 2:54pm — 2 Comments
दोहा मुक्तक
नाम बदलने से कहाँ , खुलें भाग्य के द्वार ।
बिना  कर्म  संसार  में, कब  होता  उद्धार ।
जब तक चलती जिन्दगी, चले जीव संग्राम -
जीवन के हर मोड़ का, हार  जीत  शृंगार ।
                         ***
काहे  अपने  रूप  पर, करता  जीव गुमान ।
कहते   हैं   रहती  नहीं, उम्र  ढले  पहचान ।
बुझ कर भी बुझती नहीं, अरमानों की आँच -
मुट्ठी   भर    की   जिंदगी, तेरी  है   इंसान ।
सुशील सरना /
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 5, 2023 at 1:01pm — 2 Comments
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