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2122 1122 1122 22

आप भी सोचिये और हम भी कि होगा कैसे,,

हर किसी के लिए माहौल ये उम्दा कैसे।।

 

क्या बताएं तुम्हें होता है तमाशा कैसे,,,

वास्ते इसके लिए होता दिखावा कैसे।।

 

लोग उलझन में मुझे देखके होते ख़ुश हैं,,,,

कुछ तो इस सोच में रहते हैं रहेगा कैसे

 

मैं भी कामिल हूँ यहाँ और हो तुम भी कामिल,

कोई आमिल ही नहीं तो मैं बताता कैसे

 

हार जाता मैं उसे प्यार से कहता तू अगर,,,

तू लगा लड़ने मेरे यार तो हटता कैसे।।

 

ख़्वाब मे आज भी आता है उसी का चेहरा,,

फिर भला और किसी चेहरे को तकता कैसे।।

 

वो यहाँ है नहीं कोई न पता है उसका,,

ज़िंदा अल्फाज़ में है मान लूँ मुर्दा कैसे।।

स्वरचित/मौलिक 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी 4 hours ago

"रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी 4 hours ago

जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान लीजियेगा।

सोचिये आप भी और हम भी कि होगा कैसे

हर किसी के लिए माहौल ये प्यारा कैसे

लोग उलझन में मुझे देखके ख़ुश होते हैं

और ख़ुश हो के ये कहते हैं रहेगा कैसे

हार जाता मैं उसे प्यार से कहता तू अगर

अड़ गया तू भी तो फिर यार मैं हटता कैसे

हर घड़ी सामने रहता है उसी का चेहरा

मैं भला और किसी चेहरे को तकता कैसे

वो "मयंक" आज भी ज़िंदा है मेरी ग़ज़लों में 

रोज़ कहता हूँ उसे मान लूँ मुर्दा कैसे

 

//शुभकामनाएँ//

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी yesterday

आदरणीय मयंक भाई ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है , गुणी जन आवश्यक सलाह दे चुके है , ख़याल करिएगा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Wednesday

गजलों को लेकर एक बात जो कम ही चर्चा में आती है, वह है उसके मिसरों का गद्यानुरूप होना. अर्थात, मिसरे कमोबेश किसी गद्य वाक्य की तरह हों, लेकिन बहर में हों. इसी आशय को आदरणीय नीलेश भाई और आदरणीय रवि भाई ने अपने-अपने ढंग से कहा है.  आदरणीय मयंक जी, आप इस तथ्य को समझ की गाँठ की तरह बाँध लें. 

बाकी आपका प्रयास वस्तुतः श्लाघनीय है.

बधाइयाँ 

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Tuesday

आ. मयंक जी,

आप जैसे युवाओं को ग़ज़ल कहने का प्रयास करते देख कर बहुत अच्छा लगता है.
आप को अभी और समय देना चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि कैसे परंपरागत शाइरी का लोच उत्पन्न हो सके.
.
हर किसी के लिए माहौल हो अच्छा कैसे 

वास्ते इसके लिए होता दिखावा कैसे... किसके वास्ते? फिर यह वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है. मिसरे आसान वाक्य रचना में हों तो अधिक मारक होते हैं.
प्रयास जारी रखिये .. आप की अगली रचना पढने को उत्सुक हूँ 

सादर 

Comment by Ravi Shukla on Tuesday

आदरणीय मयंक जी ग़ज़ल की पेशकश के लिये मुबारकबाद पेश है । 

जानकारी के लिये बता दूँ कि ग़ज़ल से पहले उसके अरकान लिख दें तो पढ़ने वालों को आसानी रहती है और पटल का भी अनरोध यही है ।

शेर बहर के मुताबिक है आपका प्रयास भी अच्छा है अशआर में रंगे  तगज्जुल / शेरियत  के लिये निरंतर अभ्यास आवश्यक है।

शेर में वाक्य विन्यास भी खास होता है जैसे दूसरे शेर में  होते  खुश हैं  या खुश होते हैं 

लोग उलझन में मुझे देख के ख़ुश होते हैं  इस तरह से भी बात कही जा सकती है।    लेकिन सानी मिसरा पूरी तरह से चस्पा होता नहीं लगा मुझे । आखिरी शेर में किसकी बात की जा रही है आप नहीं बतायेंगे तब तक समझ नहीं आयेगी ।शेर अपने कथ्य को खुद बताये तो सार्थक होता है ।  ग़ज़ल के लिये पुनः बधाई । सादर ।

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