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Dr.Vijay Prakash Sharma's Blog – February 2016 Archive (2)

बंटवारा

हमने बाँट ली ज़मीन
फिर आसमान
अब बाँट लिए
चाँद सूरज और तारे
फिर बाँटा
देश-वेश, रहन- सहन
रंग-ढंग, जाति- प्रजाति
ख़ुदग़रज़ई
बढ़ती जा रही है.
अब हमने छुपा दिया है
सदभावना को, भाईचारे को
किसी गहरी खाई में.
हम अब नहीं बाँटना चाहते
सहज स्नेह
आमने- सामने..

.
(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on February 24, 2016 at 8:00am — 4 Comments

आप कैसे देखते है?

आप कैसे देखते है?
उसे कैसे स्वीकारते है
दुलार्ते हैं या नकारते हैं
यह आप पर निर्भर है.
आपके समाज पर निर्भर है.
कैकेई भी, कौशल्या भी,
देवकी और यशोदा भी
वाचाल मंथरा भी.
पुरुष की जननी भी
माता और भगिनी भी.
ज्वाला की अग्नि भी.
आप कैसे देखते है?
आधुनिकसमाज सुधारकों के अनुसार
दलित, शोषित, पीड़ित,उपेक्षित
वंचित, कुचलित भी वही है.
आप कैसे देखते है?

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on February 7, 2016 at 4:03pm — 6 Comments

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