कहानी कहने को मन नहीं कर रहा था लेकिन सोचा कि आपसे कुछ कह ही लूं। ऐसा हुआ कि जब मैं अपने घर से निकला तो अखबार पढने का बहुत मन किया। अपने लाइब्रेरी में पहुंचा और पढने लगा। खबर थी बिहार के चुनाव की जहां पर लालू -नीतिश गठबंधन(महा) की सरकार बनने की चर्चा हो रही थी। आखिर में जब मेरी निगाह पड़ी शत्रुघ्न सिंन्हा पर तो सोचा कि ये महाशय कहां से आ टपके इनके कामों को तो करते हैं नीतिश जी और ये सांसद हैं भाजपा के । इनके द्वारा इस चुनाव का लगभग बहिष्कार ही किया गया क्योंकि जहां तक मेरी जानकारी  है इन्होंने कोई सभा को संबोधित नहीं किया। ऐसे में स्थानीय भावनाओं को उभार कर जीते गये चुनाव को राष्ट्रीय भावनाओं को तिलांजलि देकर जीतना कहा की भलमनसाहत थी। लेंकिन जनता तो जनता है उसके विचारों की किसे फिक्र है। 
 आगे समाचार था कि लालू जी की नैया भी मझधार से किनारे को लग गयी। उनकी डूबती नैया को इस चुनाव ने इतनी जोर से धक्का दिया  िकवे भी अब किंग मेकर की भूमिका में आ गये।
 इसके बाद आते हैं लाइब्रेरी के बड़े बाबू उन्होंने कहा कि आज तो ऐसा हो गया है कि स्थानीय व व्यक्तिगत मुद्दे ही ज्यादे उछाले जा रहे हैं और जनता को अपनी तरफ घसीटा जा रहा है। एक अन्य साहब का कहना था कि केन्द्र में सरकार दूसरे की और राज्य दूसरा संभाले यह है असली लोकतंत्र । 
 अब हमारा मन समाचार से  भर गया था क्योंकि साम्प्रदायिक भावनाओं को चाहे कोई भी नाम दे जातिवाद, क्षेत्रीय, भाषावाद ए सब सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले ही है न। 
 इसलिए चुनाव को एक अच्छा मौका जनता कब समझेगी यह चिन्तन करते हुए लाइब्रेरी से बाहर आया। अपने घर को चला गया जहां आगे भी चुनावी चर्चाओं में शामिल होना था। 
 
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