Continueदोहा मुक्तक. . . .
दर्द भरी हैं लोरियाँ, भूखे बीते रैन।
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन ।
हुआ कटोरा भीख का, सिक्कों का मुहताज -
दूर तलक मिलता नहीं,अब निर्धन को चैन ।
*****
आँसू शोभित गाल का, कौन यहाँ हमदर्द ।
सूखे होठों पर जमी , निर्धनता की गर्द ।
पैर पेट से मिल गए, थर - थर काँपे देह -
जीण-क्षीण सा आवरण, लगे पवन भी सर्द ।सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on January 30, 2023 at 3:37pm — 2 Comments
दोहा ग़ज़ल- चाय
प्याली से हो चाय की ,जाड़े  का  सत्कार ।
फिर चुस्की से नेह का, बढ़े  प्रणय  संसार ।
नैन मिले  जब नैन से, स्वरित  हुआ  संदेश,
किया अधर अभिसार ने,जाड़े का  शृंगार  ।
रैन अलावों  में हुए , क्षीण  सभी  अनुबंध  ,
अन्धकार  की   कैद  में, हार  गए   इंकार ।
बढ़ी शीत होने लगा , मन में मिलन  प्रभात,
दम  तोड़ा  इंकार  ने, जीत  गए   स्वीकार ।
मौन चरम मुखरित हुए, चली  प्रेम की नाव ,
वाह्य  अगन …
Added by Sushil Sarna on January 4, 2023 at 3:45pm — No Comments
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