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Dr Ajay Kumar Sharma's Blog – January 2012 Archive (6)

तुमनें पूछा ...

मैं कौन हूँ ?

ये ही पूछा हैं न ?

ये मेरी ही दस्तक है

जो फैलाती हैं सुगंध

बनती है मकरंद.

जो काफी है

भौरों को मतवाला बनाने को

और कर देती है लाचार

बंद होने को पंखुड़ियों में ही

तुम नहीं देख पाए मुझको

उन परवानों के दीवानेपन में

जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर

क्या मैं नहीं होता हूँ

उन ओस की बूंदों में

जो गुदगुदाती हैं

प्रेमियों को

रिमझिम फुहार में

बस…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments

ये क्या किया तन्हाई !

ये  क्या  किया तन्हाई !

क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को

जो बन चुके हैं

घाव से नासूर

ढूंड पाओगी

कभी मेरा कसूर ?

गहरी साँसों का मंजर

अधूरे ख्वाबों का खंजर

जो धंस गया है दिल में

चुभनें लगा है फिर से

तुम्हारे आते ही.

कर रहा है मंथन 

भावों में

अब रिस रहा है

धीरे धीरे चीस्ते से

घावों में .

हाए वो अनलिखे मजमून

जो ख़त नहीं बन पाए

क्यों रख दिए तुमनें

तह बना कर

दिल…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 17, 2012 at 3:25pm — 2 Comments

मैं और तन्हाई ...

मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 11, 2012 at 5:04pm — 1 Comment

प्यास बुझती नहीं ..

प्यास बुझती नहीं ..

देश था परतंत्र

गुजरे ज़माने की बात है

मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.

गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.

तपती धूप

दोपहरी जेठ की

कौन बैठता था छाओं में.

पर प्यास तो थी

जीभ पर नहीं

ज़हन में…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

तुझ बिन ...

तुझ बिन जिंदगी हमसे, कुछ ऐसे फिसल रही है ,

ज्यों कतरा कतरा जान, हर दम निकल रही है .



हर आहट पे तू आया, गफलत मुझे सताती ,

ख्वाबों से घायल नींदें , हर पल संभल रही है .



तुझे बेवफा जो कहते, वो लोग हैं बहुत से ,

लोगों को तू दिखा दे, वो वफ़ा मचल रही है .

.

मैं जानता हूँ जानम , तेरी मजबूरियों को ,

तू एक बार आ जा, मेरी…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 5, 2012 at 4:49pm — 3 Comments

काम काव्य -1

काम काव्य -1

..

.

आदम

ईव

या

मैं

तुम

जैसे

मेघ

धरा .

धरा प्यासी

व्याकुल बैचैन

मेघ लिये

बिना निंद्रा नैन

नारी सम तन

गुलाब सम कोमल

विचलित सा मन

देह जैसे अम्बु निर्मल

काया छरहरी

रंग मरमरी

रूप लावण्य बेमिसाल

मस्त हिरनी सी चाल

लघु जलद अंश

बन दस्त

हुए मदमस्त

चिपक गए देह से

आत्मिक नेह से

धरा पर .

दस्त चाल कपोलों…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 2, 2012 at 1:00pm — 2 Comments

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