एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें 
 
 उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
 झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना | 
 
 शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, 
 पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |
 
 गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ, 
 कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |
 
 आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है, 
 जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |
 
 मैंने पल भर झूठ-सच पर…
Added by वीनस केसरी on February 26, 2013 at 10:00pm — 29 Comments
एक और ताज़ा गज़ल आपकी खिदमत में पेश करता हूँ... लुत्फ़ लें ...
 
 आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |
 आपके कुछ तो काम आए हम |
 
 खुद गलत, आपको ही माना सहीह,
 जाने क्यों आपको न भाए हम |
 
 आपके फैसले गलत कब थे,
 और फिर, सब…
Added by वीनस केसरी on February 6, 2013 at 4:30am — 20 Comments
मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ
वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |
वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |
यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,
हयात अब कोई मसअला चाहती है |…
ContinueAdded by वीनस केसरी on February 5, 2013 at 10:00am — 17 Comments
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