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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ सताइसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार का छंद है - शक्ति छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

25 दिसंबर 2021 दिन शनिवार से 

26 दिसंबर 2021 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

चित्र अंर्तजाल के माध्यम से 

शक्ति छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...

जैसा कि विदित है, कईएक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो

25 दिसंबर 2021 दिन शनिवार से  26 दिसंबर 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आ. प्रतिभा बहन, प्रदत्त चित्रानुरुप बेहतरीन भावपूर्ण छन्द रचे हैं । असीम हार्दिक बधाई।

थकन से भरा पर 
न कुछ खा रहा
निवाला लिये हाथ 
क्यों जम गये..................वाह ! शब्द-शब्द चित्र को परिभाषित करता शक्ति छंद आधारित सुंदर गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रतिभा पांडे जी. सादर

हवन जान कर दी किसानी हुई ।

कि रोटी मिली चाय पानी हुई ।।

बढ़ी ठंड तो जान जी से गयी ।

किसानी अभी खानदानी  रही ।।

अँधेरा  छँटा  है  कुहासा  गया ।

कि धंधा किसानी बुरा ना रहा ।।

कि  बाकी  बहुत हैं निशाने  अभी।

मिलें  कार्ड  क्रेडिट  सुहाने अभी।।

मिले कुछ हजारों किसानों तुम्हें ।

बरस  हर  मिलेंगे  महीनों  तुम्हें ।।

न हारो कि हो हिम्मती यार  तुम ।

रहे   भारती   पुत्र   सरदार  तुम।।

अभी और सुधरें तुम्हारे लिए । 

कि हालात ये जो सहारे हुए ।।

सुखी  तुम  रहो  और  पूतों  फलो ।

रहे लाभ का काम कृषि जोत लो ।।

मौलिक व अप्रकाशित 

 

आ. भाई चेतन जी, चित्रानुरूप सुन्दर और सकारात्मक छन्द रचे हैं । हार्दिक बधाई।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रदत्त चित्र को भावों पर सुंदर सृजन हुआ है आपका. बहुत बधाई स्वीकारें. किन्तु तुक पर अभी कार्य किये जाने की महती आवश्यता है. सादर

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपका सतत प्रयास प्रेरक है. अभी लगता होगा, कि भावों को शाब्दिक करने में विन्यास भटक जाता है. तो विन्यास को साधने में भाव और शब्द बिदक जाते हैं. परंतु, यह सब प्रारंभिक दशाएँ हैं. 

आपका प्रयास सतत बना रहे. मैं आपको इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ. 

शुभातिशुभ 

शक्ति छंद आधारित गीत

 

लगी एक हर दिन यही आस है ।

कभी तो बुझेगी भले प्यास है ।   

*

निवाला गले से उतरता नहीं,

बुरा दौर जल्दी गुज़रता नहीं ।

उजाला खड़ा

श्रम

बना पास है ।

*

मिली भूमि बंजर कहें खेत क्या,

पड़े ढेर पत्थर कहें रेत क्या ।

उगेंगे यहाँ

पुष्प

विश्वास है ।

*

लकीरें खिंची हैं कई भाल पर,

उड़ाता हँसी वक्त भी हाल पर ।

इन्हें क्या पता

शेष

उल्लास है ।

 

मौलिक/अप्रकाशित.

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुन्दर गीत हुआ है हार्दिक बधाई।

आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी प्रस्तुत गीत रचना पर उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार आपका. सादर

आदरणीय अशोक भाईजी, आपके प्रस्तुत गीत से शब्दश: चू पड़ती सकारात्मकता प्रभावी है. सकारात्मक सोच ही कर्म और तदनुरूप प्रतिफल की दशाएँ निश्चित करती है. प्रदत्त चित्र से निस्सृत भयावहता किसी को झकझोर देने के लिए काफी है. किंतु यह भी सही है कि दृढ़ निश्चय भावी को साध लेने का दम रखता है.

आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर हार्दिक बधाइयाँ. 

एक बात : 

लगी एक हर दिन यही आस है ।

कभी तो बुझेगी भले प्यास है ।   

इस मुखड़े में 'भले' को क्या 'अगर' कर दिया जाय ? क्या कोई नया आयाम प्रतीत होता है ? हालाँकि भले भी आवश्यक भाव को शाब्दिक करता प्रतीत हो रहा है. परंतु मुझे ऐसा भान हो रहा है कि 'अगर' जैसा अव्यय प्यास के वजूद को अधिक चुनौती देता लग रहा है. अर्थात्, 'अगर' यह प्यास है तो क्या, है तो प्यास ही, समय आएगा कि ये बुझेगी. मैं इस नजरिये से देख रहा था. 

इस समर्थ गीत के लिए पुन: हार्दिक बधाई. 

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! उत्तम सुझाव है आपका. मैंने अपनी रचना में यह परिवर्तन कर लिया है. प्रस्तुत गीत रचना पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. सादर

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