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DEEPAK PANDEY
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नौकरी के बाद का जीवन -दीपक पांडेय

अध्येता जब मैं था मुझकों थी रोज़गार की लालसा

दूर हो आर्थिक तंगी मेरी - सुधरे अपनी दशा

उच्य हो सामाजिक स्तर कुछ ऐसा हो अपना नौकरीपेशा

उमंग भरे माहौल में होता नित यारों के साथ जलसा



रोज़गार की आस मे दौड़ा- लगा के पूरा दम

मैने फिर नौकरी के परिवेश मे रखा ज्यों कदम

त्यों बदला परिवेश मेरा- दूर हुआ कुछ भ्रम

कार्यालय ही अपना डेरा, कार्यालय ही आश्रम



पराधीन हुआ अब आधा जीवन ,चली गयी आज़ादी

अपनों से दूर होकर के हो गया गुलामी का आदी

खुशियों की… Continue

Posted on October 19, 2013 at 12:46pm — 12 Comments

आख़िरी पड़ाव:दीपक पांडेय

तिमिर में जो दीप्ति अवलोकित अंतिम वही ठिकाना

पथ खोजने पड़ेंगे खुद को, नही चलेगा कोई बहाना

कलेवर की पीर भूलकर लक्ष्य प्राप्ति की करों कामना

कर्म को तुम समझो गुरुवर, वेदनाओं को पाहूना



अंगीकार हो जहाँ पर सुख कहलाए वो आशियाना

मानव की काया नश्वर चरित्र ही असली गहना

रण की सफलता दिखलाए हर अराति को आईना

विजय प्राप्त मैं करता जाऊं सभी की यही तमन्ना



थकी भुजाएँ, लक्ष्य ओझल फिर भी अदम्य पराक्रम

अंकुश रहे चित्त पर यद्यपि प्रदर्शित धैर्य व… Continue

Posted on October 16, 2013 at 12:45pm — 11 Comments

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At 6:26pm on October 23, 2013, annapurna bajpai said…

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