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Babitagupta's Blog – April 2020 Archive (1)

फूल

फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी

कौन-सा फूल तेरी बगिया की

न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी

मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते

फूल-से झङते माँ होले-से कहती

पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे

पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे

उस समय कोमल मन को समझ ना आई

जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी

तब बात समझ आई

नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी

टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था

पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया

सोचती,मैं फूल तो हूँ

चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं

गुलाब…

Continue

Added by babitagupta on April 21, 2020 at 4:32pm — No Comments

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