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Sushil Sarna's Blog – January 2014 Archive (4)

वक्त की आंधी में ....

वक्त की आंधी में ....

कुछ तुमने बढ़ा ली दूरियां
कुछ हम मज़बूर हो गए
अपने अपने दायरों में
इक दूजे से दूर हो गये
चंद लम्हों की मुलाक़ात में
जन्मों के वादे कर लिए
चंद कदम चल भी न पाये
और रास्ते कहीं खो गये
वक्त की आंधी में सारे
स्वप्न गर्द में खो गये
कर न पाये शिकवा कोई
हम दो किनारे हो गये

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 28, 2014 at 5:00pm — 24 Comments

है पानी का बुलबुला ....

जीवन दर्शन पर ३ मुक्तक :



1.है पानी का बुलबुला ....

है पानी का बुलबुला ....ये जीवन तेरा जीव

बड़े भाग से मानव का ...मिला तुझे शरीर

आती जाती साँसों का ...नहीं कोई विश्वास

आत्म सुख के वास्ते हर ले किसी की पीर

2.मूर्ख मानव काया पे …

मूर्ख मानव काया पे ....तू काहे करे गुमान

नश्वर इस संसार में .....व्यर्थ है अभिमान

जान के भी अंजाम को क्योँ बनता अंजान

तू माया की…

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Added by Sushil Sarna on January 23, 2014 at 5:30pm — 13 Comments

मुहब्बतों के पैगाम ..........

मुहब्बतों के पैगाम .....

ये मुहब्बत भी

अजब शै है ज़माने में

उम्र गुज़र जाती है

समझने और समझाने में

कब हो जाती हैं सांसें चोरी

खबर ही नहीं होती

बरसों नहीं आती नींद

उनके इक बार मुस्कुराने में

डूबे रहते हैं पहरों

इक दूसरे के ख्यालों में

जाने गुज़र जाती शब् कैसे

इक दूसरे से बतियाने में

शब् जाती है तो

सहर आ जाती है

सहर क्या आती है…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 20, 2014 at 1:00pm — 17 Comments

उसका रुमाल..

उसका रुमाल …..

टप,टप

टप,टप

अंधेरी रात का

गहरा सन्नाटा

बारिश के बाद

पेड़ों से गिरती बूंदों के

जमीन पर गिरने की आवाजें

सन्नाटे को तोड़ने का

अनवरत प्रयास कर रही थीं

और साथ ही प्रयास कर रही थी वो

अनगिनित बारिशों में

भीगी रातों की भीगी यादें

कहर ढाती बारिश का

तूफ़ान तो रुक जाता है

लेकिन तबाही का मंजर

दूर तक साथ जाता है

जाने सावन…

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Added by Sushil Sarna on January 4, 2014 at 12:30pm — 28 Comments

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