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Abhinav Arun's Blog – January 2014 Archive (2)

ग़ज़ल - सच को अपनाने का जब ऐलान किया !

ग़ज़ल –

फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा

२२ २२ २२ २२ २२ २



सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,

सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |



जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,

अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया |



आंसू की दो बूँदें टपकी पन्नो पर ,

मैंने अपने किस्से का उन्वान किया |



सोने की अपनी अपनी लंकाएं गढ़ ,

हमने ख़ुद में रावण को मेहमान किया |



देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,

हमने अपने शहरों को वीरान किया |



भूख… Continue

Added by Abhinav Arun on January 6, 2014 at 7:47pm — 33 Comments

ग़ज़ल - माँ जो होती है तो घर लगता है ! (अभिनव अरुण)

ग़ज़ल

फाइलातुन फइलातुन फैलुन \ फइलुन

२१२२ ११२२ २२ \ ११२



वर्ना अन्जान शहर लगता है

माँ जो होती है तो घर लगता है |



दौर कैसा है नई नस्लों का,

वक़्त से पहले ही पर लगता है |



है इधर रंग बदलती दुनिया,

मैं चला जाऊं उधर लगता है |



जाने किस दर्द से गुज़रा होगा ,

शेर जज़्बात से तर लगता है |



इस ऊंचाई से न देखो मुझको ,

दूर से सौ भी सिफर लगता है |



इन चटख फूलों में मकरंद नहीं ,

ये दवाओं का असर लगता है |…

Continue

Added by Abhinav Arun on January 2, 2014 at 4:30pm — 40 Comments

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
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