For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

     हमारे गाँव शंखेश्वर के भव्य मंदिर प्रांगण में पहली बार जगद्गुरु शंकराचार्य(कांगड़ा पीठ) के आगमन पर बहुत जन सैलाब उमड़ा हुआ था। मैं भी संत के प्रवचन ध्यान से सुन रही थी,तभी दो महिलाओं का वार्तालाप कान में पड़ा।

 पहली महिला सुदूर से आई रिश्तेदार से कह रही थी- "लालच कितना बढ़ता जा रहा है,ये जो सड़े-गले केले बेच रहा था उसका बेटा रात में ही गुजरा है तब भी कमाई की पड़ी है... क्या समय आ गया है!

"दूसरी महिला-"सूतक का भी तो लिहाज किया जाता है।"

  मेरा दिमाग टनका रात में आवेश की मृत्यु हुई थी,कहीं उसके ही पिता कुंदन तो नहीं! उठ कर गयी तो देखा कुन्दन आवाज लगा रहे थे-18 में ही ले जाइये...।मुझसे नज़रें चुराने की कोशिश की परन्तु मैं पास तक पहुंच गयी। हिम्मत जुटा कर मैंन देख पूंछा-"दादा आवेश का दाह संस्कार हो गया।"

कुन्दन-"अभी नहीं"

मैं-फिर...(मैं क्या और कहती)

कुन्दन- "आज तक उसे नया कपड़ा नहीं पहना पाया,कफ़न तो नया...(कहते कहते गला रुंध गया,सिर निचे झुकाते ही आंसू टपक पड़े) 

      मैं उनकी गरीबी से अच्छी तरह परिचित थी क्योकि आवेश मेरा प्रिय छात्र रह चुका था और घर भी मेरे घर से बहुत दूर नहीं है। वो कभी किसी की दया स्वीकार नहीं करते हैं।बच्चों से भी कभी दीनता नही जान पड़ती।कभी किसी ने उनके बच्चे को कुछ दे भी दिया तो बदले में कुंदन उसका कुछ न कुछ काम अवसर पाकर जरुर कर देते हैं,इस आदत से गाँव के बहुत लोग परिचित हैं।

मैंने फिर भी निवेदन किया-"आज मुझसे कुछ सहयोग लेलो...बन पड़े तो कभी दे देना।

"कुन्दन-"ये केले बिक जाएँ तो अच्छा ही है,नहीं तो ये भी सड़ जायेंगे।नहीं बिकेंगे तो लेलेंगे(दो दिन बेटे के साथ अस्पताल में रहने के कारण आधे से ज्यादा केले सड़ चुके थे)स्वाभिमान की रक्षा में कहे गये कुन्दन के प्रबुद्ध शब्द सुनकर मुझे वो क्षण याद आ गया जब मेरे पिताजी मेरे बड़े भाई के न रहने पर अचेताव्स्था को प्राप्त हो गये थे। 'बहुतो' के समझाने पर कुछ बोलने की हिम्मत जुटा पाए तो चंद शब्द-"मेरी दुनियां उजड़ गयी"। 15/20 दिन तक घर से बाहर ही निकले थे।

वाह कुंदन की दृढ़ता! न किसी के समझाने की आवश्यकता,न किसी के सहयोग की...। स्वयं में ही 'परिपूर्ण'... ईश्वर में अखण्ड विश्वास...संसारिक दुःख,आलोचना,तिरस्कार से परे...कर्तव्य के अतिरिक्त कोई चिंता नहीं।लगभग 3/4दर्जन ही केले थे। भोजनाभाव तो होगा ही,तीन दिनों से तिहाड़ी कर नहीं पाई थी। माँ,पत्नि,बेटियों और स्वयं के लिए ज्यादा तो नहीं हैं इतने केले। अनेक बातें दिमाग में भर मै पुनः जा बैठी और कुंदन को मेरे अश्रु स्वतः ही नमन करने लगे।

.ईश्वर की इस क्रियात्मक शिक्षा के सामने मुझे संत के प्रवचन प्रभावित नहीं कर रहे थे।  मैंने देखा कुंदन ने 4 दर्जन केले ₹ 70 में ही देकर बड़ी निर्लिप्तता से बाकी केले भी ऐसे ही दे दिए और जल्दी जल्दी गाँव की ओर चल दिए।

लेकिन  मेरे सामने अनेक प्रश्न छोड़ गये थे-

*क्या इस अभावास्थिति में ही इतना आत्मविश्वास आ सकता है?

*भौतिक सुख संसाधन हमारी 'पूर्णता' को कम कर देते हैं?

*हमारी योग्यता/क्षमता 'ईश्वर पर दृढ विश्वास' में बाधक है?

*संसार से मिला तिरस्कार ही ईश्वर से सम्बंध स्थापित करवा सकता है?

*यदि प्रभु कुंदन को पात्र बनाकर मुझे कुछ सिखा रहे हैं,तो कुंदन मुझसे किसी तरह का सहयोग स्वीकार क्यों नहीं करते(मेरी आत्मसंतुष्टि के लिए)?*क्या वास्तव में कुंदन 'दुखी' हैं,यदि हां तो हमेशा संतुष्ट/शांत से क्यों दीखते हैं?

*यदि संसारिक रंगमंच पर कुंदन को प्रभु ने tragic किरदार दिया है,तो योग्यता के कारण या दंडस्वरूप?(जिसको बखूबी निभा रहे हैं)*समाज से अधिक सम्पर्क बनाना मोहपाश में बांध दिग्भ्रमित कर सकता है?

*समाज (मुख्यतः प्रतिनिधि जन)इतना पशुवत क्यों होता जा रहा है,जो सम्वेदना तो दूर चोट पर चोट करने को अमादा है?

तब से मैं कुंदन की हर बात/क्रियाकलाप पर और ध्यान देने लगी,घर बुलाने पर भी कम ही आते हैं। लेकिन उनके साथ चाह कर भी कुछ कर नहीं पाती।

(बताना चाहूंगी की कुंदन के नाम 'जॉब कार्ड'राशन कार्ड' आदि बने तो हैं लेकिन इनका भोक्ता कोई और है।)

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1138

Replies to This Discussion

आदरणीया वंदना जी:

 

आपके १२ अप्रेल के लेख पर आज १७ को आ रहा हूँ। यह नहीं कि तब पढ़ा नहीं था। यह भी नहीं कि इस अच्छे लेख पर प्रतिक्रिया लिखने के लिए समयाभाव था। जीवन की जानी-पहचानी दुखद वास्तविक्ता को पढ़कर लिखने का साहस नहीं बटोर पा रहा था।

 

आपने कुंदन जी को, उनके सुचरित्र को, इस आलेख से हमसे परिचित कराया, आपका कोटि-कोटि आभार। कुंदन "मानवीय कुंदन" नहीं हैं ... आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान और भगवान में निष्ठा का उदाहरण बने, स्वयं में परिपूर्ण आत्मा हैं। मेरे लिए वह भगवान हैं। कभी हरदोई आया तो उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त करूँगा।

 

आपके संपर्क के माध्यम कुंदन जी हमें जागृत कर रहे हैं .. कि जीवन का असली रूप क्या है, कठिनाइओं में जीवन को कैसे जीना है, भगवान में सही विश्वास क्या है ! ऐसे में हम अपना समय/अपना जीवन कैसे बिता रहे हैं?

 

कितने लोग प्रवचन सुनने जाते हैं, वहां से ले कर क्या आते हैं? आप कुंदन जी से मिलने पर इतने गूढ़ प्रश्न ले कर आईं, आपका हार्दिक आभार।

 

आपको और कुंदन जी को नमन।

 

 

 

   आदरणीय विजय सर:

आपको सादर प्रणाम।क्षमा करें आदरणीय जो मैं भी तो 17 अप्रैल से आज26 को अप्रैल को उपस्थित हो पा रही हूँ। 

मैंने भी आपकी प्रतिक्रिया देखी तो तुरंत थी परन्तु उस समय मेरा दिमाग मुझे कोई भी प्रतिक्रिया न दे सकी,इसलिए देर हो गई।

आपने जिन कुंदन को जीविका दी...आत्मविश्वास बढ़ाया...उनके बच्चों के लिए राह प्रशस्त की,उनके लिए कुछ लिखने का साहस नहीं जुटा पा रहे  उथे आप, ये कैसी विसंगत सी बात है आदरणीय। कहना, लिखना करने से मुश्किल तो नहीं होता!

बड़ा अच्छा लग रहा है बताते हुए कि कुंदन जी के यहाँ अभी तक अनाज संजोने को कोई पात्र या व्यवस्था नही थी,तो थोड़ा ही अनाज एकत्र करते थे। इसबार उन्होंने आपकी सहायता से अनाज रखने की व्यवस्था बना ली और परिवार भर मिलकर मेहनत से ढेर सारा आगे के लिए अनाज भी एकत्र कर लिया। कितना हलका होगा उनका आने वाला समय जब यह व्यवस्था पहले से ही हो गई है।

सोचा था इस सामाजिक मंच पर  इस लेख के माध्यम से और भी समाज के आन्तरिक विन्दुओं को सुनने और कहने का सुअवसर मिलेगा...अनुभव कुछ  परिपक्व होगा,लेकिन यहाँ भी मेरी आपकी व्यक्तिगत चर्चा सी ही रह गई।

मुझे इन परिस्थितियों से रूबरू होने का अवसर सच में वरदान है...ईश्वर बनाये रखे।

आपने कुंदन जी की सहायता कर कुंदन जी का ही नहीं मेरा भी बहुत मान बढ़ाया है,साथ ही मानवता को गौरव प्रदान किया है आदरणीय। आपके सुविचारों और सुकर्मों की छापहम सब पर पपड़े...ऐसी कामना करती हूँ।

सहयोग बनाये रखें आदरणीय,आपको बारम्बार नमन।

सादर

विंदू बाबू,इस दर्द भरे सत्य ने दिल को छु लिया।बधाई देने का मन नहीं है ,क्योंकि दुःख में मैं भी शरीक हूँ।
दर्द जब हद से ज्यादा हो जाता है ,तो उसके होने ना होने का अहसास ही ख़त्म हो जाता है।

आदरणीया अर्चना जी आपनेलिखे का मर्म समझा,मान दियाक्ल
,इसके लिए आपका हार्दिक आभार।
सहयोग बनाए रखें।
सादर।

वंदना जी

कुंदन के स्वाभिमान के कारण  जो प्रश्न आपने  उठाये  वह सब आपके संवेदन शील व्यक्तित्व के पर्याय  है i पर ये प्रश्न शाश्वत है  i सादर i

आदरणीय श्रीवास्तव जी,
आपकी उदारता को प्रणाम।
कई बार समाज से रूबरू होते अनेक प्रश्न मेरे दिमाग में छिदते हैं,कभी समय के साथ उनके उत्तर मिल जाते हैं कुछ मन में रेंगते रहते हैं।
आपने प्रश्नों को मान दिया,हार्दिक आभार।
सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो. . ये रौशन ज़मीरी अमल एक…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 171 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई श्यामनाराण जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"वाहहहहहह गुण पर केन्द्रित  उत्तम  दोहावली हुई है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । हार्दिक…"
Tuesday
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service