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Manoj shukla's Blog – April 2013 Archive (9)

सुनो युवाओं....कुण्डलिया

नौटंकी का खेल है, दरबारों का आज

सत्ता चोर छिछोर की, डाँकू का है राज

डाँकू का है राज, झपट यह माल बनाते

पावन धरती खोद, उसे पाताल बनाते

कहते है कविराय, शुरू है उलटी गिनती

युवा आज के समझ रहे सारी नौटंकी

-------

नवपीढी के हाँथ मे, रहे धर्म की डोर

आकर्षित कुछ हो रहे, जो पश्चिम की ओर

जो पश्चिम की ओर, सभ्यता अपनी भूले

कैसे तुम हो पुत्र, प्रिय ! जो जननी भूले

कहते हैं कविराय, चुनो अब ऐसी सीढी

करो राष्ट्र निर्माण, धर्म से हे… Continue

Added by manoj shukla on April 28, 2013 at 8:30pm — 12 Comments

अंतस के शब्द....हाइकू

हाइकू का प्रथम प्रयास.....
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---------
बिंदी काजल
नर के ही कारण
मैला आँचल
---------
बहे पसीना
नही चोख मजूरी
मुश्किल जीना
-------
गुडिया गिट्टी
दानव नर कामी
कर दी मिट्टी
--------
मौलिक व अप्रकाशित

Added by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:00pm — 11 Comments

नेता बनने के हुनर.....हास्य व्यंग

बेटा- पापा मै देश के लिये कुछ करना चाहता हूँ

बडा होकर मै नेता बनना चाहता हूँ



पापा बोले-

बेटा

नेता बनने के लिये

बहुत पापड

बेलने पडते है

उसे देश और जनता

दोनो के साथ

खेलने पडते है



उसे विरोधियो को

लताडना होगा

शेर की तरह

दहाडना होगा

एक सफल नेता

बडी चतुराई से

लोगो के कीमती वोट

माँग लेते है

क्योकी

मुरगे की तरह

बिना चूके

बडे नियम से

रोजाना बाग देते है



एक नेता को

यह… Continue

Added by manoj shukla on April 25, 2013 at 10:52pm — 14 Comments

जन जन के संताप........कुण्डलिया

सरकारें अब खेलती, यह शतरंजी खेल

ऊँट ऊँट मे मित्रता, हाँथी कसी नकेल

हाँथी कसी नकेल, बजीर हुआ अंजाना

घोडा तिरछी चाल, चले तो पाये दाना

कहते है कविराय, लडा के सबको मारेँ

प्यादों मे तकरार , कराती है सरकारें

----------

कोटा पर जो मिल रहा, चावल चीनी तेल

उसमे क्या क्या हो रहा, कैसा कैसा खेल

कैसा कैसा खेल, खेलते हैं व्यापारी

जीता कोटेदार, बिचारी जनता हारी

कहते हैं कविराय, लगाओ दस दस शोंटा

ठगने खातिर आज, उठाते हैं जो कोटा

-----

चाँदी… Continue

Added by manoj shukla on April 23, 2013 at 9:00pm — 13 Comments

युधिष्ठिर के पाँसे...काव्य

कहा दुशाशन छः मामा जी, मामा छः ले आये

देख युधिष्ठिर मौन बैठकर, मन ही मन पछताये

चलो हुआ क्या आखिर जो मै, दाँव हार ये जाँऊ

हो सकता अबकी मै जीतूँ आगे खेल बढाऊँ

यही सोचकर धर्मराज ने, आगे खेल बढाये

लेकिन भैनों के मामा ने, फिर से छः ले आये

-----

क्या जाने अंधे काकाजी, शाशन किसे थमायें

जीत गया दुर्योधन से तो, राज सहज पा जायें

उनके मन से उस पांसे का, लेकिन मन ना मिलता

पूर्व चलें जो धर्मराज तो, पश्चिम पांसा चलता

अगर छोड दें बाजी आधी, गया हाथ… Continue

Added by manoj shukla on April 21, 2013 at 9:22pm — 14 Comments

भविष्य की कल्पना....हास्य व व्यंग

मैने पूछा-

बाबा

आप किस प्रांत से

आए हो

ये शक्तीमान जैसी

ड्रेस

किस दर्जी से

सिलवाये हो



उत्तर मिला-



उम्र से

दो सौ सत्तासी हूँ

नाम न्युटन

मंगल ग्रह का

वासी हूँ



मैने कहा- बाबा

अब कुछ परदा

हटा दीजिए

अपने ग्रह के

बारे मे

कुछ बता दीजिए



उन्होने कहा- बेटा



यहाँ और वहाँ मे

काफी अंतर है

यहाँ टोना टटका

तो

वहाँ छू मन्तर है



प्लेन की स्पीड… Continue

Added by manoj shukla on April 15, 2013 at 9:04pm — 21 Comments

बेटी के शव पर.....तोटक छंद

बिटिया कछु बोलत नाहि कहौ

चुपचाप पडी कहती न सुनौ

यह तात पुकारत है तुम्ह को

अब धाय उठो उठ धाय चलौ



-----------



रखिया न भुला कहता बिरना

बतिया यह मोरि सुनो बहना

'छुटकी' नहि तोर सहाय भयो

अब धाय उठो उठ धाय चलो

---------

सखियाँ सब खेलन चाह रही

खटिया पर मात कराह रही

यह बात सुनौ नहि देर करौ

अब धाय उठो उठ धाय चलौ

------

बस एक सवाल बसै मन मे

क्यस भूल भयी यह जीवन मे

भगवान कहाँ हम चूक गये

नहि धाय उठे नहि धाय… Continue

Added by manoj shukla on April 14, 2013 at 8:30am — 14 Comments

पाक को चेतावनी....छंद कामरूप

यह देख दुनियाँ, खोल अंखियाँ, पाक की करतूत
गोली चलाता, बम गिराता, तानता बन्दूक
ये मान ले तू, जान ले तू, ना रहेंगे मूक
अब तू संभल जा, या बदल जा, कह रहे दो टूक


मौलिक व अप्रकाशित

Added by manoj shukla on April 13, 2013 at 11:08pm — 15 Comments

तुम सोचो मानव

हे ब्रम्हा जी की रचना से निर्मित मानव

तुम सोचो मानव

क्या मैने ये ठीक किया था युध्द कराकर,

क्या मैने ये ठीक किया दो पक्छ लडाकर

तुम्ही बताओ क्या मै इसका उत्तरदायी हू

तुम सोचो मानव



राजदूत बनकर पाण्डव का जब मै पंहुचा

बस गाँव मांगने पाँच और कुछ भी न ज्यादा

क्या मै और मेरा राज्य था इतना दुर्बल मानव

कुछ अपने हिस्से के गाँव उन्हे मै दे न पाता

किन्तु उन्हे दे देता तो ये युध्द न होता

क्या मैने ये ठीक किया था बात बढाकर

तुम सोचो… Continue

Added by manoj shukla on April 10, 2013 at 11:07am — 6 Comments

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